ग्राउंड रिपोर्ट।
– फोटो : amar ujala
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देशभर की राजनीति में अचानक चर्चा में आए गुजरात के क्षत्रिय चुनावी रंग की नई इबारत लिखने का दावा कर रहे हैं। खुद को मजबूत हिंदू समझने वाले क्षत्रिय हिंदुत्व की लय पर चलनेवाली भाजपा से बैर लेने में हिंदुत्व पर ही हिचक रहे हैं। शायद यही वजह है कि वो भाजपा के खिलाफ प्रदर्शन के लिए काले नहीं, बल्कि भगवा झंडे का इस्तेमाल कर रहे। यह अपने आप में पहला और अनूठा है।
राजनीति दो लफ्जों से बदल सकती है। ‘ ब्रिटिशर्स के सामने राजा महाराजा झुक भी गए और रोटी-बेटी तक का व्यवहार किया’। केंद्रीय मंत्री और राजकोट से भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी पुरुषोत्तम रूपाला के इन्हीं दो लफ्जों ने राजनीति के राजपूत एंगल में भूचाल ला दिया है। हुआ यूं कि पिछले महीने रूपाला दलित समाज के एक व्यक्ति के यहां किसी की मृत्यु पर शोक संवेदनाएं प्रकट करने गए थे। वो दलितों की प्रशंसा करते हुए कहने लगे कि आप लोग कभी झुके नहीं, आपके कारण ही सनातन धर्म टिका हुआ है। वरना राजा-महाराजाओं ने अपनी बेटियों की शादी अंग्रेजों से कर डाली।
रूपाला के बयान पर क्षत्रिय समाज नाराज हो गया और उन्होंने भाजपा से रूपाला का टिकट वापस लेने की मांग की। विरोध में रैलियां होने लगीं। जामनगर, सुरेंद्र नगर, भावनगर और ऐसी ही कुछ 5-6 जगहों पर क्षत्रिय समाज का जुटान हुआ। राजकोट में रैली हुई तो 3 लाख लोग शामिल हुए। इनमें 30 हजार तो सिर्फ महिलाएं थीं। मैदान भर चुका था और लोग 5 किमी दूर तक लाइन लगाकर खड़े थे। खास ये था कि इस रैली के लिए न किसी को बुलाया गया, न ही बस और गाड़ियां बुक हुईं। लोग खुद यहां पहुंचे। उनका बैर न भाजपा से था, न मोदी से। उनकी मांग थी रूपाला से टिकट वापस लो। राजनीति कि इस सबसे बड़ी जातीय चुनौती को संभालने के लिए रूपाला से माफी मंगवाई गई। लेकिन, फायदा सिफर। भाजपा के पुरुषोत्तम रूपाला इस मसले पर चुप हैं। एकदम चुप। क्षत्रिय विवाद से कांग्रेस को कितना नफा-नुकसान होगा, इस सवाल पर कांग्रेस के परेश धनानी भी कुछ नहीं बोलते। वह कहते हैं, मैं भाजपा के अहंकार के खिलाफ जीतूंगा। 14 अप्रैल को राजकोट के रतनपुर गांव में हुए इस अतिविशाल सम्मेलन की चर्चा नरमुंड ही नरमुंड वाली तस्वीरों के जरिये देशभर में होने लगी। और इसके बूते देश में जाति आधारित वोटिंग की नई सेफोलॉजी (राजनीतिक विश्लेषण) गढ़ी जाने लगी। इस एक विवाद ने अचानक राजकोट को लोकसभा चुनावों की सबसे हॉट सीट बना दिया। 15 अगस्त, 1947 को राजकोट में जन्मीं रिटायर्ड संस्कृत टीचर कुसुम बेन कहती हैं, उन्होंने इतनी बड़ी रैली आजतक नहीं देखी। हां, 1991 में जब राममंदिर आंदोलन चरम पर था, तब साध्वी ऋतंभरा की राजकोट में ऐसी ही बड़ी रैली हुई थी।
नरेंद्र मोदी ने राजकोट से लड़ा था पहला चुनाव
राजकोट वही सीट है, जहां से नरेंद्र मोदी ने सीएम बनने के बाद पहली बार विधायक का चुनाव लड़ा था। 1989 से 2019 के बीच सिर्फ एक बार 2009 में कांग्रेस ने यह सीट जीती है। सौराष्ट्र की सात लोकसभा सीटें-राजकोट, जामनगर, जूनागढ़, भावनगर, सुरेंद्र नगर, अमरेली और कच्छ। सौराष्ट्र गुजरात का वह इलाका है, जहां राजनीति में जाति थोड़ी ज्यादा और धर्म हमेशा थोड़ा कम रहा है। यही वजह है कि सौराष्ट्र की सातों सीटों पर उम्मीदवार जाति के पैमाने में नाप कर ही चुने जाते हैं। सौराष्ट्र के राजनीतिक विशेषज्ञ जगदीश आचार्य कहते हैं, इस बार राजकोट का चुनाव भाजपा बनाम कांग्रेस, रूपाला बनाम धनानी से ज्यादा कड़वा पाटीदार बनाम लेवा पाटीदार है। भाजपा के रूपाला कड़वा हैं और कांग्रेस के परेश धनानी लेवा। दोनों अमरेली जिले से हैं और राजकोट के लिए बाहरी।
भाजपा ने सौराष्ट्र की सात सीट में से दो पर बाहरियों को टिकट दिया है। राजकोट से अमरेली के रूपाला और पोरबंदर में अमरेली के मनसुख मांडविया उम्मीदवार हैं। रूपाला और मांडविया का यह पहला लोकसभा चुनाव है। हर जगह एंगल जाति के आसपास ही है। लेवा पटेल, कड़वा पटेल और कोली सौराष्ट्र की तीन सबसे मजबूत जातियां हैं। जूनागढ़, भावनगर और सुरेंद्र नगर में सबसे ज्यादा वोटर कोली हैं। और बाकी जगह पटेल।
क्षत्रिय वोटर जीत-हार तय नहीं कर सकते
सौराष्ट्र के सभी जिलों में क्षत्रिय वोटर काफी कम हैं। गुजरात में बमुश्किल 8% क्षत्रिय हैं, मगर अकेले सौराष्ट्र या गुजरात की किसी सीट पर जीत-हार तय नहीं कर सकते। अगर इनके कहने पर निगेटिव वोट पड़ते हैं, तो कई सीटों पर भाजपा की जीत का अंतर काफी कम होगा। इस बवाल का असर गुजरात के बाहर पश्चिमी यूपी, हिमाचल और मप्र-राजस्थान में हो सकता है। पर वहां भी ज्यादातर सीटों पर जीत-हार वाली बात नहीं होगी।
सौराष्ट्र में जाति की राजनीति
राजकोट में भाजपा ने कड़वा व कांग्रेस ने लेवा पटेल को टिकट दिया है। अगर क्षत्रिय व लेवा एक हुए तो भाजपा को खतरा हो सकता है। सुरेंद्र नगर में कोली वोटर ज्यादा हैं। वहां कोली में दो बंटवारा है, तड़पदा और चुआड़िया। भाजपा ने वहां चुआड़िया कोली को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने तड़पदा को और तड़पदा वोटर ज्यादा हैं। यहां तड़पदा और क्षत्रिय मिलकर वोट करें तो भाजपा के लिए संकट पैदा हो सकता है।