Chardham Yatra: 30 अप्रैल 2025 से चारधाम यात्रा शुरू होने जा रही है. इससे पहले BKTC (Shri Badrinath-Kedarnath Temple Committee) ने केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम में वीडियो और रील्स बनाने पर बैन लगा दिया है. इसके तहत दोनों मंदिरों के 30 मीटर के दायरे में कोई भी शख्स वीडियो-रील्स नहीं बना पाएगा. समिति का कहना है कि अगर कोई नियमों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
केदारनाथ (Kedarnath) और बद्रीनाथ धाम में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर के आसपास वीडियो और रील बनाने लगते हैं. जिस कारण लोगों को दिक्कतों को सामना करना पड़ रहा था. पिछले वर्ष केदारनाथ धाम परिसर में रील बनाने पर पुरोहितों ने काफी विरोध व्यक्त किया था. कई बार यहां पर विवाद की स्थिति भी देखी गई थी, जिसके वीडियो भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुए थे. यही कारण है कि इस बार चार धाम यात्रा से पहले बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति विशेष तैयारियों भी जुट गई है. ताकि भक्तों को यात्रा में किसी तरह की कोई परेशानी न हो. इसके लिए मंदिर समिति एक गाइडलाइन भी जारी कर रही है.
धार्मिक स्थलों पर वीडियो रील आदि बनाना कितना उचित है, इस पर समय-समय पर प्रश्न उठते रहे हैं. कई बार जानकारी के अभाव में न चाहते हुए भी गलतियां हो जाती है, इस तरह के कार्यों को लेकर धर्म क्या कहता है, शास्त्र क्या निर्देश देते हैं, जानते हैं-
कंटेंट’ बनाम ‘कांसेप्ट’: जब श्रद्धा बन जाए प्रदर्शन
आज की पीढ़ी के लिए मंदिर, मस्जिद या तीर्थ यात्रा केवल एक Instagram रील का बैकग्राउंड बन कर रह गए हैं. शांति और साधना की जगह अब ट्रेंडिंग म्यूजिक और स्टाइलिश एंगल्स ने ले ली है. लेकिन क्या यह सही है? उत्तराखंड प्रशासन ने इसी के चलते केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) में रील बनाने पर पूर्ण प्रतिबंध (Social Media Ban at Kedarnath) लगाया है. कारण स्पष्ट है, धार्मिक पवित्रता का उल्लंघन और अनुशासन की अवहेलना को रोकना.
शास्त्रों की दृष्टि में धर्मस्थल का अपमान क्या पाप है?
- मनुस्मृति (2.177) में इस पर बड़े ही सरल और सटीक तरह से बताया गया है-
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:’
(अर्थात- जहां मर्यादा और भक्ति होती है, वहीं देवता निवास करते हैं.) - महाभारत के अनुशासन पर्व (92.14) में तो इस पर साफ तौर पर चर्चा की गई कि धार्मिक स्थलों पर क्या नहीं करना चाहिए-
‘न कुर्यात् देवतायात्रां हास्याय वा प्रदर्शनम्.’
(अर्थात- धार्मिक स्थलों पर हास्य, मज़ाक और प्रदर्शन करना पाप माना गया है.) - शिव पुराण में भी धार्मिक स्थलों पर किस तरह का भाव रखना चाहिए, इस बारे में बताया गया है-
‘तीर्थं शिवस्य पूज्यं च, यत्र भक्तिर्यथार्थिका.’
(अर्थात- तीर्थ में केवल शुद्ध भक्ति ही मान्य है, दिखावा नहीं.)
रील संस्कृति बनाम धर्म संस्कृति (Reel Culture vs Dharma)- इस बात को समझने की आवश्यकता है, धर्म के जानकार और विद्वानों की मानें तो रील का मूल उद्देश्य ‘स्वयं का प्रचार’ (Self Promotion) है, जबकि धर्म का उद्देश्य ‘स्वयं का विसर्जन’ (Self Dissolution) है. क्योंकि इसका सीधा असर आपकी मानसिक एकाग्रता, आस्था और देवस्थान की ऊर्जात्मक संरचना पर होता है. इसलिए जब भी धार्मिक स्थल पर जाएं तो इन बातों का ध्यान रखें-
धर्म प्रदर्शन नहीं- तीर्थ पर कैमरा नहीं, चेतना लेकर जाएं (Spiritual Awareness). क्योंकि जब आप कैमरे की नजर से देखते हैं, तो आप दृश्य देखते हैं. वहीं जब आप ध्यान की नजर से देखते हैं, तो आप दिव्यता को महसूस करते हैं. धर्म और अध्यात्म की इसी शक्ति को इन स्थलों पर महसूस करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि दिव्य स्थल विशेष एनर्जी के लिए भी जाने जाते हैं, इसलिए इनका विशेष महत्व होता है.
