World Health Day 2025: वर्ल्ड हेल्थ डे यानी विश्व स्वास्थ्य दिवस दुनियाभर में हर साल 7 अप्रैल को मनाया जाता है. यह दिन केवल डॉक्टरों या हेल्थ वर्कर्स के लिए नहीं, बल्कि आम लोगों के लिए भी एक खास मैसेज लेकर आता है. वर्ल्ड हेल्थ डे यह याद दिलाता है कि सेहत ही हमारी सबसे बड़ी संपत्ति है. तो आज विश्व स्वास्थ्य दिवस पर बात करेंगे आंखों से जुड़ी एक ऐसी बीमारी की जो चिंता का विषय बनती जा रही है.
बच्चे काफी सेंसेटिव होते हैं, इसलिए बीमारियों की चपेट में जल्दी आ जाते हैं. पिछले कुछ समय से एक बीमारी बच्चों को तेजी से अपना शिकार बना रही है. यह आंखों से जुड़ी बीमारी है, जिसे मायोपिया (Mayopia) कहते हैं. WHO ने अपनी एक रिपोर्ट में हर किसी को अलर्ट करते हुए कहा है कि अगर सही समय पर ध्यान नहीं दिया गया तो 2050 तक वैश्विक आबादी का लगभग 52% हिस्सा मायोपिया से ग्रस्त हो जाएगा.
आपको बता दें कि साल 2000 में केवल 3-4 लोगों को ही मायोपिया हुआ करता था, लेकिन 2022 आते-आते यह संख्या बढ़कर 20% हो गई. कोविड-19 महामारी ने मायोपिया के जोखिम को और बढ़ा दिया, क्योंकि इसके दौरान बच्चे ऑनलाइन क्लासेस अटेंड करते थे.
मायोपिया क्या है
मायोपिया का मतलब निकट दृष्टि दोष. इसमें रिफरेक्टिव एरर की वजह से बच्चों को दूर की कोई भी चीज ब्लर यानी ठीक से नहीं दिखाई देती है, जबकि पास की चीज साफ-साफ नजर आती है. इस बीमारी में बच्चों को कम उम्र में ही चश्मा लग जाता है. इसलिए डॉक्टर शुरू से ही उनका ख्याल रखने की सलाह देते हैं. मायोपिया के शिकार बच्चे टीवी, रास्ते में साइन बोर्ड, स्कूल में ब्लैक बोर्ड ठीक तरह से नहीं देख पाते हैं.
क्यों होती है ये बीमारी
वैसे तो मायोपिया वंशानुगत बीमारी है इसमें पारिवारिक पैटर्न नजर आता है लेकिन लेकिन हाल ही की रिसर्च में यह सामने आया है कि पर्यावरण और तेजी से बदलती लाइफस्टाइल के साथ-साथ स्क्रीन टाइम भी इस बीमारी के बढ़ने का कारण माना गया है. आजकल देखा गया है कि बच्चे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स में सबसे ज्यादा समय बिताते हैं. मोबाइल का स्क्रीन टाइम भी बढ़ गया है जिसकी वजह से बच्चों को ये बीमारी अपना शिकार बना रही है.
दरअसल स्क्रीन से बिखरने वाली नीली रोशनी नींद के पैटर्न को बाधित करती है, जिससे मायोपिया का जोखिम और भी बढ़ जाता है. शोध से पता चला है कि बाहरी रोशनी के संपर्क में रहने से, खासकर बचपन में, मायोपिया डेवलप नहीं हो पाता. अल्ट्रावॉयलेट (यूवी) लाइट के कॉनटेक्ट में आने से रेटिना में डोपामाइन रिसने लगता है, जो आईबॉल को जरूरत से ज्यादा फैलने नहीं देता.
बच्चों में मायोपिया के लक्षण
1. दूर की चीजें साफ-साफ नजर न आना
2. दूर की कोई चीज देखने के लिए आंखों पर जोर लगाना
3. आंखों में तनाव और थकान महसूस होना
4. अटेंशन या फोकस कम होना
5. सिरदर्द लगातार बने रहना
बच्चों में क्यों फैल रहा मायोपिया
5, 10 साल के बच्चों की नजर कमजोर होना अच्छा संकेत नहीं है. आजकल बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है और बाहर की फिजिकल एक्टिविटीज कम हो गई है. पैरेंट्स अपने बच्चों को मोबाइल पकड़ाकर कार्टून देखने के लिए छोड़ देते हैं. इससे डेवलपिंग स्टेज में ही बच्चों की आंखों पर निगेटिव इफेक्ट पड़ने लगता है. जिसकी वजह से नजर तेजी से कमजोर हो रही है.
यह भी पढ़ें :क्या होता है फंगल इंफेक्शन, जिस पर WHO की पहली रिपोर्ट ने बढ़ा दी टेंशन
मायोपिया होने के सबसे बड़े कारण
1. नेशनल आई इंस्टीट्यूट के अनुसार, मायोपिया अक्सर 6 से 14 साल की उम्र तक शुरू होता है और 20 साल की उम्र तक इसके लक्षण बद से बदतर हो सकते हैं. इसका कारण स्क्रीन में आंखें गड़ाए रखना है.
2. डायबिटीज जैसी कई हेल्थ कंडीशन की वजह से बड़ों में भी मायोपिया हो सकता है.
3. विजुअल स्ट्रेस, स्मार्टफोन या लैपटॉप स्क्रीन पर लगातार समय देने से मायोपिया हो सकता है.
4. फैमिली हिस्ट्री यानी जेनेटिक कंडीशन से भी मायोपिया हो सकता है.
5. ज्यादातर समय घर से रहना भी मायोपिया का मरीज बना सकता है.
मायोपिया से बच्चों की आंखें कैसे बचाएं
1. आउटडोर एक्टिविटीज बढ़ाएं.
2. बच्चों को हरियाली वाली जगहों पर ले जाएं.
3. स्क्रीन टाइम कम करें.
4. पढ़ने के बीच-बीच में ब्रेक लेने को कहें.
5. स्क्रीन या किताब बहुत नजदीक से न देखें.
6. स्क्रीन के सामने एंटीग्लेयर या ब्लू कार्ट चश्मा पहनें.
Check out below Health Tools-
Calculate Your Body Mass Index ( BMI )