चीन और भारत
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पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर डिसइंगेजमेंट यानी सैन्य विघटन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। देपसांग और डेमचॉक में स्थानीय कमांडर स्तर की मीटिंग 22 अक्तूबर से शुरू हुई। इस मीटिंग के बाद डेमचॉक में दोनों तरफ से एक-एक टेंट हटाया गया और गुरुवार को कुछ अस्थायी संरचनाओं को भी तोड़ा गया। गौरतलब है कि दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गश्ती को लेकर बीते दिनों एक अहम समझौता हुआ। विदेश मंत्री डॉ जयशंकर ने सीमा पर तनाव घटाने की दिशा में इसे बड़ी पहल बताया।
अस्थायी संरचनाओं को हटाया जाएगा
डेमचॉक में भारतीय सैनिक चार्डिंग नाले के पश्चिम की तरफ पीछे की ओर जा रहे हैं और चीनी सैनिक (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) नाले के दूसरी तरफ यानी पूरब की तरफ वापस जा रहे हैं। दोनों तरफ से करीब 10-12 अस्थायी संरचना यानी टेंपरेरी स्ट्रक्चर बने हैं और दोनों तरफ से करीब 12-12 टेंट लगे हैं, जो हटने हैं।
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अगले 4-5 दिनों में पेट्रोलिंग शुरू होने की उम्मीद
देपसांग में चीनी सेना के टेंट नहीं हैं, लेकिन उन्होंने गाड़ियों के बीच में तिरपाल लगाकर टेंपरेरी शेल्टर बनाए हैं। गुरुवार को यहां से भी चीनी सैनिकों ने अपनी कुछ गाड़ियां कम की हैं। भारतीय सेना ने भी कुछ सैनिकों की संख्या गुरुवार को यहां से कम की। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद देपसांग और डेमचॉक में अगले 4-5 दिनों में पेट्रोलिंग शुरू होने की उम्मीद है।
पेट्रोलिंग की सूचना पहले मिलने से टकराव की आशंका खत्म होगी
इससे पहले रक्षा मामलों के जानकार और पूर्व सैन्य अधिकारी प्रवीण साहनी ने बताया कि चीनी वार्ताकारों ने 29 अगस्त को बीजिंग में अपने भारतीय समकक्षों के सामने सैनिकों की वापसी, पेट्रोलिंग और चरागाह व्यवस्था शुरू करने की पेशकश की थी। इसके बाद एलएसी पर गश्ती को लेकर समझौता करने में मदद मिली। साहनी के मुताबिक समझौते को दो चरणों में लागू किया जाना है। पहले चरण में, दोनों देश देपसांग और डेमचोक (पूर्वी लद्दाख में दो शेष टकराव के पॉइंट) में एक-दूसरे के इलाके में दो किलोमीटर अंदर तक गश्त कर सकेंगे और और मवेशियों को चरने के लिए भेजेंगे। वहीं गश्त की जानकारी एक-दूसरे को पहले ही देनी होगी। दोनों देशों को गश्त करने वाले जवानों की संख्या, समय और पेट्रोलिंग की अवधि के बारे में सूचित करना होगा। पेट्रोलिंग की सूचना पहले मिलने से ‘गलतफहमी से बचने’ में मदद मिलेगी।
चीन भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाना चाहता है
साहनी के मुताबिक भारत और चीन पहले चरण में अपनी सेनाओं को पीछे हटाना (डिसइंगेजमेंट) शुरू करेंगे और चार किलोमीटर का बफर जोन बनाएंगे। जहां दोनों पक्ष एक-दूसरे को सूचित किए बिना नियमित पेट्रोलिंग कर सकेंगे। साहनी के मुताबिक एक बार जब सेना पीछे हट जाएंगी, तो दोनों पक्ष ‘सीमा क्षेत्रों’ के प्रबंधन के लिए नए सिरे से विश्वास बहाल करने की पहल करेंगे। लगभग पांच साल पहले हुए समझौते का जिक्र कर साहनी ने बताया कि 10 सितंबर, 2020 को मॉस्को में विदेश मंत्रियों जयशंकर और वांग यी ने जिस संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए थे, उनमें भी दोनों पक्षों ने इस पर सहमति व्यक्त की थी। वहीं बस इसमें डिएस्क्लेशन यानी सेना को पीछे हटाने का कोई जिक्र नहीं था। वह कहते हैं कि चीन की पेशकश को भारत की तरफ से पूरी तरह स्वीकार किया जाना, इस बात का सबूत है कि चीन भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने का इच्छुक है।
जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस में हुई बैठक
गौरतलब है की सीमा पर गश्ती से जुड़े समझौते के बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस में हुई बैठक भी सुर्खियों में रही। खास बात ये थी कि दोनों शीर्ष नेता पांच साल के बाद द्विपक्षीय वार्ता कर रहे थे। दोनों राष्ट्राध्यक्ष रूस के कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर मिले थे। लद्दाख की गलवां घाटी में पैंगोंग झील के पास दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से दोनों देशों के रिश्ते तल्ख हैं। अब उम्मीद जताई जा रही है कि रिश्तों में जमी बर्फ पिघलेगी।