Vedas: सनातन धर्म में वेदों का स्थान सर्वोच्च है. जिस तरह से इस्लाम के लिए कुरान, ईसाई अनुयायी के लिए बाइबिल, पारसी के जेन अवेस्ता का जो स्थान है, उससे भी गौरवशाली स्थान हमारे प्राचीनतम ग्रंथ वेदों का है. चारो वेदों में जीवन जीने की कला, संस्कार, जीवन मूल्य आदि वेदों प्रदत्त उपादेय हैं.
वेद क्या है (What is Vedas)
यदि सही जीवन जीना है तो वैदिक मार्ग का अनुसरण करना ही श्रेष्ठ है. ‘वेद’ शब्दमय ब्रह्म का मूर्तस्वरूप है, इसलिए सभी शास्त्रों में ‘वेद’ शब्द का अपर पर्याय ‘ब्रह्म’ प्रसिद्ध हैं. ‘वेद’ शब्द ‘विद सत्तायाम्’, ‘विद ज्ञाने’, ‘विद विचारणे’ और ‘विद्लृ लाभे’- इन चार धातुओं से निष्पन्न होता है, जिसका अर्थ है- जिसकी सदैव सत्ता हो, जो अपूर्व ज्ञान–प्रद हो, जो ऐहिकामुष्मिक उभयविध विचारों का कोश हो और जो लौकिक और लोकोत्तर लाभप्रद हो, ऐसे ग्रन्थ को ‘वेद’ कहते हैं. पर वेदों को समझने वाले और समझाने वाले सही विद्वान् आज गिने-चुने ही हैं. आइये वेदों के कुछ शिक्षाप्रद मंत्रों पर गौर करते हैं-
वेदों के प्रकार (Types of Vedas)
- ऋग्वेद (Rigveda)
- यजुर्वेद (Yajurveda)
- सामवेद (Samaveda)
- अथर्ववेद (Atharvaveda)
ऋग्वेद से मिलने वाली शिक्षाएं –
एकं सद् विघ्रा बहुधा वदन्ति। (1. 164. 46)
उस एक प्रभु को विद्वान् लोग अनेक नामों से पुकारते हैं.
एको विश्वस्य भुवनस्य राजा॥ (6. 36. 4)
वह सब लोकों का एकमात्र स्वामी है.
यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति॥ (1.164.39)
जो उस ब्रह्म को नहीं जानता, वह वेद से क्या करेगा?
सं गच्छध्वं सं वदध्वम्। (10. 191.2)
मिलकर चलो और मिलकर बोलो.
शुद्धाः पूता भवत यज्ञियासः॥ (10.18.2)
शुद्ध और पवित्र बनो तथा परोपकारमय जीवन वाले हो.
स्वस्ति पन्थामनु चरेम। (5. 51.15)
हम कल्याण-मार्ग के पथिक हों.
देवानां सख्यमुप सेदिमा वयम्॥ (1. 89.2)
हम देवों (विद्वानों) की मैत्री करें.
उप सर्प मातरं भूमिम्। (10.18.10)
मातृ भूमि की सेवा करो.
भद्रंभद्रं क्रतुमस्मासु धेहि। (1. 123.13)
हे प्रभो! हम लोगों में सुख और कल्याणमय उत्तम संकल्प, ज्ञान और कर्म को धारण कराओ.
यजुर्वेद से मिलने वाली शिक्षाएं –
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम। (15. 21)
हम कानों से भद्र-मंगलकारी वचन ही सुनें.
स ओतः प्रोतश्च विभूः प्रजासु॥ (32.8)
वह व्यापक प्रभु सब प्रजाओं में ओतप्रोत है.
मा गृधः कस्य स्विद् धनम्॥ (40.1)
किसी के धन पर न ललचाओ.
मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे।। (36.18)
हम सब परस्पर मित्र की दृष्टि से देखें.
तमेव विदित्वाति मृत्युमेति॥ (31.18)
उस ब्रह्म (प्रभु) को जानकर ही मनुष्य मृत्यु को लांघ जाता है.
ऋतस्य पथा प्रेत। (7.45)
सत्यके मार्गपर चलो.
तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु॥ (34.1)
मेरा मन उत्तम संकल्पोंवाला हो.
सामवेद से मिलने वाली शिक्षाएं –
अध्वरे सत्यधर्माणं कविं अग्रिं उप स्तुहि। (32)
हिंसा रहित यज्ञ में सत्य धर्म का प्रचार करने वाले अग्नि की स्तुति करो.
ऋचा वरेण्यं अवः यामि॥ (48)
वेद मन्त्रों से मैं श्रेष्ठ संरक्षण मांगता हूं.
मन्त्रश्रुत्यं चरामसि॥ (176)
वेद मन्त्रों में जो कहा है, वही हम करते हैं.
ऋषीणां सप्त वाणीः अभि अनूषत्॥ (577)
ऋषियों की सात छन्दों वाली वाणी कहो-वेदमन्त्र बोलो.
अमृताय आप्यायमानः दिवि उत्तमानि श्रवांसि धिष्व।।(603)
मोक्ष प्राप्ति के लिए तू अपनी उन्नति करते हुए द्युलोक में उत्तम यश प्राप्त कर.
यज्ञस्य ज्योतिः प्रियं मधु पवते। (1031)
यज्ञ की ज्योति प्रिय और मधुर भाव उत्पन्न करती है.
अथर्ववेद से मिलने वाली शिक्षाएं –
तस्य ते भक्तिवांसः स्याम। (6. 79.3)
हे प्रभो! हम तेरे भक्त हों.
एक एव नमस्यो विवीड्यः। (2.2.1)
एक परमेश्वर ही पूजा के योग्य और प्रजाओं में स्तुत्य है.
स नो मुञ्चत्वंहसः॥ (4.23.1)
वह ईश्वर हमें पाप से मुक्त करे.
य इत् तद् विदुस्ते अमृतत्वमानशुः॥ (9.10.1)
जो उस ब्रह्म को जान लेते हैं, वे मोक्षपद पाते हैं.
सं श्रुतेन गमेमहि॥ (1.1.4)
हम वेदोपदेश से युक्त हों.
यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभिः॥ (9.10.14)
यज्ञ ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को बांधने वाला नाभिस्थान है.
ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाक्षत। (11.5.19)
ब्रह्मचर्य रूपी तपो बल से ही विद्वान् लोगों ने मृत्यु को जीता है.
मधुमर्ती वाचमुदेयम्॥ (16.2.2)
मैं मीठी वाणी बोलूं.
परंतु मृत्युरमृतं न ऐतु। (18.3.62)
मृत्यु हमसे दूर हो और अमृत-पद हमें प्राप्त हो.
सर्वमेव शमस्तु नः॥ (19. 9.14)
हमारे लिए सब कुछ कल्याणकारी हो.
इन मंत्रो में हम जीवन का सार पाते हैं. यज्ञ के महत्व से लेकर भक्ति की शक्ति को समझाने का काम वेद में किया गया है. वेद का अनुसरण हमें सही मार्ग की ओर प्रशस्त करेगा जो हमें आदि मानव से महामानव बनाने में सहायक होगा.
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