Preserved Umbilical Cord: हरियाणा में एक कपल साल 2010 में पहली बार पैरेंट बने. उनका पहला बच्चा नॉर्मल डिलीवरी से हुआ. जन्म के 10 दिनों के अंदर ही बच्चे को फीवर और सांस लेने में कठिनाई होने लगी. उसे ICU में एडमिट कराया गया और वेंटिलेटरी सपोर्ट शुरू किया गया. बच्चे को निमोनिया और सेप्सिस था, जिसकी वजह से 6 हफ्ते में ही उसकी मौत हो गई. अगले 11 साल यानी 2021 तक चार अबॉर्शन के बाद उस कपल को सिजेरियन से एक बच्चा हुआ, जिसमें भी वही लक्षण पाए गए. सही तरह सांस न ले पाने की वजह से उसकी भी मौत 3 महीने बाद हो गई. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इतने गैप के बावजूद एक ही जैसे लक्षण नवजात में पाए जाने का क्या कारण है. जानिए एक्सपर्ट्स से…
क्या है कारण
दो बच्चों की मौत और चार बार अबॉर्शन को हाल ही में डॉक्टरों ने गर्भनाल की मदद से समझा. भ्रूण और मां की कॉर्ड के बीच एक फ्लैक्सिबल, ट्यूबलर स्ट्रक्चर, जिसे कपल ने अपनी मेमोरी में रखा था. गर्भनाल (Umbilical Cord) के जेनेटिक एनालिसिस से CTFR जीन में एक म्यूटेशन की पहचान हुई, जो सिस्टिक फाइब्रोसिस का कारण बनता है. उस कपल में समान म्यूटेशन की जांच की गई, जिसमें वे ही कारक पाए गए. मतलब उनमें दो जीन में से एक फंक्शनल थी और दूसरी नॉन-फंक्शनल.
डॉक्टरों का क्या कहना है
इसे लेकर डॉक्टरों का कहना है कि म्यूटेशन के साथ होने पर अक्सर कोई लक्षण नहीं होता है, लेकिन ऐसा लगता है कि जन्म के कुछ दिनों में मरने वाले दोनों नवजातों को पैसेंट्स से एक म्यूटेड सिस्टिक फाइब्रोसिस ट्रांसमेम्ब्रेन कंडक्टर रेगुलेटर (CFTR) जीन मिला, जिससे बीमारी और इससे जुड़े खतरे बढ़ें. डॉक्टरों का कहना है कि अगर शुरुआत में इलाज करने वाले डॉक्टरों को किसी बच्चे में किसी इस तरह की समस्या नजर आए तो उसे जेनेटिक स्टडी करना चाहिए. इससे भविष्य में उन कपल को मदद मिलेगी, जो दूसरे बच्चे के लिए IVF का ऑप्शन ढूंढ रहे हैं.
कपल की बेटी में नहीं हैं ऐसे लक्षण, क्यों
डॉक्टरों का कहना है कि कपल की एक बेटी है, जो 2014 में बिना किसी मेडिकल प्रॉब्लम के पैदा हुआ थी, उसमें म्यूटेड जीन का असर नहीं देखा गया, जो संयोग की तरह है लेकिन अब कपल एक बेटा चाहते हैं. डॉक्टर का कहना है कि सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसे रेयरेस्ट डिसऑर्डर की वजह से जल्दी मौत के मामलों में भी गर्भनाल जैसे पिछले बच्चे के किसी भी संरक्षित सैंपल का जेनेटिकट टेस्ट सटीक कारण का पता लगाने में मदद कर सकता है.
अगर जेनेटिक ट्रेंड की पुष्टि हो जाती है, जैसे हरियाणा के इस कपल के मामले में तो भ्रूण को गर्भाशय में ट्रांसफर करने से पहले इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) के साथ बनाए गए भ्रूण में जेनेटिक अंतर की पहचान करने के लिए एक प्रॉसेस अपना सकते हैं.आईवीएफ क्लिनिक हेड का कहना है कि यह एक स्पेसिफिक जेनेटिक कंडीशन या कुछ तरह के क्रोमोसोम असामान्यताओं वाले भ्रूण को ट्रांसफर करने की संभावना को कम करने में मदद कर सकता है, इसलिए जेनेटिक कंडीशन के साथ पैदा होने वाले बच्चे के जोखिम कम कर सकता है.
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