Hindi Diwas 2024, हिंदी दिवस
– फोटो : एएनआई
विस्तार
हास्य व्यंग्य के आका कवि काका हाथरसी की यह नगरी साहित्य से जुड़ी रही है। काका हाथरसी ने देश ही नहीं, विदेशी मंचों पर भी हिंदी को सर्वोच्च स्थान देने की वकालत की थी। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिए जाने पर काका हाथरसी ने खुले मंच से यह कविता पढ़ी थी…राजभाषा विधेयक पास हो गया, तो क्या गजब हो गया यार…, शोर मचाते हो बेकार, ये तो होना ही था यार, हिंदी को दासी बनकर रोना ही था…।
इस कविता के जरिये उन्होंने हिंदी की उपेक्षा पर अपनी टीस बयां की थी। अगर काका के जीवन पर खुद की लिखी किताब पर मेरा जीवन ए-वन पर नजर डालें तो यह स्पष्ट है कि काका को यह बात अंदर तक सालती थी हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिला। काका की इस पीड़ा को आज भी साहित्यकार याद करते हैं।
हिंदी हमारे माथे की बिंदी है। हिंदी हमारी मातृभाषा है। पद्मश्री दिवंगत कवि काका हाथरसी ने इसके बारे में अपनी कविता में कहा है कि हिंदी माता को करें काका कभी दंडौत, बूढ़ी दासी संस्कृत भाषाओं की स्रोत।-गोपाल चतुर्वेदी, साहित्यकार
हिंदी देश में सबसे अधिक बोली, समझी और लिखी जाने वाली भाषा है। यह संपूर्ण भारतवर्ष की भाषा है। यह जिस प्रतिष्ठा की अधिकारी है, वह इसे नहीं मिली, जबकि हमें गुलाम रखने वालों की भाषा देश के उच्च संस्थानों की भाषा बनी हुई है। -विद्यासागर विकल, साहित्यकार
भाषा के साहित्य का फलक बहुत ही व्यापक होता है। हिंदी भाषा और उसका साहित्य एक रोचक और ज्ञानवर्धक विषय होने के साथ-साथ रोजगार के अनेक अवसर प्रदान करने वाला है। बीते दो दशकों में हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ा है, यह सुखद बात है। -प्रो. (डॉ.) चंद्रशेखर रावल, हिंदी विभाग बागला महाविद्यालय, हाथरस।