Ramadan: इस्लाम (Islam) धर्म के पांच प्रमुख स्तंभ है, जिसमें रोजा भी एक है. ये पांच स्तंभ या फर्ज हैं- कलमा, नमाज, जकात, हज (Hajj) और रोजा. साल 622 में रोजा को इस्लाम के लिए फर्ज यानी अनिवार्य बनाया गया है. हालांकि इससे पहले से ही मुसलमान रोजा रखते आ रहे हैं लेकिन यह वह समय था जब रोजा को फर्ज बनाया गया.
इस्लाम में रोजा रखने की शुरुआत पैगंबर मोहम्मद (Prophet Mohammed) के समय से मानी जाती है. इस्लाम धर्म में रमजान (Ramadan) के पाक महीने में पूरे 29-30 दिनों का रोजा रखे जाते हैं. इसके अलावा ईद के बाद 6 रोजे, मुहर्रम, बकरीद, शाबान, रजब आदि में रोजा रखे जाते हैं. इस्लामिक मान्यता अनुसार रोजा रमजान के अलावा नफिल रोजा रखना बहुत ही सवाब है.
लेकिन एक ओर नफिल रोजा रखना जहां सवाब है वहीं नहीं भी रखना गुनाह नहीं है. रमजान के दौरान भी ऐसे लोगों को रोजा रखने की छूट होती है जो शारीरिक रूप से अस्वस्थ होते हैं, वृद्ध होते है या उम्र में बहुत छोटे हैं. इसके साथ ही पूरे साल में कुछ ऐसे भी दिन है जिसमें रोजा रखने की सख्त मनाही है. इन दिनों में रोजा रखना हराम माना गया है. आइये जानते हैं इन दिनों के बारे में-
साल के दिनों में रोजा नहीं रखते मुसलमान
पूरे साल में 2 दिन ऐसे होते हैं, जब रोजा रखने की मनाही होती है. कहा जाता है कि पैगंबर मोहम्मद ने मुसलमानों को इन दो दिनों में रोजा रखने से मना किया है. ये दो दिन है अजहा और फित्र (फितर). साल के इन दो दिनों में रोजा रखने की मनाही है. वहीं बाकी दिनों में रोजा रखने की इजाजत है.
अजहा और फितर में रोजा रखना क्यों हराम
दरअसल अजहा (Adha) और फितर (Fitr) उत्सव मनाने का दिन होता है, इसलिए इन दिनों में रोजा नहीं रखना चाहिए. उत्सव के दिनों में उपवास या रोजा रखना हराम माना जाता है. बता दें कि साल में दो बार ईद आती है. एक को ईद-उल-फितर या मीठी ईद कहते हैं. वहीं दूसरी ईद को ईद-उल-अजहा या बकरीद कहा जाता है. मुस्लिम समुदाय के लिए दोनों ही जश्न का दिन होता है.
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