कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद भर्तृहरि महताब को लोकसभा का अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस ने अपने आठ बार के सांसद कोडिकुनिल सुरेश के बजाय महताब को अस्थायी अध्यक्ष बनाए जाने को संसदीय मानदंडों को नष्ट करने का प्रयास बताया। वहीं, अब सुरेश ने भी कई आरोप लगाए हैं। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि लोकसभा का वरिष्ठ सदस्य होने के नाते उन्हें अस्थायी अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए था। भाजपा ने ऐसा करके दिखा दिया है कि वह संसदीय प्रक्रियाओं की अनदेखी करना जारी रखेगी जैसा कि वह पहले भी दो बार कर चुकी है।
इससे पहले, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा था कि सुरेश को अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किया जाना चाहिए था क्योंकि वह आठ बार के सांसद हैं, जबकि महताब सात बार के सांसद है। महताब को अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के एक दिन बाद सुरेश ने कहा कि यह अतीत में अपनाई गई परंपराओं के खिलाफ है।
उन्होंने पत्रकारों से कहा कि यह फैसला देश में संसदीय लोकतंत्र के लिए खतरा है। यह संकेत देता है कि भाजपा संसदीय प्रक्रियाओं को दरकिनार करना जारी रखेगी या अपने हितों के लिए उनका इस्तेमाल करेगी, जैसा कि उसने पहले भी दो बार किया है।
कब होगा विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव?
बता दें, अस्थायी अध्यक्ष 18वीं लोकसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाएंगे और अध्यक्ष के चुनाव तक निचले सदन की अध्यक्षता करेंगे। वरिष्ठतम सदस्य को अस्थाई अध्यक्ष नियुक्त करने की परंपरा 1956 में नहीं थी जब सरदार हुकम सिंह को इस पद पर नियुक्त किया गया था। सन् 1977 में डीएन तिवारी को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया गया। वह भी सदन के वरिष्ठतम सदस्य नहीं थे। 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून से शुरू होगा। नवनिर्वाचित सदस्य 24-25 जून को शपथ लेंगे। विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव 26 जून को होना है।
सुरेश ने कहा कि इस फैसले से यह भी संकेत मिलता है कि भाजपा विपक्ष का अपमान करती रहेगी। उसके अवसरों को छीन लेगी और उसे वह पहचान नहीं देगी, जिसका वह हकदार है। उन्होंने (भाजपा) पिछली दो बार सत्ता में रहते हुए भी यही किया है।
भाजपा के पास बहुमत नहीं
मवेलिक्कारा लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद ने कहा कि भाजपा के पास सदन में अपने दम पर बहुमत नहीं होने के बावजूद, जैसा कि उसने पिछली दो बार किया था, उसके खुद के आचरण में कोई बदलाव नहीं आया। पुरानी परंपराओं के अनुसार सबसे ज्यादा बार सांसद रहे लोकसभा सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है। उन्होंने आगे कहा, ‘यह परंपरा पहले भी अपनाई गई थी जब कांग्रेस, यूपीए, भाजपा और एनडीए सत्ता में थे।’
मुझे अस्थायी अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए था
सुरेश ने दावा किया कि पिछली बार मेनका गांधी प्रोटेम स्पीकर बनने के योग्य थीं, लेकिन उन्हें दिलचस्पी नहीं थी क्योंकि उन्हें केंद्रीय मंत्री नहीं बनाया गया था। उन्होंने कहा, ‘उनके बाद सबसे वरिष्ठ सांसद मैं और भाजपा के वीरेंद्र कुमार रहे। मगर कुमार को अस्थायी अध्यक्ष चुना गया। इस बार भी कुमार और मैं सबसे वरिष्ठ सांसद थे। उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया था और इसलिए, स्वचालित रूप से, लोकसभा नियमों, प्रक्रियाओं और परंपराओं के अनुसार, मुझे अस्थायी अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए था।’
उन्होंने कहा, ‘लोकसभा सचिवालय ने मेरे नाम की सिफारिश की थी, लेकिन जब केंद्र ने राष्ट्रपति को अपनी सिफारिश भेजी तो मेरा नाम नहीं लिया गया।’ केंद्र के इस फैसले की गुरुवार को कांग्रेस ने तीखी आलोचना की थी।