देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ के डीजी अनीश दयाल सिंह, 28 मई को ‘ग्राउंड कमांडर’ यानी सहायक कमांडेंट के साथ बातचीत करेंगे। सीआरपीएफ के बल मुख्यालय से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए होने वाले ‘संवाद’ में महानिदेशालय में कार्यरत डीआईजी एवं इससे उच्च रैंक वाले सभी अधिकारी भाग लेंगे। इसके अलावा आरएएफ, कोबरा, वीएस विंग व एनएस के आईजी सहित कई दूसरे वरिष्ठ अधिकारी भी ‘संवाद’ का हिस्सा बनेंगे। सभी यूनिटों के जिम्मेदार अधिकारी, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान मौजूद रहेंगे। यूपीएससी के माध्यम से सीधी भर्ती के जरिए सीआरपीएफ में बतौर ‘सहायक कमांडेंट’ के पद पर ज्वाइन करने वाले अधिकारियों को ‘डीजी संवाद’ से बहुत उम्मीद है। वजह, ये अधिकारी पदोन्नति एवं वित्तीय मामले में बहुत अधिक पिछड़ चुके हैं। सहायक कमांडेंट को पहली पदोन्नति यानी डिप्टी कमांडेंट तक पहुंचने में ही लगभग 15 साल लग रहे हैं। हाल फिलहाल के वर्षों में जो ‘डीएजीओ’ फोर्स में आ रहे हैं, उनके लिए तो पदोन्नति की दूरी और ज्यादा बढ़ती जा रही है।
संवाद के लिए नामित अफसर, डीजी के समक्ष अपनी बात रखेंगे। बातचीत के दौरान एचआर व कल्याण से जुड़े मुद्दे भी उठाए जा सकते हैं। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान केवल फोर्स से जुड़े मामलों पर बातचीत होगी। इसमें मानव संसाधन ‘एचआर’ प्रबंधन पर भी सहायक कमांडेंट, अपनी बात रख सकते हैं। कल्याण, तकनीक, प्रोविजनिंग एवं ट्रेनिंग आदि विषयों को लेकर सुझाव दे सकते हैं। ऐसा कोई सुझाव, जिसके माध्यम से बल की कार्यप्रणाली में कोई सार्थक बदलाव लाया जा सकता है, उस बाबत संबंधित अधिकारी को विस्तृत जानकारी, डीजी के समक्ष रखनी होगी। जो अधिकारी, संवाद में बोलना चाहते हैं, उन्हें बल मुख्यालय को 27 मई तक अपने सवाल भेजने होंगे। इससे पहले डीजी अनीश दयाल सिंह ने जनवरी में यूनिट कमांडेंट के साथ ऐसा ही ‘संवाद’ कार्यक्रम आयोजित किया था।
सीआरपीएफ में युवा अफसरों द्वारा फोर्स को छोड़ने के मामलों में तेजी देखी जा रही है। समय पर पदोन्नति न मिलने के कारण अनेक कैडर अधिकारियों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली है। कैडर समीक्षा रिपोर्ट भी आगे नहीं बढ़ पा रही है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद सभी कैडर अफसरों को पदोन्नति एवं वित्तीय फायदे नहीं मिल सके हैं। कैडर अफसरों को अपने हितों से जुड़े मामलों में अदालत की शरण लेनी पड़ रही है। सूत्रों का कहना है कि संवाद के दौरान ‘सहायक कमांडेंट’ अपने करियर से जुड़े कई अहम प्वाइंट, डीजी के समक्ष रख सकते हैं। इनमें पहला और सबसे मुख्य प्वाइंट तो पदोन्नति, एनएफएफयू और कैडर रिव्यू का है। 2019 के बाद इस मुद्दे पर कई कमेटियों का गठन हो चुका है, लेकिन अभी तक मामला अधर में लटका है। सीआरपीएफ के ‘सहायक कमांडेंट’ भले ही आतंकियों व नक्सलियों से निपटने, राष्ट्रीय आपदा, चुनाव और कानून व्यवस्था सुधारने में अव्वल रहते हों, मगर वे तरक्की के मोर्चे पर लगातार पिछड़ते जा रहे हैं। सहायक कमांडेंट को पहली पदोन्नति मिलने में ही करीब 15 साल लग रहे हैं। इससे बल में ग्राउंड कमांडरों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। कैडर अधिकारियों को ओजीएएस और एनएफएफयू की मूल भावना को लेकर संघर्ष करना पड़ रहा है। एनएफएफयू का फायदा, सभी कैडर अधिकारियों को नहीं मिल सका है।
