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कबीर अपने दोहे की दूसरी पंक्ति में लिखते हैं, ‘जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ?’. इस दोहे में कबीर दास ने 800 साल पहले ही प्यार और उनकी पृक्रति पर प्रकाश डाला था. इसी दोहे की आखिरी पंक्ति में कबीर लिखते हैं, ‘कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से, जो चलना राह नाज़ुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या?’. इस दोहे से आइडिया चुराकर निदा फाजली लिखते हैं, ‘हम लबों से कह न पाए उनसे हाल-ए-दिल कभी, और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है’. (फोटो साभार-Instagram)