अमर उजाला पुराने पन्नों से
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बात 1951 की है। पहले आम चुनाव का माहौल बन चुका था। कांग्रेस उस समय नाजुक दौर में थी। पार्टी अंदरूनी कलह से जूझ रही थी। ऐसे में कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने की जरूरत थी। अंतरिम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू स्थिति को समझ गए थे। उन्होंने महसूस किया कि इस समय पार्टी को समय देना जरूरी है। इसी उद्देश्य से दिल्ली में बुलाए विशेष अधिवेशन में उन्होंने प्रधानमंत्री पद छोड़ने की पेशकश की।
अमर उजाला में 11 सितंबर 1951 को प्रकाशित समाचार के अनुसार दिल्ली के कांस्टीट्यूशन हॉल में हुए कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में भारी बहुमत से प्रस्ताव पारित कर जवाहर लाल नेहरू को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालने का अनुरोध किया गया। प्रस्ताव में नेहरू से कहा गया कि पार्टी नाजुक दौर में है। इस वक्त उनके मार्ग दर्शन की पार्टी को बहुत जरूरत है, इसलिए वह कांग्रेस अध्यक्ष पद संभाल लें। महासमिति ने भारी बहुमत से प्रस्ताव पारित कर पुरुषोत्तम दास टंडन का अध्यक्ष पद से इस्तीफा स्वीकार कर लिया था।
नेहरू ने महासमिति में 45 मिनट के अपने भाषण में कहा कि पार्टी आम जनता से दूर होती जा रही है। ऐसे में हाथ पर हाथ रख नहीं बैठा जा सकता। मैं पिछले दो साल से प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देने की सोच रहा हूं। प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर संगठन की सेवा करना चाहता हूं। उन्होंने कहा कि अगर अंतरराष्ट्रीय हालात खराब न हुए होते तो पहले ही इस्तीफा दे चुका होता।