Navami 2025: नवरात्रि (Chaitra Navratri) के अंतिम दिनों में जब कन्या पूजन का आयोजन होता है, तो घर-घर में छोटी-छोटी कन्याओं को देवी का रूप मानकर उनका स्वागत किया जाता है. उनके चरण धोए जाते हैं, उन्हें तिलक लगाया जाता है और फिर विशेष रूप से तैयार किया गया हलवा, पूड़ी और चने का प्रसाद अर्पित किया जाता है. पर क्या आपने कभी सोचा है कि हर बार यही प्रसाद क्यों बनाया जाता है? क्या इसके पीछे कोई धार्मिक, आध्यात्मिक या सांस्कृतिक कारण है? आइए इस प्रश्न के उत्तर को रोचक और तथ्यात्मक अंदाज़ में समझते हैं.
1.धार्मिक महत्व, देवी अन्नपूर्णा का आह्वान: भारतीय संस्कृति में भोजन को ‘अन्नदेवता’ माना गया है और भोजन तैयार करना भी एक पूजा की तरह समझा जाता है. हलवा-पूरी का प्रसाद देवी अन्नपूर्णा को समर्पित माना जाता है, जो अन्न और पोषण की देवी हैं. कन्या पूजन में जब नौ कन्याओं को भोजन कराया जाता है, तो यह अन्नपूर्णा देवी के आशीर्वाद का प्रतीक होता है, जिससे घर में कभी भी अन्न की कमी न हो.
2.सात्विकता और पवित्रता का प्रतीक: हलवा, पूड़ी और चना न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि ये सात्विक आहार की श्रेणी में आते हैं.
- पूरी: गेहूं का सादा आटा, कोई प्याज-लहसुन नहीं
- हलवा: सूजी, घी और शुद्ध शक्कर से बना
- काले चने: प्रोटीन से भरपूर और आसान पचने वाले
3. स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उपयुक्त: शरीर को संतुलित पोषण देने वाला यह प्रसाद बच्चों के लिए बहुत लाभकारी होता है.
- काले चने में भरपूर प्रोटीन,फाइबर और आयरन होता है
- हलवे में ऊर्जा देने वाले तत्व होते हैं
- पूड़ी पेट भरने वाला मुख्य आहार होती है
4. सांस्कृतिक परंपरा और श्रद्धा का मिलन: प्राचीन काल से ही यह माना गया है कि भगवान को वह भोग अर्पित किया जाए जिसे श्रद्धा से बनाया जाए. हलवा-पूरी का प्रसाद सामान्य घरों में भी बड़ी श्रद्धा और प्रेम से बनाया जाता है. यह ‘मां के हाथ का खाना’ जैसा होता है, जिसमें प्रेम, पवित्रता और परंपरा तीनों समाहित होती हैं.
5. मां दुर्गा के नौ रूपों का संतुलन: नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है और प्रत्येक रूप किसी विशेष गुण का प्रतीक होता है, जैसे शक्ति, ज्ञान, करुणा, समृद्धि आदि. हलवा-पूरी में भी इन गुणों की झलक मिलती है, घी और शक्कर का मिश्रण-समृद्धि,चना – शक्ति, पूरी-संतुलन और पूर्णता का प्रतीक है.
6. कन्याओं को देवी का रूप मानना: छोटी कन्याएं सरल और पवित्र मानी जाती हैं, ठीक वैसे ही जैसे यह प्रसाद. किसी भारी भोजन की बजाय, यह एक घरेलू और आत्मीय भोज होता है, जो सीधा दिल से दिया जाता है. यही भावना देवी को सबसे प्रिय होती है.
हलवा-पूरी का प्रसाद सिर्फ एक व्यंजन नहीं है, यह एक संस्कृति, परंपरा, पोषण और भक्ति का मिलाजुला रूप है. कन्या पूजन में इसका विशेष स्थान इसलिए भी है क्योंकि यह प्रसाद हमारी श्रद्धा, सेवा और समर्पण को सरल और सुंदर रूप में व्यक्त करता है. अगली बार जब आप यह प्रसाद बनाएं, तो समझिए कि आप केवल खाना नहीं बना रहे, बल्कि एक आध्यात्मिक परंपरा का हिस्सा बन रहे हैं,जो पीढ़ियों से चली आ रही है.
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