मार्च में गठित हुआ ‘बोर्ड ऑफ ऑफिसर’
इन समस्याओं का हल खोजने के लिए सीआरपीएफ डीजी ने मार्च में कैडर अधिकारियों का ‘बोर्ड ऑफ ऑफिसर’ गठित किया था। ‘बोर्ड ऑफ ऑफिसर’ द्वारा तीन माह में अपनी रिपोर्ट, बल मुख्यालय को सौंपी जानी थी। सीआरपीएफ की 48वीं बटालियन के कमांडेंट वी शिवा रामाकृष्णा की अध्यक्षता में 11 अधिकारियों का एक बोर्ड गठित किया गया था। इस बोर्ड को सीआरपीएफ मुख्यालय को कैडर अधिकारियों की पदोन्नति में आई स्थिरता को लेकर अपने सुझाव देने के लिए कहा गया था। पदोन्नति में किन कारणों से देरी हो रही है, स्थिरता को कैसे दूर किया जाए और सरकार के नियमों के मुताबिक वित्तीय अपग्रेडेशन को किस तरह से बढ़ाया जाए, आदि बातों पर ‘बोर्ड ऑफ ऑफिसर’ को एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई। बोर्ड के अन्य सदस्यों में अमित चौधरी, कमांडेंट सीआरपीएफ अकादमी, त्रिलोक नाथ सिंह टूआईसी 5वीं बटालियन, टूआईसी संजय गौतम 51वीं बटालियन, मनोरंजन कुमार टूआईसी 194वीं बटालियन, पंकज वर्मा डिप्टी कमांडेंट ट्रेनिंग ब्रांच ‘मुख्यालय’, विवेक कुमार डीसी रांची, पुश्कर सिंह डीसी आरटीसी अमेठी, अरूण कुमार राणा सहायक कमांडेंट 75वीं बटालियन, मितांशु चौधरी एसी 103 आरएएफ और विनोद कुमार एसी 139वीं बटालियन, शामिल हैं।
बल में कैसे खत्म हो मुकदमेबाजी
‘बोर्ड ऑफ ऑफिसर’ के कार्यक्षेत्र में जो बातें शामिल की गई हैं, उनमें कैडर अफसरों की तय समय पर पदोन्नति कैसे सुनिश्चित हो, शामिल है। क्या इसके लिए मौजूदा भर्ती नियमों में बदलाव की जरूरत है। अगर बदलाव जरूरी हैं तो उसका ठोस तर्क देना होगा। सभी कैडर अधिकारियों तक एनएफएफयू और एनएफएसजी का फायदा कैसे पहुंचे, इस बाबत सुझाव देने होंगे। बल में अफसरों का प्राधिकार, इसे कैसे बढ़ाया जाए। ऐसे मामलों में मुकदमे बाजी को कम करने के लिए कौन से कदम उठाए जाएं। पदोन्नति में ठहराव, इस समस्या को किसी अन्य तरीके से हल किया जा सकता है तो उसके बारे में भी विस्तृत रिपोर्ट तैयार करनी होगी।
तीन पदों पर प्रमोशन लेना बहुत मुश्किल
सीआरपीएफ कैडर अधिकारियों का कहना है कि ‘सहायक कमांडेंट, डिप्टी कमांडेंट और सेकेंड इन कमांड’ इन तीन पदों पर प्रमोशन लेना बहुत मुश्किल हो गया है। सहायक कमांडेंट को पहली पदोन्नति मिलने में 15 साल से ज्यादा समय लग रहा है। अगर यूं ही चलता रहा तो उन्हें कमांडेंट तक पहुंचने में 25 साल लग जाएंगे। मतलब रिटायरमेंट की दहलीज पर जाकर, उन्हें बटालियन को कमांड करने का मौका मिल सकेगा। ग्राउंड कमांडरों का तर्क है कि वे बल की तरफ से हर छोटा बड़ा जोखिम उठाते हैं। सभी तरह के ऑपरेशन को लीड करते हैं। यूपीएससी से नियुक्ति मिलने के बावजूद प्रमोशन में वे पिछड़ जाते हैं। अभी तक 2009 बैच के सहायक कमांडेंट, पहली प्रमोशन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। ये