Ganesh Chaturthi 2024: पौराणिक कथाओं में ऐसा वर्णन मिलता है कि भगवान गणेश (Lord Ganesh) माता पार्वती (Goddess Parvati) की मैल से उत्पन हुए थे. लेकिन क्या ये सच है, क्या सच में भगवान गणेश की उत्पत्ति मैल से हुई है. इसके लिए शास्त्रों (Shastra) को पढ़ना आवश्यक है जोकि कुछ ओर ही कहते हैं-
महाभागवत उपपुराण अध्याय क्रमांक 35 अनुसार:–
एतस्मिन्नन्तरे गौरी गात्रं लिप्त्वा हरिद्रया। स्नानप्रयाण उद्युक्ता बभूव मुनिपुङ्गव ॥5॥
तदा हि साभिरक्षार्थ मन्दिरस्य महेश्वरी। विन्तयामास विश्वेषामपि रक्षणकारिणी ॥6॥
अर्थ– भगवती गौरी अपने शरीर में हल्दी (Haldi) का उबटन लगाकर स्नान के लिए जाने को उद्यत हुईं. उस समय सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की भी रक्षा करने वाली जगदम्बा (Maa Jagdamba) अपने निवासस्थान की रक्षा के लिए विचार करने लगीं. इस बीच भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूर्व-प्रार्थना का स्मरण करके अपने शरीर पर लगे हरिद्रा (हल्दी) का उबटन का कुछ अंश लेकर उन्होंने एक पुत्र (गणेश) का निर्माण किया.
यहां पूर्व प्रार्थना से एक कथा जुड़ी है जहां भगवान विष्णु ने देवी के पुत्र होने का वरदान मांगते हैं पिछले अध्याय में इसका वर्णन है:–
तथाहमपि चैतस्याः पुत्रतां प्राप्य वै ध्रुवम् । अङ्कमारुह्य प्राश्नामि स्तन्यं परमभावतः ॥11॥
एवं विचिन्त्य भगवान् विष्णुः परमपूरुषः । आध्यायन् चेतसा देवीं प्रणिपत्य ययौ यदा ॥12॥
तदा तस्याभिलाषं तु विज्ञाय परमेश्वरी। तस्मै ददौ वरं विष्णो मत्पुत्रस्त्वं भविष्यसि ॥13॥ (महाभागवत उप–पुराण अध्याय 34.11–13)
अर्थ – परमात्मा भगवान विष्णु (Vishnu ji) के मन में ऐसा विचार आया कि मैं भी इन भगवती का पुत्र होकर कभी इनकी गोद में खेलू (कार्तिकेय को गोद में देखकर). ऐसा सोचकर उन्होंने मन-ही-मन देवी का ध्यान कर उन्हें प्रणाम किया और वे वहां से जब चल पड़े तब उनकी अभिलाषा को जानकर परमेश्वरी जगदम्बा ने उन्हें वरदान दिया कि विष्णो! तुम मेरे पुत्र बनोगे.
भगवान विष्णु ही गणपति (Ganpati) के रुप में प्रकट हुए और तब गौरी माता ने भगवान विष्णु का ध्यान किया जोकि धन्वन्तरि (Dhanvantari) के रुप में आयुर्वेद (Ayurveda) के संस्थापना की थी (𝘽𝙧𝙖𝙝𝙢𝙖𝙣𝙙𝙖 𝙋𝙪𝙧𝙖𝙣 𝙐𝙥𝙤𝙙𝙜𝙝𝙖𝙩 𝙋𝙖𝙙𝙖 67.15-19).
स्वामी अंजनी नंदन दास अनुसार, आयुर्वेदिक हल्दी उबटन लगाकर भगवान विष्णु जोकि धनवंतरी रूप में आयुर्वेद के प्रणेता हैं उन्हें याद किया ताकि वह उन्हें माता के रुप में स्वीकार करें. हल्दी लगाकर माता पार्वती आयुर्वेद को प्रोत्साहन देना चाहती थीं, क्योंकि आयुर्वेद में हल्दी को बहुत बड़ा स्थान दिया गया है. भगवान हल्दी और योनि से परे हैं किंतु आयुर्वेद चिकित्सा को प्रोत्साहन देने के लिए उन्होने ये लीला की.
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