लखनऊ। कुवैत में कल रिहायशी इमारत में आग लगने से 40 भारतीय मजदूर समेत हुई 49 लोगों की मौत पर वर्कर्स फ्रंट ने गहरा दुख व्यक्त किया है और केंद्र सरकार से तत्काल मजदूरों को 50 लाख रुपए मुआवजा, घायलों को बेहतर इलाज और पूरी घटना की उच्च स्तरीय जांच कराने व टूरिस्ट एजेन्सियों व्दारा देश के बाहर काम के लिए श्रमिकों को भेजने पर रोक लगाने की मांग की है। वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर और प्रवासी श्रमिक अधिकार मंच के सचिव प्रमोद पटेल ने प्रेस को जारी बयान में कहा कि विदेशों विशेष तौर पर खाड़ी देशों में काम करने वाले मजदूरों की जीवन दशा बेहद खराब है। एक उदाहरण से ही स्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है खाड़ी देशों में भारतीय दूतावासों में मजदूरों की 48095 शिकायत के मिली जिसमें सबसे ज्यादा कुवैत में ही 23020 शिकायतें प्राप्त हुई है। आमतौर पर मजदूरों की इन शिकायतों पर गौर नहीं किया जाता। मीडिया की रिपोर्ट है कि कुवैत में उसकी कुल आबादी 46 लाख में 10 लाख भारतीय हैं, इनमें ज्यादातर श्रमिक हैं। इन मजदूरों को अत्यधिक भीड़भाड़ वाले आवासों में रखा जाता है। एक ही कमरे में क्षमता से बेहद ज्यादा करीब 20-20 लोग रह रहे हैं। यही नहीं इस घटना में यह बात भी उभर कर सामने आई है कि ज्यादातर मजदूरों को लेबर परमिट की जगह टूरिस्ट वीजा पर काम करने के लिए ले जाया गया है। जिन्हें अब कुवैत सरकार अवैध मजदूर के रूप में चिन्हित कर रही है। दरअसल विदेश में भेजने के नाम पर मजदूरों के जीवन के साथ बड़ा खिलवाड़ किया जा रहा है। मजदूरों को टूरिस्ट एजेंसियां टूरिस्ट वीजा पर भेज देती हैं जिससे इन मजदूरों का मजदूर के बतौर कोई रिकॉर्ड ना तो दूतावास में होता है ना ही भारत सरकार के पास रहता है। कुवैत की इस घटना के मामले में भी यही बात दिख रही है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि भारत सरकार उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मंडल का गठन करके इस पूरी घटना की जांच कराएं। ज्यादतर मजदूरों की उम्र 20 से 50 वर्ष के बीच में है और उन पर ही पूरे परिवार की आजीविका निर्भर है ऐसे में प्रधानमंत्री राहत कोष से दिया गया 2 लाख का मुआवजा बेहद कम है इसे कम से कम 50 लाख किया जाए और जो मजदूर घायल है उनके बेहतर इलाज की व्यवस्था की जाए। साथ ही टूरिस्ट वीजा पर मजदूरों को भेजना की कार्रवाई पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाए।