सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव।
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समाजवादी पार्टी विधानसभा और विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष के जरिये जातीय समीकरण साधेगी। जिससे जनता में यह संदेश जाए कि पीडीए (पिछड़े, दलित और मुस्लिम) उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता में है। इसको लेकर पार्टी के अंदर गंभीर मंथन चल रहा है।
अभी तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर अखिलेश यादव थे, पर कन्नौज से सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया है। अब वे राष्ट्रीय राजनीति पर ज्यादा फोकस करेंगे। यहां विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में पूर्व कैबिनेट मंत्री और अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव का नाम आगे चल रहा है। दौड़ में विधायक इंद्रजीत सरोज, रामअचल राजभर और कमाल अख्तर भी शामिल हैं।
सूत्रों के मुताबिक, नेता प्रतिपक्ष चुनने में अखिलेश यादव इसका ध्यान रखेंगे कि सदन में भाजपा सरकार को आक्रामक रूप से घेरने में कौन ज्यादा सक्षम साबित होगा। लोकसभा चुनाव के परिणाम से उत्साहित सपा ने भाजपा की नीतियों पर आक्रामक ढंग से प्रहार करने की रणनीति पर चलने का फैसला किया है। इस रणनीति पर खरा उतर सकने वाला नेता ही विधानसभा में समाजवादी दल का अगुवा बनेगा।
विधान परिषद में सपा के पास अभी तक नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं था, क्योंकि इसके लिए 10 प्रतिशत सदस्य उसके पास नहीं थे। हाल ही में सपा के नवनिर्वाचित तीन सदस्यों के शपथ लेने से उसके पास उच्च सदन में भी नेता प्रतिपक्ष के पद के लिए पर्याप्त संख्याबल हो गया है।
विधान परिषद में सपा दल के नेता लाल बिहारी यादव दौड़ में आगे बताए जा रहे हैं। हालांकि, जिन अन्य नामों पर विचार हो रहा है, उनमें राजेंद्र चौधरी, जासमीन अंसारी और शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली भी शामिल हैं। सपा सूत्रों के मुताबिक, 24 जून से शुरू हो रहे संसद सत्र के दौरान ही अखिलेश यूपी के भी दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष के बारे में निर्णय ले लेंगे।