नई दिल्ली: बॉलीवुड के मशहूर गीतकार गुलजार का जन्म 18 अगस्त 1934 को पंजाब (अब पाकिस्तान) में झेलम जिले के दीना गांव में हुआ था. गुलजार ने कभी नहीं सोचा था कि उन्हें किस्मत बंबई (अब मुंबई) लेकर आएगी, लेकिन ‘किस्मत का कनेक्शन’ ऐसा रहा कि उन्होंने बॉलीवुड में बड़ा नाम कमाया. हॉलीवुड तक उनके कलम की शोहरत पहुंची. गीतकार की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन जो हासिल किया वो लाजवाब रहा. आइए, जानते हैं कि संपूरण सिंह कालरा कैसे गुलजार बने.
मशहूर कवि, लेखक, गीतकार और स्क्रीन राइटर गुलजार किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. 1947 में बंटवारे के बाद गुलजार का परिवार भारत आ गया था. परिवार ने अमृतसर में आशियाना बनाया. उनके पिता का नाम माखन सिंह कालरा और मां का नाम सुजान कौर था. जब गुलजार छोटे थे, तब उनकी मां दुनिया से रुखसत हो गई थीं. उनके हिस्से में पिता का प्यार भी नहीं आया. बचपन से लिखने-पढ़ने का शौक था तो संपूरण सिंह ने अपने खालीपन को शब्दों से भरना शुरू कर दिया. एक वक्त आया जब गुलजार ने सपनों की नगरी मुंबई का रुख किया और यहीं के होकर रह गए.
विमल रॉय के असिस्टेंट के तौर पर शुरू किया था काम
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गुलजार ने मुंबई आकर गैराज में काम करना शुरू किया था. वे खाली समय में कविताएं लिखने में जुट जाते थे. उनके फिल्मी करियर की शुरुआत 1961 में विमल रॉय के असिस्टेंट के रूप में हुई. गुलजार ने ऋषिकेश मुखर्जी और हेमंत कुमार के साथ भी काम किया था. इसी बीच उन्हें ‘बंदिनी’ फिल्म में गीत (लिरिक्स) लिखने का मौका मिला. वे अपने पहले ही गाने ‘मेरा गोरा रंग लई ले’ से मशहूर हो गए थे. इसके बाद गुलजार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
पाकिस्तान से भारत आए थे गुलजार
संपूरण सिंह कालरा के गुलजार बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. फिल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले संपूरण सिंह कालरा ने अपना नाम ‘गुलजार दीनवी’ कर लिया था. उनका परिवार दीना गांव (अब पाकिस्तान) से था. उन्होंने अपने नए नाम गुलजार में ‘दीनवी’ भी जोड़ लिया. वक्त गुजरा तो उन्होंने अपने नाम से ‘दीनवी’ को विदाई दे दी और सिर्फ गुलजार होकर रह गए. गुलजार का मतलब होता है, जहां गुलाबों या फूलों (गुलों) का बगीचा हो. हकीकत में गुलजार ने अपने नाम के मतलब के लिहाज से हर गीत लिखे, जिसमें शब्दों की बेइंतहा खुशबू शामिल रहती है.
गुलजार ने कई फिल्में भी की हैं डायरेक्ट
डायरेक्टर बिमल रॉय के साथ काम करने के दौरान ही गुलजार की मुलाकात आरडी बर्मन से हुई. गुलजार ने गीत लिखने के साथ फिल्मों का डायरेक्शन भी किया. उन्होंने ‘आंधी’, ‘किरदार’, ‘मौसम’, ‘नमकीन’, ‘लिबास’, ‘हूतूतू’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया. छोटे पर्दे के लिए भी ‘मिर्ज़ा गालिब’ जैसे सीरियल का डायरेक्शन किया. गुलजार की ‘माचिस’ फिल्म ने दुनिया को दिखा दिया कि उन्हें शब्दों का जादूगर ऐसे ही नहीं कहा जाता! गुलजार को फिल्म फेयर, साहित्य अकादमी, पद्म भूषण, ग्रैमी, दादा साहब फाल्के से लेकर ऑस्कर अवॉर्ड तक मिल चुके हैं.
एक्ट्रेस राखी से की थी शादी
गुलजार ने अपने करियर में कई गाने लिखे. जिनमें ‘तुझसे नाराज नहीं जिंदगी’, ‘तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं’, ‘आने वाला पल जाने वाला है’, ‘मुसाफिर हूं यारो’, ‘हजार राहें’, ‘मेरा कुछ सामान’, ‘साथिया’, ‘जय हो’, ‘कजरारे-कजरारे’ जैसे कई गाने शुमार हैं. गुलजार की पर्सनल लाइफ सफल नहीं मानी जा सकती है. उन्होंने 1973 में एक्ट्रेस राखी से शादी की. लेकिन, दोनों का रिश्ता एक साल के भीतर टूट गया. दोनों अलग-अलग रहने लगे. लेकिन, आज तक एक-दूसरे को तलाक नहीं दिया. दोनों की एक बेटी है, जिनका नाम है मेघना गुलजार.
गुलजार के नक्शे-कदम पर चल रहीं बेटी मेघना
गुलजार की बेटी मेघना अपने माता-पिता की तरह बॉलीवुड में बड़ा नाम हैं. मेघना डायरेक्टर हैं, जिनकी फिल्में खूब तारीफ बटोरती हैं. गुलजार उन्हें प्यार से बोस्की पुकारते हैं. गुलजार आज भी लिख रहे हैं. गीत, कविता, शेरो-शायरी, हर फन में गुलजार के शब्दों का सफर जारी है. जैसे गुलजार कहना चाहते हैं, ‘तुझसे नाराज नहीं जिंदगी, हैरान हूं मैं, तेरे मासूम सवालों से परेशान हूं मैं….’
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FIRST PUBLISHED : August 17, 2024, 18:57 IST