{“_id”:”67951e2ed5e961d3210b70b8″,”slug”:”bihar-news-padma-bhushan-to-former-deputy-cm-late-sushil-modi-cancer-bjp-senior-leader-2025-01-25″,”type”:”story”,”status”:”publish”,”title_hn”:”Sushil Modi : पद्म भूषण सुशील मोदी थे आंकड़ों के बाजीगर, बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम की कैंसर ने ली थी जान”,”category”:{“title”:”City & states”,”title_hn”:”शहर और राज्य”,”slug”:”city-and-states”}}
पीएम मोदी ने सुशील मोदी के साथ यह तस्वीर शेयर की थी। – फोटो : अमर उजाला
विस्तार
पूर्व उपमुख्यमंत्री व भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता सुशील मोदी को मरणोपरांत पद्म भूषण पुरस्कार मिला है। केंद्र सरकार ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 2025 के लिए पद्म पुरस्कारों की घोषणा की है। इनमें एक नाम पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी का भी है। बिहार की राजनीति के पुरोधा और भारतीय जनता पार्टी की लंबे समय तक पहचान रहे दिग्गज नेता सुशील कुमार मोदी को कैंसर ने 13 मई 2024 को लील लिया था। आंकड़ों के जादूगर कहे जाने वाले करीब आठ माह बाद फिर से सुर्खियों में आ गए। सोशल मीडिया में फिर से कई युवा उनके बारे में सर्च कर रहे। उन्हें जानना चाहते हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में…
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रेडिमेड की दुकान पर भी बैठे और 15 साल में 11 बार बिहार का बजट भी पढ़ा
महज 16 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े। संगठन के प्रति अपार निष्ठा से वह आरएसएस सदस्य बने रहे। 1973 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव बने। वर्ष 1973 में बिहार प्रदेश छात्र संघर्ष समिति के सदस्य बने। जेपी आंदोलन हुआ तो सुशील मोदी भी इसमें कूद पड़े। कांग्रेस की सरकार ने इन्हें 19 महीने तक जेल में रखा। 1977 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़े। कुछ महीनों तक पिता के साथ रेडिमेड की दुकान को भी संभाला। इसी बीच भाजपा ज्वाइन की। 1990 में भाजपा ने पटना केंद्रीय विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया। चुनाव जीते। मुख्य सचेतक भी बने। नवंबर 1996 में नेता प्रतिपक्ष बने। इसके बाद बिहार की राजनीति में उनका कद बढ़ता ही चला गया। 2000 में सात दिन के लिए नीतीश सरकार बनी तो मंत्री भी बने। इसके बाद फिर 2004 तक नेता प्रतिपक्ष बने रहे। इस दौरान सुशील लालू-राबड़ी सरकार के खिलाफ जनता की आवाज बन उभड़े। लगातार लालू परिवार के खिलाफ सबूत लेकर सामने आएं। आंकड़ों का ऐसा जादू चलाया कि लालू परिवार को काफी नुकसान पहुंचा। 2004 के लोकसभा चुनाव में सुशील मोदी भाजपा के टिकट पर भागलपुर से सांसद बने। 2005 में उन्होंने संसद सदस्यता से इस्तीफा दिया और बिहार सरकार में उपमुख्यमंत्री बने। विधान परिषद तब से वह विधान परिषद् के ही सदस्य थे। सुशील मोदी 2005 से 2013 और 2017 से 2020 तक बिहार के वित्त मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने 11 बार बिहार का बजट पढ़ा।
50 दिनों तक ऐसा अभियान चलाया कि नीतीश भाजपा के साथ आ गए
2013 में जब प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को भाजपा ने आगे किया था, तब नीतीश कुमार ने भाजपा से दूरी बना ली। येन-केन-प्रकारेण यह दूरी बनी तो 2014 के लोकसभा के बाद 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी कायम रही। भाजपा को इस चुनाव में भारी झटका लगा। कोई तारणहार नहीं नजर आ रहा था। नीतीश कुमार वापस लालू प्रसाद यादव के साथ हो लिए थे। पहली बार तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम की कुर्सी मिली थी। सब ठीक ही चल रहा था। लेकिन, फिर सुशील कुमार मोदी ने मिट्टी-मॉल घोटाले की फाइल ऐसी खोली कि नीतीश कुमार को अपने फैसले पर शक होने लगा। लगभग 50 दिनों तक सुशील मोदी ने ऐसा अभियान चलाया कि नीतीश कुमार का शक यकीन में बदल गया और 2015 में लिए महागठबंधन के लिए जनादेश को ठुकरा कर वह 2017 में वापस भाजपा के साथ आ गए। वर्ष 2020 में जब बिहार में फिर से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चाहते थे कि सुशील मोदी ही डिप्टी सीएम बनें। लेकिन, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। कैंसर की घोषणा करते समय तक राज्यसभा सांसद ही थे। पिछले महीने ही उनका कार्यकाल भी खत्म हुआ था।
पीएम मोदी ने कहा था- भाजपा के उत्थान के पीछे उनका अमूल्य योगदान
पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि बिहार में भाजपा के उत्थान और उसकी सफलताओं के पीछे उनका (सुशील मोदी) अमूल्य योगदान रहा। आपातकाल का पुरजोर विरोध करते हुए, उन्होंने छात्र राजनीति से अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। वे बेहद मेहनती और मिलनसार विधायक के रूप में जाने जाते थे। राजनीति से जुड़े विषयों को लेकर उनकी समझ बहुत गहरी थी। उन्होंने एक प्रशासक के तौर पर भी काफी सराहनीय कार्य किए। जीएसटी पारित होने में उनकी सक्रिय भूमिका सदैव स्मरणीय रहेगी।