दुद्धी/सोनभद्र। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के चिन्तक और संगठनकर्त्ता एकात्म मानववाद के प्रणेता, कुशल राजनेता, साहित्यकार पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्म 25 सितम्बर 1916 को राजस्थान के जयपुर अजमेर में नगला चंद्रभान गांव में धनकिया नामक स्थान पर हुआ था। पिता भगवती प्रसाद उपाध्याय और माता रामप्यारीदेवी के सानिध्य में बहुत कम समय तक रहने वाले दीनदयाल जी ने पिता, माता, भाई, नाना, नानी, मामी और बहन की मृत्यु से गहन साक्षात्कार किया। अपने सगे लोगों की मृत्यु ने इनको झकझोर कर रख दिया। बीए और बीटी करने के बाद मामा के आग्रह पर इन्होंने प्रशासनिक परीक्षा भी दिए और उत्तीर्ण भी हुए लेकिन नौकरी नहीं किए। स्नातक की पढ़ाई के दौरान इनके मित्र बालू जी महाशब्दे ने इनका परिचय आरएसएस के संस्थापक सरसंघचालक हेडगेवार जी से कराया और ये राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य बन गए। बाद में ये संघ के आजीवन प्रचारक बन गए। संघ के माध्यम से दीनदयाल जी राजनीति में आए। 21 अक्टूबर 1951 को डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की अध्यक्षता में जनसंघ की स्थापना हुई। 1952 के कानपुर में द्वितीय अधिवेशन में भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय महामंत्री बने। इस अधिवेशन में 15 प्रस्ताव पारित हुए जिसमें 7 प्रस्ताव दीनदयाल जी ने बनाया था। उनकी कार्यकुशलता और संगठन निष्ठा को देखकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी ने कहा था कि यदि मुझे दो दीनदयाल मिल जाते तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा ही बदल देते। उक्त बातें भाजपा नेता सुरेन्द्र अग्रहरि ने ठठेरी मुहाल/महावीर मुहाल में आयोजित पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी के जन्मदिवस पर कही।
उन्होंने कहा कि दीनदयाल जी ने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकुल रूप में प्रस्तुत करते हुए एकात्म मानववाद की विचारधारा दी। वे एक समावेशित विचारधारा के समर्थक थे जो एक मजबूत और सशक्त भारत चाहते थे। पक्ति में खड़े अन्तिम व्यक्ति तक सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचे ।इस सोच को विकसित करने वाले उपाध्याय जी की प्रेरणा से देश के यशस्वी प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी देश को विकसित भारत बनाने का संकल्प लिया है।साथ ही हर गरीब तक सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचे ऐसी व्यवस्था सरकार कर रही है। हमसभी लोगो को भी अपने देश को मजबूत और सशक्त बनाने के लिए आर्थिक, शैक्षिक, सामाजिक,और राजनैतिक रूप से मजबूत करना चाहिए।
इस अवसर पर सभासद धीरज जायसवाल, लक्ष्मी नारायण केशरी, प्रेम कांस्यकार, ईश्वरी प्रसाद अग्रहरि, रवि अग्रहरि,विश्वनाथ अग्रहरि, आनन्द चंद्रवंशी, रिशु अग्रहरि आदि कार्यकर्त्ता मौजूद रहे।