‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के मुताबिक 13 से 17 साल की आयु के बच्चों वाले 69% माता-पिता कहते हैं कि आज बड़ा होना 2004 की तुलना में कठिन है. वहीं 13 से 17 वर्ष की आयु के 44% लोग भी यही कहते हैं. जिस बात पर वे पूरी तरह सहमत नहीं हैं, वह यह है कि पहले की तुलना में अब किशोरावस्था से निपटना अधिक चुनौतीपूर्ण क्यों है. माता-पिता सोशल मीडिया को दोष देते हैं. लेकिन बच्चे अधिक दबाव और उम्मीदों को दोषी मानते हैं.
सोशल मीडिया का सबसे बड़ा असर यौवन पर पड़ता है. अपनी सबसे ज़्यादा बिकने वाली किताब “द एंग्ज़ियस जेनरेशन” में NYU के सामाजिक मनोवैज्ञानिक जोनाथन हैडट कहते हैं कि स्मार्ट फ़ोन और सोशल मीडिया ने किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाया है. हैडट ने अपनी किताब में 1995 के बाद पैदा हुए लोगों पर ध्यान केंद्रित किया है. हैडट के मुख्य शोधकर्ता और NYU-स्टर्न स्कूल ऑफ़ बिज़नेस के एसोसिएट रिसर्च साइंटिस्ट ज़ैक रौश ने CNBC मेक इट को बताया कि यौवन के दौरान फ़ोन रखना ख़ास तौर पर नुकसानदेह हो सकता है.
यंग एज ग्रुप का सोशल मीडिया पर काफी ज्यादा असर होता है
सोशल मीडिया का सबसे बड़ा असर यौवन के दौरान हुआ. ख़ास तौर पर शुरुआती यौवन के दौरान यानी 9 से 15 साल की उम्र में सबसे ज़्यादा नुकसान सबसे ज़्यादा होता है. एक कारण यह है कि ऑनलाइन बातचीत से अक्सर आमने-सामने संपर्क नहीं बनते. जो खुशी बढ़ाने और बनाए रखने के लिए ज़रूरी है. रौश कहते हैं,’हम एक-दूसरे से जुड़ने के लिए फ्लिप फ़ोन का इस्तेमाल करते थे. ताकि हम आख़िरकार आमने-सामने मिल सकें. ऑनलाइन दुनिया इसके बिल्कुल उलट है. हम वहां बने रहने के लिए जुड़ते हैं. हमारा तर्क है कि यह पर्याप्त नहीं है. हैडट का यह भी कहना है कि सोशल मीडिया का व्यापक उपयोग युवा लोगों के मस्तिष्क के रसायन विज्ञान को बदल सकता है.
आजकल के बच्चे इन परेशानियों का करना पड़ता है सामना
‘हैडट ने द अटलांटिक’ के लिए लिखा,’ऑनलाइन यौवन से गुज़र रहे बच्चों में पिछली पीढ़ियों के किशोरों की तुलना में कहीं ज़्यादा सामाजिक तुलना, आत्म-चेतना, सार्वजनिक रूप से शर्मिंदगी और पुरानी चिंता का अनुभव होने की संभावना है. जो संभावित रूप से विकासशील मस्तिष्क को रक्षात्मकता की आदतन स्थिति में डाल सकता है.’
अपनी 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक अकेलेपन और अलगाव की हमारी महामारी में, यू.एस. सर्जन जनरल विवेक मूर्ति ने भी सोशल मीडिया के खतरों के बारे में चेतावनी दी.
नुकसान के कई उदाहरणों में ऐसी तकनीक शामिल है जो व्यक्तिगत जुड़ाव को विस्थापित करती है. हमारे ध्यान पर एकाधिकार करती है. हमारी बातचीत की गुणवत्ता को कम करती है और यहां तक कि हमारे आत्म-सम्मान को भी कम करती है.इससे अधिक अकेलापन, छूट जाने का डर, संघर्ष और सामाजिक जुड़ाव में कमी आ सकती है. प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, माता-पिता इस आकलन से सहमत हैं, 41% का कहना है कि सोशल मीडिया के कारण किशोर रहना कठिन है, तथा 26% का कहना है कि इसका कारण सामान्य रूप से प्रौद्योगिकी है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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