Sharad Purnima 2024: हिन्दी पंचांग के अनुसार शरद पूर्णिमा हर वर्ष आश्विन मास में आती है. इस वर्ष शरद पूर्णिमा या आश्विन पूर्णिमा 16 अक्टूबर को है. शरद पूर्णिमा का एक विशेष धार्मिक महत्व होता है. इस दिन धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है.
शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर 2024 को मनाई जाएगी. शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा (Sharad Purnima 2024 moon) पृथ्वी के सबसे निकट होता है. अंतरिक्ष के समस्त ग्रहों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा चंद्रकिरणों के माध्यम से पृथ्वी पर पड़ती हैं. पूर्णिमा की चांदनी में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि चंद्रमा के औषधीय गुणों से युक्त किरणें पड़ने से खीर (kheer) भी अमृत के समान हो जाएगी. उसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होगा.
शरद पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त (Sharad Purnima 2024 Muhurat)
- शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा 16 अक्टूबर 2024
- पूर्णिमा तिथि आरंभ- 16 अक्टूबर 2024 को रात 8:45 मिनट पर से
- पूर्णिमा तिथि समाप्त- 17 अक्टूबर 2024 को शाम 4:50 मिनट
शरद पूर्णिमा की रात क्यों है सबसे खास ? (Sharad Purnima Night significance)
शरद पूर्णिमा की रात कई मायने में महत्वपूर्ण है. जहां इसे शरद ऋतु की शुरुआत माना जाता है, वहीं माना जाता है कि इस रात को चंद्रमा संपूर्ण 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है और अपनी चांदनी में अमृत बरसाता है. पूर्णिमा की रात हमेशा ही बहुत सुंदर होती है लेकिन शरद पूर्णिमा की रात को सबसे सुंदर रात कहा जाता है.
पुराणों तो यहां तक कहा गया है कि इसकी सुंदरता को निहारने के लिए स्वयं देवता भी धरती पर आते हैं.
शरद पूर्णिमा और खीर का कनेक्शन (Sharad Purnima and Kheer Importance)
शरद पूर्णिमा पर चांदनी के साथ झरते हुए अमृत रस को समेटने के लिए ही आज की रात खीर बनाकर चंद्रमा की चांदनी में रखा जाता है. इसी वजह से लोग इस पूरी रात्रि को खीर बनाकर चांदनी में रख देते हैं, ताकि उसे प्रसाद के रूप में सुबह स्नान करके खाने के बाद निरोग हो पाएं.
शरद पूर्णिमा पर क्या करें (Sharad Purnima Pujan vidhi)
- खीर क्यों बनाते हैं – पौराणिक मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात खुले आसमान के नीचे रखी गई खीर में अमृत का अंश होता है, जो आरोग्य सुख प्रदान करता है.
- कोजागरा पूजा – इसी के साथ आर्थिक संपदा के लिए शरद पूर्णिमा को रात्रि जागरण का विधान शास्त्रों में बताया गया है. यही कारण है कि इस रात को, को-जागृति यानी कोजागरा की रात भी कहा गया है.
- को-जागृति – को-जागृति और कोजागरा का अर्थ होता है कि कौन जाग रहा है. कहते हैं कि इस रात देवी लक्ष्मी सागर मंथन से प्रगट हुईं थी. इसलिए इसे देवी लक्ष्मी का जन्मदिवस भी कहते हैं. इसलिए जो इस रात देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं उन पर देवी की असीम कृपा होती है.
- ऐसे करें महालक्ष्मी को प्रसन्न – इस रात देवी लक्ष्मी की पूजा कौड़ी से करना बहुत ही शुभ फलदायी माना गया है.
- रात्रि में लक्ष्मी पूजा क्यों – शरद पूर्णिमा के निशा में माता लक्ष्मी घर-घर विचरण करती हैं. इस निशा में माता लक्ष्मी के आठ में से किसी भी स्वरूप का ध्यान करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है. देवी के आठ स्वरूप धनलक्ष्मी, धन्य लक्ष्मी, राजलक्ष्मी, वैभवलक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी और विजय लक्ष्मी है.
- खीर और चंद्रमा का संबंध – इस दिन रखे जाने वाले व्रत को कौमुदी व्रत भी कहते हैं. इस दिन खीर का महत्व इसलिए भी है कि यह दूध से बनी होती है और दूध को चंद्रमा का प्रतीक माना गया है. चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है.
श्वांस के रोगियों को फायदा
नेचुरोपैथी और आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार शरद पूर्णिमा की शुरुआत ही वर्षा ऋतु के अंत में होती है. इस दिन चांद धरती के सबसे करीब होता है, रोशनी सबसे ज्यादा होने के कारण इनका असर भी अधिक होता है. इस दौरान चांद की किरणें जब खीर पर पड़ती हैं तो उस पर भी इसका असर होता है.
रातभर चांदनी में रखी हुई खीर शरीर और मन को ठंडा रखती है. ग्रीष्म ऋतु की गर्मी को शांत करती और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है. यह पेट को ठंडक पहुंचाती है. श्वांस के रोगियों को इससे फायदा होता है साथ ही आंखों रोशनी भी बेहतर होती है.
रोग प्रतिरोधकता बढ़ती है
मान्यतों के अनुसार खीर को संभव हो तो चांदी के बर्तन में बनाना चाहिए. चांदी में रोग प्रतिरोधकता अधिक होती है.. इससे विषाणु दूर रहते हैं. हल्दी का उपयोग निषिद्ध है.
वैज्ञानिक कारण भी जानें
दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है. यह तत्व चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है. चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है. इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया गया है. कहते हैं इस दिन चांद की रोशनी में औषधीय गुण होते हैं जिसमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की क्षमता होती है.
शरद पूर्णिमा व्रत विधि (Sharad Purnima Vrat Vidhi)
- पूर्णिमा के दिन सुबह इष्ट देव का पूजन करना चाहिए. इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए.
- ब्राह्मणों को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए.
- लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है.
- रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए.
- मंदिर में खीर आदि दान करने का विधि-विधान है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है.
शरद पूर्णिमा पर पूजा करने से लाभ
शरद पूर्णिमा की रात जब चारों तरफ चांद की रोशनी बिखरती है उस समय मां लक्ष्मी की पूरा करने आपको धन का लाभ होगा. मां लक्ष्मी को सुपारी बहुत पसंद है. सुपारी का इस्तेमाल पूजा में करें. पूजा के बाद सुपारी पर लाल धागा लपेटकर उसको अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि से पूजन करके उसे तिजोरी में रखने से आपको धन की कभी कमी नहीं होगी.
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