उल्लास मधुमास कार्यक्रम में शामिल कलाकार
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चैत्र महीने में प्रकृति के नवीन स्वरूप की खिलखिलाहट और सूरज की तपिश के बीच उपशास्त्रीय संगीत की विधा चैती गायन ने श्रोताओं को आत्मिक शीतलता की अनुभूति कराई। शनिवार की शाम काशी कला कस्तूरी की ओर से आयोजित चैती महोत्सव में गंगा की धारा पर तैरते बजड़े पर श्रोताओं ने गुलाब की खुशबू के साथ चैती के रंग को महसूस किया।
शनिवार की शाम चैत्री उत्सव की शुरुआत रामनगर किले से हुई। चैती महोत्सव में गंगा की धारा पर गुलाब जल और गुलाब की पंखुड़ियों की वर्षा के बीच चैती गायन के रंग बिखरे। रामनगर से चलकर बजड़ा जैसे-जैसे राजघाट की ओर बढ़ता रहा वैसे वैसे उपशास्त्रीय गायन के रस घुलते रहे। डॉ. सोमा घोष के मुख्य आतिथ्य में आयोजन की शुरुआत प्रो. संगीत पंडित के गायन से हुई। प्रो. संगीता ने पारंपरिक चैती चैत मासे चुनरी रंगइबे हो रामा… के बाद दादरा सौतन घर ना जा, ना जा मोरे सइयां… सुनाकर श्रोताओं को विभोर किया।
चैती उत्सव का आकर्षण विदुषी सुचरिता गुप्ता का गायन रहा। चैता गौरी की बानगी पेश करते हुए सुचरिता गुप्ता ने जब सूतल सइयां के जगावे हो रामा… के सुर लगाए तो श्रोता अपनी जगह से उठकर उन पर गुलाब की पंखुड़ियां बरसाने लगे। इसके बाद उन्होंने चैती रात हम देखली सपनवा हो रामा… और मृगनयनी तोरी अंखियां… के बाद भैरवी चैती महुआ मदन रस बरसे हो रामा… से श्रोताओं को आनंदित किया। इसके बाद सुगना बोले हमरी अंटरिया हो रामा… पेश किया।
श्रोताओं की मांग पूरी करते हुए सुचरिता गुप्ता ने चैती महोत्सव में शुद्ध होरी के रंग भी जमाए। पहले श्याम की होरी होरी मैं खेलूंगी श्याम से डट के… सुनाने के बाद उन्होंने राधा की होरी रंग डारूंगी नंद के लालन पे… से श्रीराधाकृष्ण की होली के सांगीतिक चित्र श्रोताओं के मानस पटल पर उकेरे। इसके बाद वायलिन वादन की बारी थी। पं. विजय शंकर चौबे ने आरंभ में राग किरवानी की अवतारणा की।
मध्यलय एवं द्रुत लय में वादन के बाद उन्होंने अति लोकप्रिय पारंपरिक चैती एही ठइयां मोतिया हेरा गइलें रामा… की धुन बजाने के दौरान विविध रागों का समावेश किया। तबले पर डाॅ. स्मित भटनागर व श्रीकांत मिश्र, हारमोनियम पर डॉ. मनोहर कृष्ण श्रीवास्तव ने संगत की। संचालन डॉ. शबनम और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुनीता चंद्र ने किया। इस दौरान डॉ. एनके शाही, प्रो. सुनील चौधरी, प्रो. अलका सिंह, डॉ. पूनम सिंह मौजूद रहीं।