खबरों के खिलाड़ी
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कोलकाता में महिला डॉक्टर से दुष्कर्म और हत्या के मामले की जांच अब सीबीआई कर रही है। इसके बावजूद इस मुद्दे पर राजनीति जारी है। सियासत और विरोध प्रदर्शनों के बीच राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में कहा, ”अब बहुत हो गया।” वहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो बार चिट्ठी लिख चुकी हैं। इस बीच, यह भी चर्चा होने लगी है कि क्या बंगाल में राष्ट्रपति शासन लग सकता है? इन्हीं मुद्दों पर इस बार ‘खबरों के खिलाड़ी’ में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, अवधेश कुमार, पूर्णिमा त्रिपाठी और बिलाल सब्जवारी मौजूद थे।
अवधेश कुमार: ममता बनर्जी और उनकी पूरी सरकार का कोलकाता की दर्दनाक घटना पर जो चरित्र उभरा है, वह माफिया जैसा है। घटना को ढंकने की कोशिश हुई। अस्पताल प्रशासन महिला डॉक्टर से दुष्कर्म और हत्या को आत्महत्या साबित करने में लगा रहा। ममता बनर्जी इसमें बंगाल पुलिस का साथ देती नजर आईं। फिर ममता बनर्जी खुद ही सड़कों पर उतर गईं। सुप्रीम कोर्ट में 21 वकील पैरवी के लिए उतर आए। इससे लगता है कि पश्चिम बंगाल में आपको न्याय नहीं मिल सकता। इसके दो निष्कर्ष हैं। वाम दलों के हाथ से सत्ता निकलने के बाद बंगाल का पूरा माफिया तंत्र तृणमूल के साथ है। या फिर तृणमूल को लगता है कि वे ऐसे शेर की सवारी पर हैं कि अगर नीचे उतरे तो वही शेर उन्हें खा जाएगा।
विनोद अग्निहोत्री: राष्ट्रपति ने जो प्रतिक्रिया व्यक्त की है तो उसमें कोलकाता का संदर्भ जरूर है, लेकिन महिलाओं पर जहां-जहां अत्याचार हो रहे हैं, सभी पर उन्होंने चिंता जताई है। राष्ट्रपति का बयान स्वाभाविक है, उस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। कोलकाता की घटना के मामले में सीबीआई जांच कर रही है। जो जांच प्रक्रिया हो रही है, उसके बाद भाजपा बंगाल बंद क्यों बुला रही थी और ममता क्यों प्रतिक्रिया दे रही थीं। दोनों ही दल राजनीति कर रहे हैं। पीड़ित महिला के परिवार को इंसाफ दिलाने के बजाय राजनीति हो रही है।
बिलाल सब्जवारी: देश के अंदर कानूनों की कमी नहीं है। सारा मसला इस बात का है कि कानूनों पर अमल किस तरह हो रहा है। समाज को इस तरह से तैयार करने की जरूरत है कि महिलाओं का सम्मान हो और महिलाओं के प्रति व्यवहार अच्छा हो। जहां तक राष्ट्रपति की बात है, तो उनका संदेश पूरे देश और पूरे समाज के लिए है। इस समस्या का बुनियादी हल है, इस पर ध्यान देना जरूरी है। महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता का भाव आए, यह जरूरी है।
रामकृपाल सिंह: तमाम राजनीतिक दलों को सियासत से ऊपर उठना होगा। अपराध, दुष्कर्म, हत्याएं पूरे देश में हो रही हैं, लेकिन ऐसी घटनाओं के बाद जो होता है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। कोलकाता के मामले में माता-पिता से पहले जानकारी छुपाई गई, फिर जहां वारदात हुई, वहां तोड़फोड़ हो गई। इससे अपराधियों का साथ देने का संकेत मिला है। ममता बनर्जी के पास ही स्वास्थ्य और गृह मंत्रालय का भी प्रभार है, फिर भी वे राजनीति कर रही हैं। जब तक यह सोच नहीं आएगी कि हम हारें या जीतें, कुछ मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, तब तक बदलाव नहीं आएगा। प्रतिरोध और तत्काल न्याय जब तक नहीं मिलेगा, तब तक बदलाव नहीं आएगा।
पूर्णिमा त्रिपाठी: समाज का चारित्रिक पतन कोलकाता की घटना के बाद नजर आया है। जब इस तरह का घृणित अपराध हो तो जो सत्ता में बैठा है, उसका यह कर्तव्य होना चाहिए कि अपराधी को कड़ी से कड़ी सजा मिले। जब ममता बनर्जी खुद ही धरना देने लगें तो यह राजनीति है। जब जांच सीबीआई के पास है तो भाजपा को बंद बुलाने की क्या जरूरत थी? राजनीति में कोई रुकावट नहीं है। संवेदनशीलता कहीं नजर नहीं आ रही। अपराध होने के बाद सत्ता में बैठे लोग क्या संदेश देते हैं, वह मायने रखता है। बंगाल में राष्ट्रपति शासन की संभावनाओं का नरेटिव बनाने की कोशिश तो हुई, लेकिन ममता बनर्जी इस मुद्दे पर आक्रामक हो गईं। किसी एक घटना पर किसी सरकार को बर्खास्त नहीं किया जा सकता। ऐसा हुआ तो मणिपुर की सरकार का क्या होगा?
