Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा के विधानसभा चुनाव में गठबंधन की तस्वीर अब लगभग साफ हो गई है. साफ हो गया है कि बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़ेगी. कांग्रेस-आप का गठबंधन नहीं होगा. सवाल है कि जो कांग्रेस बीजेपी को हराने के लिए ही हरियाणा चुनाव में उतरी और जो आम आदमी पार्टी भी बीजेपी को ही हराने का दावा कर रही है, वो आपस में मिलकर चुनाव क्यों नहीं लड़ पाए? क्या आम आदमी पार्टी का हरियाणा में अकेले चुनाव लड़ना बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस के लिए नुकसानदायक है?
करीब चार-साढ़े चार साल तक जननायक जनता पार्टी के दुष्यंत चौटाला के साथ सरकार चला चुकी बीजेपी ने जब गठबंधन तोड़ा तभी ये तय हो गया था कि बीजेपी तो हरियाणा चुनाव अकेले ही लड़ेगी. लेकिन कांग्रेस पसोपेश में थी, क्योंकि वो इंडिया गठबंधन का हिस्सा थी. लिहाजा उसे गठबंधन के साथियों की भी बात सुननी थी और इसमें सबसे बड़ी साझीदार आम आदमी पार्टी थी. लेकिन कांग्रेस के इस पसोपेश को आम आदमी पार्टी ने ही खत्म कर दिया और कहा कि वो हरियाणा में अकेले ही चुनाव लड़ेगी. ये तब की बातें हैं, जब हरियाणा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान नहीं हुआ था.
आप-कांग्रेस में गठबंधन की कैसे बिगड़ी बात?
फिर तारीखों का ऐलान हो गया. अकेले चुनाव लडने के स्टैंड पर बीजेपी कायम रही. इस बीच इंडियन नेशनल लोकदल, बसपा, जननायक जनता पार्टी और दूसरे छोटे-मोटे दलों ने अपना-अपना गठबंधन बनाया और चुनावी तैयारी शुरू कर दी. तब कांग्रेस के साथ ही आम आदमी पार्टी खेमे में भी सुगबुगाहट शुरू हो गई. खबर आई कि कांग्रेस आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करना चाहती है. और खबर कुछ यूं सामने आई कि खुद राहुल गांधी चाहते हैं कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन हो.
दोनों तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रियाओं का दौर चला. लेकिन 9 सितंबर की शाम होते-होते सारी कवायद धरी की धरी रह गई और आम आदमी पार्टी ने 20 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया. इनमें 11 सीटें वो थीं, जहां पर कांग्रेस पहले ही अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी थी. लिहाजा 9 सितंबर की शाम को ये तय हो गया कि अब हरियाणा चुनाव में मुकाबला कम से कम दोतरफा तो नहीं ही रह गया है. अब चुनाव में कम से कम चार पार्टियां हैं, जिनमें बीजेपी है, कांग्रेस है, आम आदमी पार्टी है और इंडियन नेशनल लोकदल-बसपा का गठबंधन है. बाकी जजपा तो है ही.
अब रहा सवाल कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच बात कहां बिगड़ी. तो इसका सीधा सा जवाब ये है कि बात कभी बनी ही नहीं थी कि बिगड़े. क्योंकि जो बात सामने आ रही है, उसमें कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी हरियाणा में 10 सीटें मांग रही थी और कांग्रेस 5 सीटें देने पर अड़ गई थी. लेकिन अगर आम आदमी पार्टी को हरियाणा में 10 सीटें ही लड़नी होती तो आम आदमी पार्टी न तो हरियाणा में केजरीवाल की पांच गारंटी की बात करती और न ही ये कहने की जहमत उठाती कि अरविंद केजरीवाल तो हरियाणा के ही बेटे हैं.
