सोनभद्र। सोनभद्र नगर में 124 वर्षों से श्री बालाजी (श्री हनुमान मंदिर) श्रद्धालुओं, भक्तों केआस्था, विश्वास,श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। श्री बालाजी ( श्री हनुमान जयंती) मनाने की परंपरा 124 वर्ष पूर्व मंदिर के संस्थापक दुलीचंद केडिया और उनकी धर्मपत्नी पार्वती देवी ने आरंभ किया था।
संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश लखनऊ के विशेषज्ञ, इतिहासकार दीपक कुमार केसरवानी के अनुसार- वर्तमान सोनभद्र जनपद (मिर्जापुर के दक्षिणांचल नाम से प्रसिद्ध था) इस जनपद में अंग्रेजों की सत्ता कायम होने के पश्चात विकास का दौर प्रारंभ हुआ, सोनभद्र नगर (रॉबर्ट्सगंज) में मिर्जापुर सहित पंजाब, हरियाणा, राजस्थान आदि व्यापारिक राज्यों के वैश्य व्यापारी इस नगर में व्यापार के लिए बस गए। इनमें एक थे राजस्थान राज्य के झुंझुनू जिले के मंदिरो, हवेलियों, जलाशयों , स्वादिष्ट पेड़ों के लिए प्रसिद्ध मेहंदीपुर बालाजी के परम भक्त शहर चिडावा के निवासी दुलीचंद केडिया अपनी पत्नी पार्वती देवी के साथ नगर के मुख्य चौराहा पर झोपड़ी मे किराने की दुकान खोलकर बस गए।
मिर्जापुर के दक्षिणांचल के खनिज पदार्थों के दोहन, प्राकृतिक उत्पादों पर कब्जा जमाने के लिए अंग्रेजों ने इस जंगली क्षेत्र में पांव पसारना शुरू कर दिया था, इसी के परिणाम स्वरूप सन 1846 में रॉबर्ट्सगंज नगर की स्थापना हुई थी। इसमें चौराहे पर व्यापारी रघुनाथ साव, प्रथम नागरिक जगन्नाथ साहू, दुलीचंद केडिया आदि लोगों का निवास स्थान एवं दुकान कायम था। दुलीचंद केडिया, पार्वती देवी ने अपने इष्ट देवता मेहंदीपुर बालाजी की प्रेरणा से नगर के उत्तरी छोर पर श्री बालाजी के मंदिर की स्थापना हेतु भूमि क्रय कर मेहंदीपुर बालाजी के मंदिर में स्थापित बाल रूप संकट मोचन हनुमान की एक प्रतिकृति झोपड़ी में अदलगंज से ब्राह्मणों को बुलाकर तांत्रिक एवं अनुष्ठानिक विधि -विधान से प्राण- प्रतिष्ठा कराया। धीरे-धीरे इस मंदिर की ख्याति क्षेत्र भर में फैली और श्रद्धालु इस मंदिर पर अपनी मन्नत पूरी करने के लिए अनुष्ठानिक दर्शन, पूजन हेतु आने लगे।
कालांतर में बालाजी के परम भक्त, आयुर्वेद के ज्ञाता,राधा कृष्ण केडिया बालाजी के सेवक बने। ये विषैले जंतुओं के काटने, अन्य रोगो का इलाज आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां के माध्यम से करते थे। अखाड़े के माध्यम से युवाओं को कुश्ती, युद्ध कला का प्रशिक्षण दिया करते थे। इन्होंने मंदिर परिसर में भगवान शिव, कुल देवता के मंदिर की स्थापना कर नगर की पेयजल समस्या के निदान के लिए बालाजी मंदिर परिसर में एक कुआ का निर्माण कराया जिससे इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों की पेयजल समस्या का निदान हुआ।
आयुर्वेदाचार्य राधा कृष्ण केडिया के निधन के पश्चात परंपरागत रूप से बालाजी के सेवक राम अवतार केडिया बने इन्होंने मंदिर का जिर्णाेद्धार, अवतार उपवन का निर्माण सन 1978 में कराया। श्री बालाजी की महिमा के बारे में ऐसी मान्यता है कि बालाजी के जयंती के दिन स्थापना काल से ही भक्तों द्वारा बालाजी को नारियल चढ़ाए जाने की परंपरा कायम है और दूसरे दिन यह नारियल बालाजी की कृपा से फटा मिलता है, इसे भक्त बालाजी का पुण्य प्रताप मानते हैं साल भर के अंदर भक्तों की मन्नत पूरी हो जाती है। बालाजी जयंती के दिन मंदिर परिसर में मन्नत धागा भी बांधने का प्रचलन है।
आज भी सोनभद्र जनपद की एकमात्र प्राचीन श्री बालाजी मंदिर में हनुमान जयंती सहित अन्य अवसरों पर परंपरागत रूप से पूजा- अनुष्ठान मंदिर के संस्थापक श्री दुलीचंद केडिया के वंशधर निर्मल केडिया, अनुज केडिया,किशोर केडिया द्वारा संपन्न किया जा रहा है।
इस मंदिर परिसर में मांगलिक अनुष्ठान, विवाह मुंडन संस्कार, श्री खाटू श्याम, श्री बालाजी की शोभायात्रा सहित अन्य यात्राओं की आयोजन का केंद्र श्री बालाजी मंदिर परिसर बना हुआ है।
श्री बालाजी (124 वी श्री हनुमान जयंती) के अवसर पर उत्तर मोहाल के श्री राम अवतार उपवन में का भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य जजमान किशोर केडिया- दीप्ति केडिया द्वारा देवी- देवताओं के अनुष्ठानिक पूजन से प्रारंभ हुआ।
इस अवसर पर राजकुमार अग्रवाल, अजय, रजत, प्राची, डाली, शिवानी, पवन, पंकज, संकल्प, तरुण, अंकित, भरत, राघव सहित, मारवाड़ी महिला सोन मंच के सदस्यों एवं पदाधिकारी द्वारा सामूहिक सुंदरकांड का पाठ, श्री बालाजी (श्री हनुमान जन्मोत्सव) की झांकी दर्शन भक्तों ने किया।