अवधेश कुमार: पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन के भी कई बयान हमने अतीत में देखे हैं, लेकिन तब विपक्ष ने गरिमा बनाए रखी थी। मौजूदा राष्ट्रपति ने बिना किसी का नाम लिए चिंता व्यक्त की है। देश की राजनीति सामान्य प्रतिस्पर्धा से निकलकर घृणा में परिवर्तित हो गई है। राष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय जैसे संवैधानिक पदों और संस्थाओं को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए। पूरे प्रकरण में तृणमूल कांग्रेस या ममता बनर्जी का कोई एक ऐसा कदम बता दीजिए, जिससे यह लगा कि वे इंसाफ दिलाने में यकीन रखते हैं। ममता चाहती हैं कि वे जैसा चाहें, वैसे ही सत्ता चले। दूसरे राज्यों में भी घटनाएं हुई हैं, लेकिन घटनाओं के बाद कौन सा मुख्यमंत्री सड़कों पर उतर आया? कौन सा मुख्यमंत्री सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया? बंगाल पुलिस ने अस्पताल से क्यों नहीं पूछा कि हमें तुरंत सूचना क्यों नहीं दी गई? क्या वहां आप इसे कानून का शासन कहेंगे? ‘इंडिया’ गठबंधन के बाकी नेताओं का क्या रूख है, यह साफ नहीं हो सका है।
विनोद अग्निहोत्री: अनुच्छेद 356 (राज्य में सांविधानिक तंत्र की विफलता पर राष्ट्रपति शासन) का अब तक मोदी सरकार ने इस्तेमाल नहीं किया है। मुख्यमंत्रियों का रवैया ही ऐसा हो गया है। असम में सामूहिक दुष्कर्म की घटना हुई, उसमें वहां के मुख्यमंत्री का बयान देखिए। ममता बनर्जी अगर संवेदनशील बयान दे देतीं तो ठीक रहता, लेकिन हिमंत बिस्व सरमा का असम पर बयान भी असंवेदनशील था। उत्तर प्रदेश में विपक्षी दल सड़कों पर नहीं है, इसलिए वहां आपको बंगाल जैसा नजारा अभी नहीं दिख रहा। हर जगह पुलिस और सरकारें वैसा ही व्यवहार करती हैं, जैसा बंगाल में सरकार और पुलिस ने किया। राजनीतिक दलों का रवैया चयनात्मक हो सकता है, लेकिन समाज का रवैया चयनात्मक नहीं हो सकता। महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों से निपटने के लिए एक केंद्रीय एजेंसी होनी चाहिए।
बिलाल सब्जवारी: जब राजनीतिक प्राथमिकताएं बड़ी हो जाएंगी तो महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े बुनियादी सवाल का हल कैसे निकलेगा? डर की भी एक सीमा है। राजनीतिक दलों को समाज के दृष्टिकोण के प्रति संवेदनशील होना होगा। समाज के अंदर जागरूकता की जरूरत है।
रामकृपाल सिंह: इन सब मामलों पर व्यक्तिगत हस्तक्षेप की गुंजाइश को खत्म करना होगा। इस देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध पर न्याय 32 साल बाद मिलता है। अजमेर की घटना इसका उदाहरण है। 99 गुनहगार छूट जाएं, लेकिन एक ईमानदार को सजा नहीं होनी चाहिए, हमारा कानून आज तक इसी पर चला है। इस अवधारणा को हमें बदलना होगा। जब एक अपराधी यह जान जाता है कि वह आज से अगले 20 साल तक मुकदमा लड़ सकता है और उसका कुछ नहीं बिगड़ने वाला, तब अपराध बढ़ता है। 90 दिन में इंसाफ सुनिश्चित कीजिए।