Surya Saptami 2025: माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन रथ सप्तमी मनाई जाती है. इस दिन सूर्य देव और उनके रथ में लगे 7 अश्वों की भी पूजा का विधान है. इस दिन किए गए स्नान, दान, होम, पूजा आदि सत्कर्म हजार गुना अधिक फल देते हैं.
इसे आरोग्य सप्तमी भी कहा जाता है, क्योंकि सूर्य देव की पूजा से रोगों से मुक्ति पाने में मदद मिलती है. सूर्य देव का आत्मा का कारक माना गया है, मकर संक्रांति के बाद ये वो दिन है जब सूर्य देव की पूजा अधिक फलित होती है. आइए जानते हैं इस साल रथ सप्तमी 2025 की डेट, स्नान-दान का मुहूर्त, सूर्य पूजा और अर्घ्य का महत्व.
रथ सप्तमी 2025 डेट:
रथ सप्तमी 4 फरवरी 2025 मंगलवार को है. पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन महर्षि कश्यप और देवी अदिति के गर्भ से सूर्य देव का जन्म हुआ था.
- स्नान-दान – सुबह 5.23 – सुबह 6.15
- सूर्य अर्घ्य मुहूर्त – सुबह 7.08 पर होगा सूर्योदय
रथ सप्तमी पर स्नान कब करना चाहिए (Rath Saptami Snan Significance)
रथ सप्तमी पर अरुणोदय काल में स्नान करना चाहिए. सूर्योदय से पूर्व अरुणोदय काल (ब्रह्म मुहूर्त) में स्नान करने से मनुष्य स्वस्थ एवं सभी प्रकार के रोगों से मुक्त रहने का आशीर्वाद मिलता है.
सूर्य सप्तमी क्यों मनाई जाती है ? (Why we celebrate Rath Saptami)
यस्यां तिथौ रथं पूर्वं प्राप देवो दिवाकरः॥सा तिथिः कथिता विप्रैर्माघे या रथसप्तमी॥ 5.129 ॥
तस्यां दत्तं हुतं चेष्टं सर्वमेवाक्षयं मतम्॥ सर्वदारिद्र्यशमनं भास्करप्रीतये मतम्॥ 5.130 ॥
स्कंद पुराण में वर्णित इस श्लोक के अनुसार भगवान सूर्य जिस तिथि को पहले-पहल रथ पर आरूढ़ हुए, उस दिन माघ मास की सप्तमी तिथि थी, इसलिए इसे रथ सप्तमी कहा जाता है. सूर्य सप्तमी पर दिया हुआ दान और यज्ञ आदि अनुष्ठान करने से अक्षय फल प्राप्त होता है. ये सब प्रकार की दरिद्रता को दूर करने वाला और भगवान सूर्य की प्रसन्नता का साधक बताया गया है.
सूर्य सप्तमी पर सूरज की पूजा का लाभ
शास्त्रों में सूर्य को आरोग्यदायक कहा गया है तथा सूर्य की उपासना से रोग मुक्ति का मार्ग भी बताया गया है. ऐसी मान्यता है कि जो श्रद्धालु सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की आराधना करता है. उन्हें आरोग्य, पुत्र और धन की प्राप्ति होती है.
रथ सप्तमी पूजा विधि (Rath Saptami Puja Vidhi)
रथ सप्तमी पर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के पश्चात सूर्योदय के समय भगवान सूर्य की ओर मुख करके, नमस्कार मुद्रा में हाथ जोड़कर एक छोटे कलश से धीरे-धीरे भगवान सूर्य को जल अर्पित करते हुये अर्घ्यदान किया जाता है. अर्घ्यदान के पश्चात्, शुद्ध घी का दीप प्रज्वलित करना चाहिए तथा कपूर, धूप एवं लाल पुष्पों से सूर्यदेव की पूजा करनी चाहिए.
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