खबरों के खिलाड़ी।
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लोकसभा चुनाव में छह चरण का मतदान पूरा हो चुका है। 1 जून को सातवें और आखिरी चरण के लिए वोट डाले जाने हैं। चुनाव की शुरुआत में मुद्दे के नाम पर मोदी बनाम विपक्ष लग रहा था, लेकिन अलग-अलग चरण के मतदान के बीच इस चुनाव में कई मुद्दे आए। आखिर छह चरण की वोटिंग के बाद इस चुनाव में कौन से मुद्दे हावी रहे? इसी पर इस हफ्ते के ‘खबरों के खिलाड़ी’ में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री, समीर चौगांवकर, पूर्णिमा त्रिपाठी, अवधेश कुमार और अनुराग वर्मा मौजूद रहे।
पूर्णिमा त्रिपाठी: छह चरण के मतदान के बाद दो मुद्दे सबसे ज्यादा चर्चा में रहे। पहला आरक्षण का मुद्दा, जब प्रधानमंत्री ने यह कहना शुरू किया कि विपक्ष सत्ता में आया तो पिछड़ों का आरक्षण लेकर मुस्लिमों को दे देगा। तब से यह ज्यादा चर्चा में रहा। दूसरा मुद्दा जो सबसे ज्यादा चर्चा में रहा, वह है संविधान का मुद्दा। इसके साथ ही हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा भी चर्चा में रहा। इसके अलावा खटाखट-फटाफट राशन जैसे मुद्दे भी चर्चा में आए।
समीर चौगांवकर: शुरुआत में मुझे लगा था कि यह चुनाव दो R पर होगा। राशन और राम मंदिर, लेकिन बाद में दोनों पक्ष से अलग-अलग मुद्दे आते गए। फ्री बिजली, शिक्षा से लेकर पांच की जगह 10 किलो अनाज देने की बात तक सामने आई। पहली बार ऐसा हो रहा है, जब दोनों पक्ष अपनी-अपनी बातों पर स्थिर नहीं हैं। प्रधानमंत्री ने जैसे मंगलसूत्र का जिक्र किया तो वह चर्चा में आ गई। राहुल गांधी ने जब खटाखट पैसे आने की बात उठा दी वो चर्चा में आ गई। जिस तरह से राहुल गांधी और कांग्रेस ने जो पिच बनाई, उस पर भाजपा को आने से बचना चाहिए था। इन सबके बाद भी मुझे लगता है कि कोई ऐसा एक मुद्दा नहीं जो पूरे चुनाव को प्रभावित करता।
अनुराग वर्मा: अगर पिछले दो चुनावों की बात करें तो 2014 में यूपीए सरकार की विफलताएं और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे रहे। 2019 में सर्जिकल स्ट्राइक जैसा मुद्दा हावी रहा। इस चुनाव में ऐसा कोई मुद्दा नहीं है। ऐसे में अगर प्रधानमंत्री को मुद्दे नहीं उठाने चाहिए, जैसे कहने वालों को राहुल गांधी को भी जाकर कहना होगा
अवधेश कुमार: अगर कोई पार्टी अपने घोषणापत्र में किसी बात का जिक्र करेगी तो उस चर्चा तो होगी ही। राहुल गांधी ने लगातार अल्पसंख्यक की बात की तो उस पर चर्चा तो होगी ही। कलकत्ता हाईकोर्ट का जो फैसला आया है, उसमें सरकारों ने जो किया वह मुद्दा तो बनेगा ही। इस चुनाव को अगर हम इस रूप में देखते हैं कि बड़े मुद्दे नहीं थे तो यह हमारी भूल होगी।
विनोद अग्निहोत्री: राम मंदिर 1988 के बाद हर चुनाव में मुद्दा रहा है। कभी मुखरता से कभी थोड़ा कम चर्चा के साथ। 22 जनवरी को जब प्राण प्रतिष्ठा हुई, उसके बाद लग रहा था कि इस बार चुनाव में राम मंदिर बड़ा मुद्दा होगा। इसलिए जब भाजपा ने 400 पार का नारा दिया तो पूरी बहस इसके आसपास आ गई थी, लेकिन आज जब हम बात करते हैं तो दोनों तरह के नरेटिव हैं। 300 वाले लोग भी हैं दूसरी तरफ 250 आएंगी की 220 आएंगी 230 आएंगी इस पर बहस शुरू हो गई है। यह चर्चा क्यों शुरू हुई, इसे समझना होगा।