छोटे शहरों और कस्बों से निकलकर मुंबई मायानगरी में अपना नाम बनाने में जुटे कलाकारों की सफलता उनके गांव, घर और गलियों तक पहुंचाने की श्रृंखला ‘अपना अड्डा’ में इस बार बारी है अयोध्या जिले में सोहावल कस्बे के मनु कृष्णा की। मनु को रंगमंच पर देखकर कैमरे के सामने अदाकारी का पहला मौका दिया दिग्गज निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा ने। मुंबई में उनका अब तक का अभिनय सफर शानदार रहा है। छोटे परदे से लेकर बड़े परदे तक उनकी एक पहचान बन रही है। उनकी दो भोजपुरी फिल्में ‘जया’ और ‘रामधारी’ जल्द ही रिलीज होने वाली हैं। ‘अपना अड्डा’ सीरीज की 11वीं कड़ी में अभिनेता मनु कृष्णा से खास बातचीत..
आपका स्क्रीन नेम ही आपका असली नाम है, या घर वालों ने कुछ और नाम भी रखा?
मेरा पूरा नाम कृष्णा मोहन त्रिपाठी है। फिल्मी दुनिया में मुझे लोग मनु कृष्णा के नाम से जानते हैँ। यही मेरा स्क्रीन नेम भी है। मेरा जन्म अयोध्या जिले में सोहावल नामक कस्बे में हुआ। पिता महेंद्र मोहन त्रिपाठी रूरल इंजीनियरिंग सर्विसस में ए क्लास के अफसर थे जो कि अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। मां उषा त्रिपाठी गृहणी हैं।
दिल्ली में तो आपके नाटकों की खूब चर्चा रही है, कैमरे के सामने पहला मौका कब और कैसे मिला?
2008 में जब मेरे एक नाटक का मंचन हो रहा था तो निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा वह नाटक देखने आए थे। नाटक के बाद वह ग्रीन रूम आए और मेरे किरदार का नाम लेकर मुझे तलाश करने लगे। वहीं उसी वक्त उन्होंने मुझे मेरे करियर का पहला धारावाहिक ‘सुनैना’ ऑफर कर दिया और इसी धारावाहिक के लिए मैं मुंबई आया। गरीब रथ ट्रेन से जब मैं बोरीबली स्टेशन पर उतरा तो डर तो था कि कहीं इस भीड़ में खो न जाऊं। लेकिन एक हौसला भी था कि नाम तो इस शहर में जरूर कमाऊंगा।
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और, फिर गाड़ी रफ्ता रफ्ता चल निकली…
इस शहर की पहली रात मैं कभी नहीं भूल सकता। वो रात मैंने प्रकाश झा के बंगले में ही बिताई थी और फिर छह महीने तक मैं वहीं टिका रहा। हालांकि, जिस दिन से मैं मुंबई आया उसी दिन से मैं जीतोड़ मेहनत करता रहा। उसी दौरान मैं दिल्ली से ही अपने परिचित एक निर्माता अंजू राजीव के ऑफिस गया, जहां मुझे आजम दादा नाम के एक ड्रेस मैन मिले। वह अश्वनी धीर के प्रोडक्शन हाउस गरिमा प्रोडक्शंस में काम करते थे। उन्होंने मुझे अश्वनी धीर से मिलवाया और गरिमा प्रोडक्शंस का पहला शो ‘जुगाडू लाल’ दिलाने वाले वही दादा थे।
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