इंसुलिन एक हार्मोन है जो ग्लूकोज को कोशिकाओं में एनर्जी के लिए इस्तेमाल होता है. टाइप 1 डायबिटीज़ वाले लोगों में पैंक्रियाज इंसुलिन नहीं बनाता है या कम हो जाता है. जिसके कारण ब्लड में शुगर लेवल बढ़ने लगता है. टाइप 1 डायबिटीज़ एक क्रॉनिक (जीवन भर चलने वाली) ऑटोइम्यून बीमारी है जो आपके अग्न्याशय को इंसुलिन बनाने से रोकती है.
इंसुलिन एक महत्वपूर्ण हार्मोन है जो आपके रक्त में ग्लूकोज (शर्करा) की मात्रा को नियंत्रित करता है। सामान्य परिस्थितियों में, इंसुलिन निम्नलिखित चरणों में कार्य करता है.आपका शरीर आपके द्वारा खाए गए भोजन को ग्लूकोज (शर्करा) में तोड़ देता है, जो आपके शरीर की ऊर्जा का मुख्य सोर्स है.
ग्लूकोज आपके रक्तप्रवाह में प्रवेश करता है, जो आपके अग्न्याशय को इंसुलिन छोड़ने का संकेत देता है. इंसुलिन आपके रक्त में ग्लूकोज को आपकी मांसपेशियों, वसा और यकृत कोशिकाओं में प्रवेश करने में मदद करता है ताकि वे इसे ऊर्जा के लिए उपयोग कर सकें या बाद में उपयोग के लिए संग्रहीत कर सकें.जब ग्लूकोज आपकी कोशिकाओं में प्रवेश करता है और आपके रक्तप्रवाह में स्तर कम हो जाता है, तो यह आपके अग्न्याशय को इंसुलिन का उत्पादन बंद करने का संकेत देता है.
टाइप 1 मधुमेह के लिए कुछ नए उपचार हैं, जिनमें शामिल हैं:
लैंटिड्रा
टाइप 1 मधुमेह के लिए FDA द्वारा स्वीकृत पहली सेलुलर थेरेपी. यह उन वयस्कों के लिए है, जिन्हें मधुमेह प्रबंधन के बावजूद गंभीर हाइपोग्लाइसीमिया के एपिसोड बार-बार होते हैं. लैंटिड्रा मृतक दाताओं की अग्नाशय कोशिकाओं से बनाया जाता है.
टेप्लिज़ुमैब
एक इम्यूनोथेरेपी दवा जो टाइप 1 मधुमेह की शुरुआत में देरी कर सकती है। इसे Tzield ब्रांड नाम से बेचा जाता है और यह स्टेज 2 टाइप 1 मधुमेह से पीड़ित 8 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए है. टेप्लिज़ुमैब को 12 दिनों के लिए दैनिक जलसेक के माध्यम से दिया जाता है.
स्टेम सेल थेरेपी
एक आशाजनक नया उपचार जिसमें स्टेम सेल से प्राप्त ताजा आइलेट कोशिकाओं को रोगी के शरीर में पेश करना शामिल है. इसका लक्ष्य इन नई आइलेट कोशिकाओं के माध्यम से रोगियों के अग्न्याशय की इंसुलिन का उत्पादन करने की क्षमता को बहाल करना है.
टाइप-1 डायबिटीज बीमारी
CDC के अनुसार, टाइप-1 डायबिटीज मेटाबॉलिक डिसऑर्डर है. इसे इंसुलिन-डिपेंडेंट डायबिटीज या जुवेनाइल डायबिटीज भी कहते हैं. ये बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है. हालांकि, ज्यादातर बच्चे इसका शिकार बनते हैं. इस बीमारी में पैंक्रियाज इंसुलिन हॉर्मोन का प्रोडक्शन कम या पूरी तरह बंद कर देता है. इसी हॉर्मोन से शरीर में ब्लड शुगर कंट्रोल और रेगुलेट होता है.
टाइप-1 डायबिटीज क्यों होती है?
सीडीसी के मुताबिक, जब इम्यून सिस्टम गलती से पैंक्रियाज में इंसुलिन बनाने वाली बीटा सेल्स को डैमेज कर देता है, तब टाइप-1 डायबिटीज हो जाती है. यह ऑटोइम्यून डिसऑर्डर होती है, जो पीढ़ी-दर-पपीढ़ी भी हो सकती है, इसलिए ज्यादा खतरनाक मानी जाती है. यही कारण है कि डॉक्टर दिनचर्या और खानपान बेहतर बनाने की सलाह देते हैं.
टाइप-1 डायबिटीज के क्या-क्या लक्षण हैं?
1. अचानक से वजन कम हो जाना
2. सोते हुए बिस्तर पर यूरिन आना
3. बार-बार पेशाब आना
4. धुंधला नजर आना
5. बार-बार प्यास लगना
6. बहुत ज्यादा भूख लगना
7. बहुत जल्दी थकान और कमजोरी महसूस होना
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टाइप 1 डायबिटीज का खतरा किसे है?
इस प्रकार के डायबिटीज के बारे में अभी बहुत शोध करने की ज़रूरत है। इसी तरह इसके खतरे या रिस्क फैक्टर्स के बारे में भी बहुत कम जानकारी उपलब्ध है. हालांकि, रिसर्चर्स ने कुछ ऐसे ग्रुप्स का पता लगाया है जिन्हें टाइप 1 डायबिटीज का खतरा दूसरों की तुलना में अधिक है, जैसे:
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- ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता दोनों को डायबिटीज हो
- जेस्टेशन डायबिटीज से पीड़ित मां के बच्चे
- पैंक्रियाज़ से जुड़े इंफेक्शन, चोट या ट्रॉमा से गुज़र चुके बच्चे
- बहुत ठंडे प्रदेशों में रहने वाले लोग
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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