सांकेतिक तस्वीर।
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पत्थर काटने, ड्रिल करने के दौरान या सीमेंट उद्योग से निकलने वाली सिलिका युक्त धूल जब सांस के जरिये शरीर में पहुंचती है तो इसके संपर्क में आने वाले मजदूर और अन्य कर्मचारी फेफड़ों की जानलेवा बीमारी सिलिकोसिस हो जाते हैं। श्रमिकों के जीवनभर सिलिका धूल के स्वीकार्य स्तर के संपर्क में रहने के बावजूद सिलिकोसिस विकसित होने का खतरा बहुत अधिक होता है। स्वीकार्य सीमा को घटाकर आधा करने से लाखों मजदूरों की जान बचाई जा सकती है।
इंपीरियल कॉलेज लंदन से जुड़े शोधकर्ताओं ने अध्ययन के आधार पर यह सुझाव दिया है। अध्ययन के नतीजे ब्रिटिश मेडिकल जर्नल थोरैक्स में प्रकाशित हुए हैं। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने आठ अन्य अध्ययनों का विश्लेषण किया है। इनमें से ज्यादातर अध्ययन खनिकों पर केंद्रित थे। अध्ययन में शामिल 65,977 लोगों में से 8,792 लोग सिलिकोसिस का शिकार थे। इसकी पुष्टि उनके फेफड़ों के एक्स-रे, पोस्टमॉर्टम के नतीजों और मृत्यु प्रमाण पत्र से हुई है। शोधकर्ताओं ने इस बात का भी पता करने की कोशिश की है कि जो लोग अपने काम के दौरान चार दशकों से भी ज्यादा समय तक सिलिका युक्त धूल के संपर्क में रहे हैं उनमें सिलिकोसिस होने का खतरा कितना ज्यादा है।
सिलिकोसिस के मामलों में 77% की कमी मुमकिन
अध्ययन के मुताबिक, यदि चार दशकों के कामकाजी जीवन में सिलिका के औसत जोखिम को 0.1 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से घटाकर 0.05 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर कर दिया जाए तो सिलिकोसिस के मामलों में 77 फीसदी की कमी हो सकती है। इसकी मदद से 1,000 खनिकों में सिलिकोसिस के 298 से 344 मामलों को टाला जा सकता है। वहीं, गैर खनन श्रमिकों के मामले में प्रति हजार की आबादी पर सिलिकोसिस के 33 मामले कम किए जा सकते हैं। इस अध्ययन के नतीजे आठ घंटों की शिफ्ट पर लागू होते हैं।