हरियाणा के एक तरफ दिल्ली और दूसरी तरफ पंजाब में उन्हीं की सरकार है. वहीं कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व और खास तौर से भूपेंद्र हुड्डा हमेशा से कहते आए हैं कि हरियाणा में कांग्रेस अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी. जब गठबंधन की बात भी चली तो यही कहा गया कि कांग्रेस आलाकमान भूपेंद्र हुड्डा तक ये संदेश पहुंचाने की कोशिश कर रहा है कि कांग्रेस में सिर्फ राहुल गांधी की ही सुनी जाएगी, स्थानीय स्तर पर कुछ भी तय नहीं होगा. लेकिन अब जब सब तय हो गया है कि आप-कांग्रेस अकेले-अकेले चुनाव लड़ेगी तो दोनों पार्टियों के नेता नफा-नुकसान का भी आंकलन करने लगे हैं.
और नया आंकलन चाहे जो हो, पुराना इतिहास तो यही कहता है कि जब से आम आदमी पार्टी अस्तित्व में आई है, उसने बीजेपी का कम और कांग्रेस का नुकसान ज्यादा किया है. दिल्ली और पंजाब इसका जीता-जागता उदाहरण है. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में कांग्रेस की शीला दीक्षित को ही हटाकर सत्ता हासिल की थी. इस बात को बीते 11 साल हो गए हैं. 2013 के चुनाव में जब पहली बार आम आदमी पार्टी ने चुनाव लड़ा तो कांग्रेस की सीटें 43 से घटकर 8 हो गईं. उस चुनाव में कांग्रेस को 35 सीटों का नुकसान हुआ और आप को तब 23 सीटें मिलीं. 2015 में कांग्रेस जीरो पर सिमट गई और आप को तब 67 सीटें मिलीं. फिर 2020 में भी कांग्रेस जीरो पर ही सिमटी रही और आप को 62 सीटें मिलीं. तो आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में जो भी बड़ा नुकसान किया कांग्रेस का किया.
पंजाब में भी यही हुआ. पंजाब में सरकार कांग्रेस की थी. चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री थे. लेकिन आम आदमी पार्टी चुनाव में उतरी. कांग्रेस के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को दोनों ही सीटों से मात देते हुए 117 में से 92 सीटों पर इकतरफा जीत दर्ज की. गुजरात में भी यही हुआ. 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 60 सीटों का नुकसान हुआ और वो 77 से घटकर 17 पर आ गई. इसमें बीजेपी ने बड़ी सेंध लगाई थी, लेकिन नुकसान आम आदमी पार्टी ने भी किया था, जिसने पांच सीटें जीत ली थीं. इन पांच में से दो सीटें जामजोधपुर और विसवदर वो सीटें थीं, जो 2017 में कांग्रेस की हुआ करती थीं. गोवा में भी कमोबेश यही हुआ. तो इसका मतलब क्या है.
इसका मतलब ये है कि जो कांग्रेस का कोर वोटर है, वही आम आदमी पार्टी का भी कोर वोटर है. कम से कम दिल्ली और पंजाब के विधानसभा चुनावों ने इसको साबित भी कर दिया है. तो क्या हरियाणा चुनाव में नतीजे इससे अलग होंगे. और होंगे तो कितने अलग होंगे, इसको लेकर अलग-अलग राजनीतिक विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है. लेकिन कमोबेश सभी इस बात पर तो सहमत हैं कि हरियाणा में आम आदमी पार्टी का अभी जनाधार नहीं है, लेकिन अगर आप कांग्रेस के साथ आती तो उसका जनाधार बढ़ता और तब खतरा कांग्रेस के लिए ही होता. लिहाजा बातचीत की पहल करने के बाद भी कांग्रेस ने गठबंधन से हाथ पीछे खींच लिए.
बाकी तो हरियाणा चुनाव के चंद महीने के बाद ही दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव होने हैं. और वहां पर आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी दुश्मन कांग्रेस ही है. ऐसे में पड़ोसी राज्य में गठबंधन के बाद दिल्ली में सत्ता के शिखर पर बैठी आम आदमी पार्टी भी दिल्ली वाला रिस्क नहीं लेता चाहती है और वो भी तब, जब इस वक्त पार्टी मुश्किलों में है. बाकी नामांकन से पहले कोई और बड़ा सियासी उलटफेर हो जाए, तो कुछ कहा नहीं जा सकता है. ये राजनीति है. ऐसे ही चलती है.
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