तो प्रमोशन का मौजूदा हाल है। अगर कैडर रिव्यू में कुछ नहीं होता है, तो 3-4 साल बाद कमांडेंट बनने में 25 से 30 साल लगेंगे। कैडर अधिकारियों का कहना है कि केंद्र सरकार की 55 संगठित कैडर वाली सेवाओं में अधिकतम बीस साल बाद सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड मिलता है। इसके बाद आईएएस अधिकारी जेएस रैंक पर और आईपीएस, आईजी के पद पर चला जाता है। लिहाजा ये कॉडर सर्विस हैं, इसलिए इनमें टाइम बाउंड प्रमोशन यानी एक तय समय के बाद पदोन्नति मिल जाती है। इन सेवाओं में रिक्त स्थान नहीं देखा जाता। जगह खाली हो या न हो, मगर तय समय पर प्रमोशन जरूर मिलता है।
सीट खाली है तो ही मिलेगी पदोन्नति
सीआरपीएफ में प्रमोशन उस वक्त होती है, जब सीट खाली होती है। अगर किसी फोर्स में एक साथ कई बटालियनों का गठन होता है, तो ही प्रमोशन की कुछ संभावना बनती है। इसे नॉन प्लान ग्रोथ कहा जाता है। डीओपीटी ने इस बाबत भी दिशा निर्देश जारी कर कहा था कि किसी भी फोर्स में नॉन प्लान ग्रोथ नहीं होगी। जो भर्ती होगी, वह प्लांड वे से ही की जाएगी। 2001 और 2010 में भर्ती नियमों को बदला गया, लेकिन उनमें इतनी ज्यादा विसंगतियां थी कि उससे कैडर अफसरों को फायदा होने की बजाए नुकसान हो गया। सीआरपीएफ के सभी कैडर अधिकारियों को ओजीएएस और एनएफएफयू की मूल भावना के अंतर्गत फायदा नहीं मिल पा रहा है। नियमों की अवहेलना हो रही है।
संवाद में उठ सकते हैं ये मुद्दे
सहायक कमांडेंट के अन्य मुद्दों में तात्कालिक राहत के लिए लोकल रैंक, कंपनी स्तर पर इंफ्रा प्राधिकार, कंपनी कमांडर को वित्तीय अधिकार, प्रतिनियुक्ति पॉलिसी में दस साल का क्लॉज समाप्त करना, एग्जीक्यूटिव अधिकारियों के कल्याण (कोर्ट केस) से जुड़े मामले, भर्ती के नियम यानी ‘रिक्रूटमेंट रूल’ में बदलाव, टूआईसी तक रैंक और पद का डीलिंकिंग, ग्रुप ए के ऐसे अधिकारी, जिन्होंने 13 साल की जॉब पूरी कर ली है, उन्हें तुरंत प्रभाव से एनएफएसजी का फायदा देना (कोर्ट के आदेश एवं कैबिनेट में हुए निर्णयों के मुताबिक) और डीजी की तरफ से गृह सचिव को पत्र लिखा जाना चाहिए, जिसमें सीआरपीएफ कैडर के साथ सम्मानजनक व्यवहार, जिम्मेदारी और निष्पक्ष सीसीए के रूप में कार्य करना, शामिल है।
बल में टूआईसी और सीओ के पद नाम में बदलाव किया जाए। सीआईएसएफ की तर्ज पर टूआईसी को सीओ और कमांडिंग अधिकारी को सीनियर सीओ का नाम दिया जाए। सीआरपीएफ, जो भी कर्तव्य निभाए, वह सिर्फ आग्नेयास्त्रों से पहरा देने के बजाय व्यापक तरीके से हो। व्यापक तरीके से कर्तव्यों की शुरुआत वीआईपी सुरक्षा विंग के पुनर्गठन के साथ की जा सकती है। इसके बाद सभी मौजूदा महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रतिष्ठानों जैसे मथुरा, काशी व रघुनाथ मंदिर आदि का पुनर्गठन किया जा सकता है। आरएएफ पर एसओपी को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए, यदि एमएचए को अतिरिक्त और लंबी तैनाती की आवश्यकता है तो कुछ और जीडी इकाइयों को आरएएफ में परिवर्तित किया जा सकता है या आरएएफ इकाइयों की नई स्थापना के लिए प्रस्ताव भेजा जा सकता है।