भारत के साथ-साथ देश-विदेश के वैज्ञानिक इस खोज में लगे थे की गंगा नदी का पानी कई वर्षों तक रख लो वह खराब नहीं होता, इसके पीछे क्या कारण हो सकता है। वैज्ञानिक यह भी खोज रहे थे कि गंगा में प्रत्येक वर्ष कई धार्मिक अवसरों पर करोड़ों लोगों द्वारा डुबकी लगाने के बावजूद भी गंगा नदी से कोई बीमारी या महामारी नहीं फैलती। यहां तक की पिछले कुंभ के दौरान भी इन वैज्ञानिकों ने वहां जाकर उसका सैंपल एकत्र किया था। नागपुर स्थित देश की बड़ी संस्था राष्ट्रीय पर्यावरण अभियंत्रिक अनुसंधान संस्थान (NEERI) के वैज्ञानिकों ने इस रहस्य को खोज निकला है।
कैसे निर्मल रहती है गंगा?
वैज्ञानिकों की खोज में यह बात सामने आई है कि गंगा के जल में अपने आप सफाई करने से संबंधित बैक्टीरियोफेज मौजूद होते हैं ,जो इसके पानी को खराब होने को से रोकते हैं। इस बात की जानकारी राष्ट्रीय पर्यावरण अभियंत्रिक अनुसंधान संस्थान (NEERI) के वैज्ञानिक डॉ कृष्ण खैरनार ने इंडिया टीवी के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत के दौरान दी है।
विज्ञान को ने अपने रिसर्च के लिए इसे तीन चरणों में बांटा है-:
1) गौमुख से हरिद्वार
2)हरिद्वार से पटना
3) पटना से गंगासागर
सेल्फ प्यूरीफाई के तीन तत्व
डॉ कृष्णा खैरनार ने बताया है वैज्ञानिकों की टीम ने गंगाजल के नमूने बारिश से पहले एवं एक बार बारिश के बाद लेकर अपनी जांच शुरू की थी। वैज्ञानिकों ने जो नमूने लिए उन में गंगाजल, गंगा के तट की मिट्टी, रेत का समावेश है। वैज्ञानिकों ने वो तत्व खोज लिया है जिस वजह से गंगा का पानी गंदा नहीं होता। वैज्ञानिकों ने यह खोज निकाला है कि गंगा में सेल्फ प्यूरीफाई के तीन तत्व छुपे हुए हैं। वैज्ञानिकों ने पिछले कुंभ के दौरान भी रिसर्च के लिये गंगाजल के सैंपल को एकत्र करके किया था।
गंगा जल में बैक्टीरियोफेज पाए जाते हैं
NEERI के वैज्ञानिक डॉक्टर कृष्ण खैरनार ने कहा कि गंगा जल में बैक्टीरियोफेज पाए जाते हैं,जो इसे गंदा होने से बचाते हैं। ऐसे में इनके संरक्षण की जरूरत है। गंगा नदी के औषधिय गुणों एवं प्रवाह मार्ग से जुड़े कारणों का अध्ययन NEERI ने तीनों मौसम के अध्ययन और तीन चरणों में पूरा किया। इसमें गंगा नदी के 50 से अधिक स्थलों का परीक्षण किया गया। लगभग 2 साल चले इस अध्ययन में गंगाजल के विशेष गुण धर्म के स्रोत को पहचान करने की कवायद चली। वैज्ञानिक दल को गंगा के पानी में कीटाणु को खत्म करने वाले बैक्टीरियोफेज मिला है जो कि एक तरह का वायरस है, जो इन पँथोजेनिक बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों के विरुद्ध लड़ने का काम करता है। NEERI के वैज्ञानिकों को गंगाजल मैं डिजॉल्व ऑक्सीजन भी मिला है। ये लगभग सिचुरेशन लेवल तक रहता है। इसके अलावा 20 मिलीलीटर तक ऑक्सीजन गंगा जल में मिला है। टरपीन नमक फाइटोकेमिकल भी वैज्ञानिकों ने खोज निकाला है। यह तीन तत्व हैं जो गंगा को निर्मल बनाने में कारगर सिद्ध होते हैं।
गंगा नदी में विशेष गुणों की खोज
NEERI के वैज्ञानिकों ने पहले दौर की खोज में गौमुख से टिहरी डैम के बीच संशोधन किया। इस संशोधन के बाद यह तथ्य खोज निकाला गया की गंगा इतनी पवित्र क्यों है। वैज्ञानिकों की खोज में पाया था कि गंगा के पानी में बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु पाए जाते हैं, जो गंगा के पानी को खराब नहीं होने देते। बैक्टीरियोफेज गंगा के उद्गम से लेकर ऋषिकेश के क्षेत्र तक के इलाके शोध में पाया गया है। बैक्टीरियोफेज सूक्ष्म होते हैं, जिन्हें आंखों से नहीं देखा जा सकता। बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु पानी को प्रदूषित करने वाले बैक्टीरिया को खत्म कर देते हैं। वैज्ञानिकों ने गोमुख से ऋषिकेश के बीच भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी के नाम से जाने वाली गंगा के सैंपल का शोध किया था। वैज्ञानिक अनुसंधान में पाया गया कि गंगा अपने पानी को खुद निर्मल बनाती है। वैज्ञानिकों की टीम ने उद्गम से हुगली नदी तक गंगा नदी में पाए जाने वाले विशेष गुणों की खोज की है। वैज्ञानिकों ने टिहरी बांध से भी जल नमूनों की जांच की थी। टीम के वैज्ञानिक डॉक्टर कृष्णा खैरनार ने बताया कि जांच के लिए टीम ने बांध के स्थल से 250 मीटर गहराई तक के सैंपल लिए थे।
गंगा में सेल्फ प्यूरिफाई तत्व
कुंभ के दौरान वैज्ञानिकों ने जो परीक्षण किया था उस संबंध में डॉक्टर कृष्णा खैरनार ने कहा कि गंगा में सेल्फ प्यूरिफाई तत्व छुपे हुए हैं। कुंभ के दौरान शाही स्नान के दौरान सरकार काफी इंतजाम करती है। करोड़ों लोग गंगा में स्नान करते हैं। करोड़ों लोगों के स्नान करने के बाद भी कुछ समय बाद गंगा अपने आप को इस स्थिति में कर लेती है। गंगा में वह ताकत है कि गंगा अपनी गंदगी को साफ कर सकती है। करोड़ों लोग एक साथ स्नान करते हैं, उसके बावजूद जहां लोग स्नान करते हैं उसके 5 किलोमीटर दूरी पर गंगा की स्थिति पूरे तरीके से पवित्र और निर्मल दिखती है। और जहां पर लोग स्नान करते हैं वहां पर भी तीन-चार दिनों में गंगा अपने आप को इस तरीके से निर्मल बना लेती है। NEERI के वैज्ञानिकों ने बताया कि 1896 में हैकिंग नामक वैज्ञानिक ने भी रिपोर्ट दी थी की गंगा का पानी एंटीबैक्टीरियल क्रिया को अंजाम देता है।
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