6 Muslim baby traditions: नवजात शिशु का दुनिया में जन्म लेना किसी परिवार के लिए एक सुखद पल होता है. बच्चे के जन्म के बाद से ही कई तरह के अनुष्ठान किए जाते हैं. ऐसे में मुस्लिम समुदाय में भी बच्चे के जन्म होने पर कुछ ऐसे अनुष्ठान किए जाते हैं, जो मुस्लिम संस्कृति का हिस्सा है. आज हम यहीं जानेंगे कि मुस्लिम समुदाय में शिशु के जन्म लेने पर कौन-कौन सी परंपराएं निभाई जाती है.
इस्लाम धर्म में जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो इसे अल्लाह का आशीर्वाद माना जाता है. बच्चे के जन्म के बाद से ही इस्लाम धर्म में 6 प्रकार की परंपराएं निभाई जाती है. जिनमें अजान और इकामत, तहनीक, अकीका, नवजात शिशु का नामकरण और परिशुद्ध करण की परंपरा निभाई जाती है. ये जानकारी हम आपको इस्लामिक चैनल के आधार पर दे रहे हैं.
अजान और इकामत
इस्लाम धर्म के मुताबिक जब घर में किसी नवजात शिशु का आगमन होता है तो सबसे पहले उसे अजान और इकामत सुनाई जाती है. इस काम को मुख्य तौर पर शिशु का पिता निभाता है. पिता नवजात के दाहिने कानों में अजान पढ़ता है तो बाएं कान में इकामत फुसफुसाता है. तथा बच्चे का मुख किबला (इस्लाम में शुभ दिशा का सूचक) की ओर करना अच्छा माना जाता है.
दूसरी परंपरा तहनीक
जब नवजात इस दुनिया में आता है तो उसे कुछ मीठा चखाया जाता है. इस्लाम में नवजात शिशु को कजूर या कोई मीठी चीज का रस मुंह से रगड़ना सुन्नत माना जाता है. ज्यादातर मुस्लिम परिवारों में ये काम परिवार के बड़े बुजुर्ग ही करते हैं. ऐसे में इस बात का ध्यान देना जरूरी है कि नवजात बच्चे को खाने में किसी भी तरह का आहार ने दें.
तीसरी परंपरा अकीका
इस्लाम धर्म के मुताबिक नवजात शिशु के जन्म के सात दिन बाद अकीका की परंपरा निभाई जाती है. आमतौर पर बच्चे के जन्म के सातवें दिन जानवरों की बलि दी जाती है. और उस मांस को घर-परिवार, रिश्तेदारों और गरीबों में बांटा जाता है. सातवें दिन बच्चे का सिर भी मुंडवाया जाता है. जिसके बाद मुंडवाए हुए बालों का वजन कर उस वजन के बराबर ही चांदी या सोने का दान किया जाता है.
चौथी परंपरा नवजात शिशु का नामकरण
नवजात शिशु का नामकरण बेहद महत्वपूर्ण रस्में होती है. ऐसे में ज्यादातर लोग अपने बच्चों का नाम ऐसा रखते हैं, जो अल्लाह के उसूलों के खिलाफ न हो. जो नाम पाक हो, जिसमें अल्लाह ताला के आदर्श झलकते हो. इस्लाम में नाम के महत्व का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि खुद पैगंबर मोहम्मद ने अपने साथियों के नाम बदल दिए थे. जिसमें सहाबी का नाम साब जिसका अर्थ कठोर होता है, उसे बदलकर सहल (आसान) कर दिया था. हालांकि ज्यादातर परंपराओं में बच्चे का नामकरण अकीका के दिन किया जाता है.
पांचवीं परंपरा परिशुद्ध करण
इस्लाम धर्म में पुरुषों का खतना महत्वपूर्ण संस्कारों में गिना जाता है. इस्लाम धर्म में खतना को लेकर कहा जाता है कि, ये स्वच्छता और स्वास्थ्य को प्रोत्साहन देता है. इस परंपरा का पिछले पैगंबर और संस्कृतियों ने भी पालन किया था. इस्लाम धर्म में ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों का खतना कम उम्र में ही करवाना पसंद करते हैं.
छठीं परंपरा निफास
निफास का मतलब रक्तस्राव से है, जो बच्चे के जन्म के बाद से महिलाओं को होता ही है. इस दौरान महिलाओं को किसी भी तरह का उपवास और प्रार्थना जैसे प्रतिदिन किए जाने वाले काम से छूट दी जाती है. ये छूट महिलाओं को तब तक दी जाती है, जब तक की रक्तस्राव बंद न हो जाए. इस दौरान जन्म देने वाली मां का भी उसके परिवार वाले काफी ख्याल रखते हैं. उसे नए-नए तोहफे देते हैं. जितना हो सके मां को आराम करने दिया जाता है.