पूर्व प्रधानमंंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू।
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सियासत में कद्दावरों के बीच दोस्ती और पसंद कितना मायने रखती है, इसकी झलक बलरामपुर के सियासी दंगल में देखने को मिली थी। बात 1962 के लोकसभा चुनाव की है, जब कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार के लिए प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू नहीं आए। वह जनसंघ के प्रत्याशी अटल बिहारी वाजपेयी को मानते थे, इसलिए उनके विरुद्ध प्रचार करने से गुरेज कर रहे थे।
कांग्रेस ने प्रधानमंत्री की चुनावी रैली की तैयारी परेड ग्राउंड में पूरी कर ली थी। कार्यक्रम लगभग तय था। पदाधिकारियों में गजब का उत्साह था, लेकिन ऐन वक्त पर प्रधानमंत्री नेहरू के न आने का संदेश मिला। इससे पदाधिकारियों को झटका लगा। प्रधानमंत्री तक यह संदेश गया कि जनता कांग्रेस के पक्ष में है, बस माहौल बनाने की जरूरत है। इसके बाद भी नेहरू जी खुद नहीं आए। नेहरू ने माहौल बनाने के लिए फिल्म स्टार बलराज साहनी को भेजा। उन्होंने दो दिन रुक कर व्यापक प्रचार किया, जिसका असर भी दिखा। पार्टी को 2052 मतों से ही जीत हासिल हो सकी।
नेहरू ने ही भेजा था, फिर भी पूरी नहीं हुई थी प्रत्याशी की मुराद
लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिए पहली बार फिल्म एक्टर की एंट्री हुई। बात उस समय की है जब जनसंघ से अटल बिहारी वाजपेयी को बलरामपुर लोकसभा सीट पर दोबारा प्रत्याशी बनाया गया था। 1957 का चुनाव जीत चुके अटल बिहारी के अंदर पिछली जीत का उत्साह था। वहीं, कांग्रेस ने भी पिछली हार का बदला लेने के लिए दो बार संसद रह चुकीं सुभद्रा जोशी को मैदान में उतार दिया।
सुभद्रा जोशी का नाम सुनकर अटल बिहारी भी चौंक गए। अटल के सहयोगी दुलीचंद्र बताते हैं कि उन्होंने कहा कि बलरामपुर की जनता सुभद्रा को इतना नहीं जानती जितना मुझे पहचानती है। मेरी जीत में कोई शक नहीं है और अटल जी चुनाव प्रचार में जुट गए। सुभद्रा पहले अंबाला और करनाल से सांसद रह चुकी थीं और पंडित जवाहरलाल नेहरू के कहने पर बलरामपुर के चुनावी मैदान में उतरने को तैयार हुई थीं। सुभद्रा चाहती थीं कि पंडित नेहरू खुद बलरामपुर आकर उनका प्रचार करें।