Father’s Day 2024: जून महीने के तीसरे रविवार को फार्दस डे के रूप में मनाया जाता है. इस साल फार्दस डे 16 जून 2024 को है.
इस मौके पर बच्चे अपने पिता को स्पेशल फील कराते हैं. कहा जाता है कि फार्दस डे मनाने की शुरुआत सबसे पहले 1910 में हुई थी.
पिता का अर्थ क्या है? इसे परिभाषित करना शायद संभव नहीं. क्योंकि पिता या पिता के प्रेम को किसी परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता.
इसलिए तो धार्मिक ग्रंथों में भी पिता को ईश्वर तुल्य माना गया है.
जीवन में पिता का होना पतंग की डोर के समान है. जैसे पतंग जबतक डोर से बंधी रहती है,अनुशासित होकर आसमान पर राज करती है.
लेकिन जब पतंग डोर से कटकर अलग हो जाती है तो वह मार्गविहीन होकर इधर-उधर भटकने लगती है.
पिता भी हमारे जीवन की यही डोर है और डोर से बंधे रहना अनुशासन का प्रतीक. हालांकि आजकल युवा पीढ़ी को जीवन में अधिक अनुशासन अच्छा नहीं लगता है.
लेकिन सच्चाई यही है कि अनुशासन के बिना जीवन में कुछ भी नहीं.
पिता का प्रेम
मां के पास प्रेम जताने के लिए लोरियां होती हैं, आंचल होता है और कभी-कभी आंसू भी.
ये आंसू प्रेम और भावनाओं के आंसू होते हैं. लेकिन पिता के पास न लोरियां होती है, न आंचल और न वो रोकर अपने प्रेम या भावनाओं को व्यक्त कर पाते हैं.
पिता तो हमेशा पर्दे के पीछे यानी बैकस्टेज पर रहकर ही काम करते हैं. जिन्हें कोई देख नहीं पाता. लेकिन उनके काम के बिना जीवन की कल्पना भी असंभव है.
इसी तरह पिता का प्रेम (Father Love) भी दिखाई नहीं देता, क्योंकि उनका प्रेम ईश्वर की तरह होता है और इसे केवल महसूस किया जा सकता है.
फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह अपनी हंसी जमा करते हैं पिता
हमने पिता को बहुत कम ही समय में खिलखिलाते या हंसते हुए देखा है. वह अकेले में भी कम ही मुस्कुराते हैं. लेकिन चिंतिंत अधिक रहते हैं.
लगता है कि मानो वो अपनी हंसी भी फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह जमा कर रहे हों, जो आगे जाकर भविष्य में काम आ सके.
वो पैसों की तरह हंसी को भी संभालकर रखते हैं, ताकि सही समय आने पर इसे अपनों के साथ बांट सके. पिता अपना सबकुछ न्योछावर कर देते हैं. धन, सपंत्ति, खुशी, जीवन सबकुछ.
‘पिता पाता वा पालयिता वा”।
‘पिता-गोपिता”
पालक, पोषक और रक्षक कहलाते हैं पिता
धर्म शास्त्रों में आकाश से भी ऊंची संज्ञा पिता को दी गई है. मां जन्मदात्री है तो पिता पालक.
केवल आधुनिक समय में ही नहीं बल्कि पौराणिक समय से ही पिताओं ने इस पंक्ति की भूमिका को बखूबी निभाया है.
उदाहरण के लिए- रामजी (Lord Ram) के पिता दशरथ ने वचनबद्ध होकर रामजी को वनवास भेजने का फैसला लिया. लेकिन पुत्र वियोग में उन्होंने अपना जीवन त्याग दिया.
देवकी और वासुदेव ने अपनी आठवीं संतान यानी श्रीकृष्ण (Shri Krishna) को कंस से बचाने के लिए उसे गोकुल नंद के पास छोड़ने का फैसला कर लिया.
नंद जोकि कृष्ण के पिता नहीं बल्कि पालन पिता हैं, उन्होंने भी कृष्ण को भरपूर प्रेम देने और उनके जीवन को सुंदर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
इससे यही पता चलता है कि, हर युग और हर पीढ़ी में पिताओं ने बच्चे की रीढ़ बनने का कार्य किया, कर रहे हैं और करते रहेंगे.
पद्मपुराण सृष्टिखंड (47/11) में कहा गया है-
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्।।
अर्थ है: माता सर्वतीर्थ मयी और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप है. इसलिए सभी प्रकार से यत्नपूर्वक माता-पिता का पूजन करना चाहिए.
जो माता-पिता की परिक्रमा करता है, उसके द्वारा सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है.
शास्त्रों और वेदों में मां को देवी तुल्य और पिता को संपूर्ण देवताओं का स्वरूप माना गया है.
माता-पिता जिस परिश्रम से संतान को पालते हैं, पोषित करते हैं और गढ़ते हैं, उसका ऋण कभी नहीं उतारा जा सकता है.
वहीं पिता वृक्ष की तरह हमें छाया प्रदान करते हैं, जिससे हमारे जीवन में शीतलता और सौम्यता बनी रहे.
पिता की महत्ता पर पुराणों में कही गई है ये बात
कौन है पिता: चाणक्य नीति (Chanakya Niti) के अनुसार इन पांच को पिता कहा गया है- जन्मदाता, उपनयम करने वाला, विद्या देने वाला, अन्नदाता और भयत्राता.
जनिता चोपनेता च, यस्तु विद्यां प्रयच्छति।
अन्नदाता भयत्राता, पंचैते पितर: स्मृता।।
पिता की सेवा ही धर्म: रामायण (Ramayan) के अयोध्या कांड में कहा गया है कि, पिता की सेवा करने और उनकी आज्ञा का पालन करने से बढ़कर कोई धर्म नहीं है.
पिता का महत्व: हरिवंश पुराण (विष्णु पर्व) के अनुसार, संतान का स्वभाव चाहे कितना भी क्रूर क्यों न हो जाए, लेकिन पिता उसके प्रति कभी निष्ठुर नहीं होते. क्योंकि पुत्रों के लिए पिता को कई कष्ट और विपत्तियां झेलनी पड़ती है.
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