यही कारण है प्राचीन काल में तीर्थयात्रा का एक विशेष उद्देश्य होता था. लोग परिवार, समूह के साथ भी धार्मिक स्थलों की यात्रा करते थे, इसके पीछे क्या कारण माने जाते थे, आइए जानते हैं-
- आत्मचिंतन
- पाप प्रायश्चित
- मोक्ष प्राप्ति
लेकिन आज इन के मायने पूरी तरह से बदल गए हैं, अब यह बन गया है-
- Travel Goals- इसका मतलब है विशिष्ट उद्देश्य या लक्ष्य निर्धारित करने के लिए यात्रा करना है. धार्मिक यात्रा दिखावा नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसके पीछे के दर्शन को समझना चाहिए. विद्वानों की मानें तो धार्मिक यात्रा का एक विशिष्ट मकसद होता है. इसे भोग विलास से जोड़कर नहीं देखना चाहिए.
- OOTD at Temple- इसका मतलब है, ‘दिन के पहनावे’ (Outfit of the Day) की तस्वीर या वीडियो, जो किसी मंदिर में ली गई हो. OOTD यह ‘Outfit of the Day’ का संक्षिप्त रूप है, जो सोशल मीडिया पर काफी लोकप्रिय है. इसलिए, ‘OOTD at Temple’ का अर्थ है, किसी विशेष दिन पर पहने गए कपड़ों की तस्वीर या वीडियो, जो किसी मंदिर या धार्मिक स्थल में ली गई हो.
धार्मिक स्थल: वायरल स्पॉट नहीं, वंदनीय स्थल हैं (Respect Holy Sites)
धार्मिक स्थलों की एक मर्यादा होती है इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए. इसे किसी भी रूप में भंग नहीं करना चाहिए. यदि धार्मिक स्थल पर कोई रील बनाता है तो इससे आध्यात्मिक ऊर्जा में व्यवधान में पड़ता है. साथ ही दूसरों की साधना में भी विघ्न पड़ता है और देवताओं का अनादर होता है. इसलिए धर्म में दिखावे से पुण्य नहीं, पाप अर्जित होता है.
क्या रील बनाना गलत है? (Is Making Reels Wrong?)
इस प्रश्न का सीधा उत्तर है- नहीं. रील बनाना गलत नहीं है लेकिन धार्मिक स्थलों पर रील आदि बनाना अनुचित है. क्योंकि धर्म प्रचार नहीं है. अभ्यास धर्म का अंग है. अगर धर्म पर वीडियो बनाते हैं नियमों का पालन करते हुए जागरुकता लाने और जो धार्मिक उद्देश्य को ध्यान में रखकर यदि करते हैं तो ये गलत नहीं है. लेकिन इसमें मार्यदा और पवित्रता के साथ नियमों का पूर्ण पालन करना चाहिए. इसके लिए आप अपने स्टूडियो और यूट्यूब चैनल पर प्रसारित कर सकते हैं.
संतों का संदेश: श्रद्धा मौन में है, शोर में नहीं (Silent Devotion vs Loud Display), भारत की संत परंपरा अत्यंत विशाल है. धर्म क्या है? इस पर स्वामी विवेकानंद कहते हैं ‘ध्यान ही धर्म का मूल है, दिखावा उसका विनाश है.’ रामकृष्ण परमहंस के शब्दों में ‘जहां ईश्वर की उपस्थिति हो, वहां केवल मौन ही भाषा है.’
कैमरा बंद कीजिए, चेतना चालू कीजिए- धर्म डिजिटल नहीं, दिव्य है (Dharma Is Divine, Not Digital) केदारनाथ हो या किसी अन्य पवित्र स्थल, ये ‘रील सेट’ नहीं, आत्मा की यात्रा के केन्द्र हैं. शास्त्र कहते हैं- ‘श्रद्धा में दिखावा अधर्म है.’ यह समय है धर्म के मर्म को समझने का.
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