नगर निगम आगरा
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आगरा के जगदीशपुरा में बेशकीमती जमीन पर कब्जा तब्दील कराने के लिए रची गई साजिश में नगर निगम के सुपरवाइजर, निरीक्षक, लिपिक से लेकर जन्म मृत्यु रजिस्ट्रार तक शामिल रहे। नगर निगम ने जिंदा टहल सिंह को कागजों में मृत बना दिया। आंख मूंद कर मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किया।
एसआईटी जांच में फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र की पोल खुलने के बाद नगर निगम के अधिकारी ने सेनेटरी सुपरवाइजर पर ठीकरा फोड़ दिया। सेनेटरी सुपरवाइजर ओम प्रकाश के विरुद्ध एफआईआर के लिए तहरीर का दावा किया, लेकिन जांच रिपोर्ट जारी होने के 24 घंटे बाद भी हरीपर्वत पुलिस को नहीं भेजी। 4 जुलाई 2019 को जन्म मृत्यु रजिस्ट्रार विमल कुमार सिंघल ने प्रमाणपत्र जारी किया था। रजिस्ट्रार व निगम के सफाई व खाद्य निरीक्षक रोहित सिंह और लिपिक रागिनी के विरुद्ध नगरायुक्त अंकित खंडेलवाल ने एफआईआर की संस्तुति नहीं की।
जांच अधिकारी अपर नगरायुक्त विनोद कुमार गुप्ता ने चार अप्रैल को ही जांच कर नगरायुक्त अंकित खंडेलवाल को रिपोर्ट भेज दी थी। लेकिन, 10 दिन तक नगरायुक्त कार्यालय में रिपोर्ट फाइलों में दबी रही।
नगर निगम सूत्रों का कहना है कि नगरायुक्त ने रिपोर्ट में संशाेधन कराए। जिसके बाद संशाेधित रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की खानापूर्ति की गई है। फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र के खेल में शामिल बड़ी मछलियों को अधिकारी बचाने में जुटे रहे। ऐसे में एक तरफ उच्च अधिकारी की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो रहा है। दूसरी तरफ जिलाधिकारी के आदेश पर गंभीर मामले की जांच में भी लापरवाही के संकेत मिल रहे हैं।
अधिकारियों की मिलीभगत से बना फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र
जिन लोगों की मृत्यु होती है उनके मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने के लिए स्वजनों को महीने चक्कर काटने पड़ते हैं। वास्तविक मृतक का प्रमाणपत्र आसानी से नहीं बनता, यहां तो नगर निगम में जिंदा व्यक्ति का फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र बना दिया। इस फर्जीवाड़े में कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों की तक की मिलीभगत हो सकती है। एसआईटी जांच में प्रमाणपत्र के आवेदक किशन मुरारी से यह राज उगलवा सकती है। सूत्रों का कहना है कि एक प्रमाणपत्र के लिए लाखों रुपये की डील नगर निगम में हुई थी। नगर निगम में भ्रष्टाचार किसी से छिपा नहीं है।