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इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने बुधवार को प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटरों की जानकारी न पेश करने पर सख्त रुख अपनाया। कहा, पहले दिए गए आदेश के महीने भर बाद भी सरकारी वकील हमेशा की तरह पूरी जानकारी न मिलने की बात कहकर ब्यौरा पेश नहीं कर सके। न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकारी अफसरों को मामले की अहमियत पर गौर करना चाहिए। जवाब न मिलने पर हम सख्त आदेश देंगे।
कोर्ट ने यह आदेश ”वी द पीपल” संस्था के महासचिव प्रिंस लेनिन की वर्ष 2016 में दाखिल याचिका पर दिया। इसमें स्थानीय पीजीआई और केजीएमयू में वेंटिलेटरों की उपलब्धता का मुद्दा उठाया गया था। कोर्ट ने इस मामले को सुनवाई के लिए जुलाई के दूसरे हफ्ते में सूचीबद्ध करने का आदेश दिया। कहा कि अगर तब तक सरकार का जवाबी हलफनामा न पेश हुआ तो चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग के विशेष सचिव स्तर के अफसर को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई के समय पेश होना होगा।
दरअसल, एक जनहित याचिका पर कोर्ट ने पहले राज्य सरकार से पूछा था कि प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में कितने वेंटिलेटर हैं? इनकी क्या स्थिति है? कोर्ट ने सरकारी वकील को हर जिले का ब्यौरा क्रमवार चार हफ्ते में पेश करने का आदेश दिया था। बुधवार को सुनवाई के समय मामले में राज्य सरकार की ओर से वांछित जवाबी हलफनामा नहीं पेश हो सका। इस पर कोर्ट ने सख्त आदेश देकर सरकारी वकील को इस आदेश से संबंधित अधिकारियों को अवगत कराने को कहा है।