Pradosh Vrat 2025: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत को बहुत शक्तिशाली और पवित्र माना गया है. भक्त इस दिन पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ उपवास रखते हैं. यह व्रत अच्छे स्वास्थ्य, मानसिक शांति और मोक्ष प्राप्त करने का एक साधन माना जाता है.
‘प्रदोष’ शब्द का अर्थ रात का आरंभिक भाग या संध्या का समय होता है. इसलिए यह व्रत संध्याकाल में किया जाता है और इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है. शिव पुराण के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
यह व्रत हर चंद्र मास की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है. सातों प्रदोष व्रतों में शनिवार को आने वाला शनि प्रदोष और सोमवार को पड़ने वाला सोम प्रदोष सबसे शुभ और प्रभावशाली माने जाते हैं.
व्रत कथा: स्कंद पुराण में भगवान शिव से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा मिलती है. इस कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ था. तब भगवान शिव ने ब्रह्मांड की रक्षा के लिए विषपान किया था. इसी घटना की स्मृति में प्रदोष व्रत रखा जाता है. सत् युग से भी पहले देवता और असुर दोनों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था.
अमृत प्राप्त करने के लिए उन्होंने विशाल सर्प वासुकी को रस्सी की तरह उपयोग किया और सागर को मथना शुरू किया. मंथन से सबसे पहले विष निकला. यह विष इतना प्रचंड था कि पूरे ब्रह्मांड का नाश कर सकता था. देवता हों या असुर कोई भी इस विष को पीने का साहस नहीं कर पाया.
तब भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए सारा हलाहल पी लिया. माता पार्वती ने उनके गले पर हाथ रख दिया ताकि विष नीचे न जा सके. इसी कारण उनका गला नीला पड़ गया. जिससे वे नीलकंठ कहलाएं. जिस दिन उन्होंने इस विष की अंतिम बूंद पी. वही दिन प्रदोष के रूप में मनाया जाता है.
प्रदोष व्रत कैसे करें: प्रदोष व्रत का दिन सुख, समृद्धि और कल्याण लाने वाला माना जाता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा की जाती है. भक्त सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनते हैं. दिनभर संयम व भक्ति भाव से रहते हैं. संध्या के समय मंदिर जाकर भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन करना सबसे शुभ माना जाता है.
पूजा की शुरुआत भगवान शिव और पार्वती को प्रसन्न करने के लिए की जाने वाली प्रार्थना और मंत्रोच्चार से होती है. इसके बाद अन्य देवताओं की पूजा की जाती है. भक्त घी का दीया जलाते हैं और श्रद्धा से शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र चढ़ाते हैं. पूजा के दौरान महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप किया जाता है.
व्रत करने का तरीका: हिंदू पंचांग और परंपराओं के अनुसार, प्रदोष व्रत रखने के दो मुख्य तरीके हैं. पहला तरीका यह है कि भक्त सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक 24 घंटे का उपवास रखते हैं. इस दौरान वे भोजन नहीं करते और रातभर जागरण करते हैं.
अगले दिन प्रातः स्नान करके भगवान शिव की आराधना करने के बाद ही व्रत तोड़ते हैं. दूसरे तरीका में भक्त सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक उपवास रखते हैं. इसलिए इस अवधि में पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है. सूर्यास्त से पहले भक्त स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं. भगवान शिव के मंदिर जाते हैं.
संध्या समय में शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र और पुष्प अर्पित कर पूजा करते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया उपवास और पूजन भगवान शिव को अत्यंत प्रिय होता है और इससे भक्त के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.











