निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद व सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर।
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सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी-एसटी) कोटे के भीतर कोटा वैधानिक ठहराने के बाद यूपी में ओबीसी आरक्षण के भीतर आरक्षण देने की मांग गरमा गई है। एनडीए में शामिल सुभासपा के महासचिव अरुण राजभर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि ओबीसी में भी आरक्षण के भीतर आरक्षण लागू किया जाना चाहिए। भाजपा एमएलसी व डॉ. अंबेडकर महासभा ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल ने संपन्न दलितों से आरक्षण का लाभ न लेने का आह्वान किया है। अलबत्ता, बसपा आरक्षण के बंटवारे के पक्ष में नहीं है। सपा भी ओबीसी आरक्षण में बंटवारे और क्रीमीलेयर की व्यवस्था के पहले से ही खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को एससी-एसटी के लिए नौकरियों व शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए तय आरक्षण के भीतर आरक्षण लागू करने की अनुमति दे दी है। ओबीसी वर्ग के लिए इसी तरह की मांग लंबे समय से की जा रही है। भाजपा सरकार में सहयोगी दल के रूप में शामिल सुभासपा और निषाद पार्टी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण के भीतर आरक्षण की लगातार मांग कर रहे हैं।
आरक्षण के भीतर आरक्षण के समर्थकों का कहना है कि ओबीसी आरक्षण का यादव और कुर्मियों ने अधिक फायदा लिया है। इसलिए अब अति पिछड़ों पर अलग से ध्यान दिया जाना चाहिए। इसी तरह से दलितों में वाल्मीकि, धानुक और डोम सरीखी जातियों को कम लाभ मिलने की बात समय-समय पर उठती रही है।
ओबीसी आरक्षण को तीन श्रेणियों में बांटने की हो चुकी है सिफारिश
यूपी में वर्ष 2017 में भाजपा सरकार बनने पर सामाजिक न्याय समिति का गठन किया गया। इस समिति ने वर्ष 2018 में राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपी लेकिन इसे आधिकारिक रूप से सार्वजनिक नहीं किया गया। सूत्रों के अनुसार, रिपोर्ट में ओबीसी आरक्षण का तीन श्रेणियों में वर्गीकरण किया गया था। पहली श्रेणी के लिए 27 फीसदी में से 7 फीसदी आरक्षण देने की संस्तुति की गई। इसमें अहीर, यादव, सोनार, सुनार, स्वर्णकार, कुर्मी, जाट, हलवाई, चौरसिया, सैथवार, पटेल आदि जातियों को शामिल करने की सिफारिश की गई। दूसरी श्रेणी में गुर्जर, गिरी, लोध, मौर्य, लोधी राजपूत, काछी, कुशवाहा, शाक्य, तेली आदि जातियों को रखा गया। इन्हें 11 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की गई। तीसरी श्रेणी में अत्यंत पिछड़ी मानी जाने वाली जातियां राजभर, निषाद, मल्लाह, घोसी, धीवर, कश्यप, केवट, नट आदि जातियों को रखा गया, जिन्हें 9 फीसदी आरक्षण देने की संस्तुति की गई।