खीर भवानी मंदिर में पूजा करते कश्मीरी पंडित….
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कश्मीर में 14 कश्मीरी पंडित इस बार चुनाव में उम्मीदवार हैं। यह आंकड़ा पिछले कई चुनावों में सबसे ज्यादा है। 2014 में 4, 2008 में 12, 2002 में 9 पंडितों ने चुनाव लड़ा था। 1990 में जब पंडितों को घाटी छोड़कर जाना पड़ा तो करीब 800 परिवार थे जो घर छोड़ने को राजी नहीं हुए। लेकिन तीन लाख कश्मीरी पंडित ऐसे भी हैं जो कभी लौटकर नहीं आ पाए। भले फिर उनके वोट कभी भी जीत-हार तय कर पाने की कुव्वत न रखते हों, पर चुनावों में उनकी वापसी हर नेता की तकरीर व राजनीतिक घोषणापत्र का हिस्सा है।
पंडितों के हक की लड़ाई लड़ने वाले डॉ. संदीप मावा कहते हैं, 90 के वक्त में उनके पिता जब वोट डालने जाते थे तो बूथ पर मौजूद नेता कहते थे, पंडितजी वापस जाओ आपका वोट डल गया। 34 वर्ष पूर्व भाजपा नेता टीका लाल टपलू की श्रीनगर में आतंकियों ने हत्या कर दी थी। यह घाटी में किसी पंडित राजनेता की पहली हत्या थी। टपलू के बेटे आशुतोष कहते हैं, पंडितों पर कितने ही जुल्म हुए, पर उन्होंने न हथियार उठाए, न पत्थर मारे और न ही प्रदर्शन किए। सिर्फ सब्र किया।
आपदा के साथ रंग बदलता पानी
अंजलि रैना बीए में थीं, जब 1990 में श्रीनगर का घर छोड़कर जम्मू भना पड़ा। तुलमुल में खीर भवानी मंदिर के कुंड में दूध चढ़ाते हुए वह कहती हैं, इस पानी का रंग कश्मीर पर आई आपदाओं के साथ बदल जाता है। जब पंडितों को भगाया गया तो कुंड का पानी काला हो गया था। रोशनलाल मावा कहते हैं, 1990 में वह ऑफिस में थे। एक आतंकी आया और सौंफ मांगी। इसके बाद पेट-कंधे में चार गोलियां दाग दीं। बच तो गए, पर जख्म कभी नहीं भरे। पीएन भट्ट कहते हैं, पंडितों की वापसी की गारंटी कोई पार्टी नहीं दे सकती। यहां सच्चा चुनाव कभी हुआ ही नहीं।
हब्बा कदल सीट से लड़ रहे छह कश्मीरी पंडित
पत्थरबाजी, प्रदर्शन, हड़ताल व आतंकवाद के लिए बदनाम श्रीनगर के डाउनटाउन में हब्बा कदल वह सीट है जहां सबसे ज्यादा वोटर व सबसे ज्यादा प्रत्याशी कश्मीरी पंडित हैं। छह पंडित उम्मीदवार इस सीट से लड़ रहे हैं आैर करीब 25 हजार वोटर पंडित हैं। 1987 में प्यारेलाल हांडू ने यहां से चुनाव लड़ा था। इसी सीट से दो बार वह जीते भी। 2002 में रमन मट्टू यहां से निर्दलीय लड़कर जीते व मुफ्ती सरकार में मंत्री बने। इस बार भाजपा के अशोक भट्ट उम्मीदवार हैं। संजय सराफ चौथी बार चुनाव लड़ रहे हैं। वे कहते हैं, मेरे लिए प्रचार करने वाली भीड़ में 99 प्रतिशत मुसलमान हैं।
भाजपा को छोड़ किसी भी बड़े दल ने कश्मीरी पंडितों को नहीं दिया टिकट
पॉलिटिक्स का ये एंगल खास है कि ये कश्मीरी पंडित या तो निर्दलीय हैं या फिर ऐसे किसी दल के हिस्से मैदान में हैं जिसकी हैिसयत कुछ खास नहीं। भाजपा के अलावा किसी भी बड़े दल ने उन्हें टिकट नहीं दिया। संजय सराफ बिहार वाले पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर हब्बा कदल से चुनाव लड़ रहे हैं।
पहली महिला पंडित उम्मीदवार
रामदास आठवले की रिपब्लिकन पार्टी से पुलवामा की राजपोरा सीट पर डेजी रैना कश्मीर से चुनाव लड़ने वाली पहली पंडित महिला उम्मीदवार हैं। श्रीनगर जादिबल से राकेश हांडू, बडगाम से संजय परवा, शंगस से दिलीप पंडिता व पांपोर से रमेश वांगू निर्दलीय लड़ रहे हैं। ऑल अलायंस डेमोक्रेटिक पार्टी से अशोक कुमार काचरू भद्रवाह से इकलौते पंडित प्रत्याशी हैं। वहीं अपनी पार्टी ने एमके योगी को टिकट दिया है।
अपनी जमीन पर वापसी की उम्मीद नहीं… बस कश्मीर की खैरियत चाहते हैं पंडित
सब्र के हवाले अपनी जमीनों से इतने साल बेदखल रहने वाले कश्मीरी पंडितों को 10 साल बाद सियासत के इस उत्सव से वापसी की उम्मीद नहीं है। वो बस कश्मीर की खैरियत चाहते हैं, ताकि यहां उनके अपने सलामत रहें, और साल में जब अष्टमी पर देवी पूजा के लिए वो यहां आए तो दुआओं के साथ सुकून भी हासिल हो।