अभिसूचना इकाई (एलआईयू) में खुफिया सूचनाओं के संग्रह का जिम्मा संभालने वाले सूरजपाल सिंह का अभिसूचना विभाग की सेवा से अचानक ऐसा मोह भंग हुआ कि उन्होंने सन 1997 में सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का फैसला लिया। वह सूरजपाल से भोले बाबा बन गए। वर्ष 1999 में अपने गांव के ही घर को आश्रम का रूप दे दिया। यहां सत्संग शुरू कर दिया।
पटियाली क्षेत्र के बहादुर नगर निवासी सूरजपाल सिंह की अभिसूचना विभाग में सिपाही के रूप में तैनाती हुई। इसके बाद वह हेड कांस्टेबल पद पर प्रोन्नत हुए और उन्होंने हेड कांस्टेबल पद पर रहते हुए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली। सत्संग प्रवचन शुरू होने के साथ ही सूरजपाल को भोले बाबा के रूप में पहचान मिली तो उनकी पत्नी को माताश्री के रूप में पहचान मिली।
इनको कोई संतान नहीं है। 1997 के बाद से शुरू हुई भोले बाबा की आध्यात्मिक यात्रा का प्रचार प्रसार तेजी से हुआ। भोले बाबा के सत्संग में लोग अपनी परेशानियां लेकर पहुंचने लगे और भोले बाबा द्वारा अपने हाथों से स्पर्श करके बीमारियां दूर करने का दावा करते रहे। सत्संग और चमत्कार के मोह में उनके अनुयायियों का कारवां बढ़ता चला गया।
इस ढाई दशक की यात्रा में हजारों लोग उनके सत्संग में पहुंचने लगे। लोग उनके चमत्कारों को लेकर लगातार उनके अनुयायी बनते चले गए। पटियाली ही नहीं बल्कि कासगंज, एटा, बदायूं, फर्रुखाबाद, हाथरस, अलीगढ़ के अलावा दिल्ली, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान सहित कई राज्यों में भोले बाबा की धूम होने लगी और हजारों लाखों लोग देश में उनके अनुयायी बन गए। भोले बाबा के अनुयायी उनके प्रति कट्टर भी हैं कोई भी बाबा की आलोचना सुनना पसंद नहीं करता है।
बाबा हो या न हो, आश्रम में बड़ी संख्या में पहुंचते हैं भक्त
भोले बाबा का आश्रम जिले के पटियाली तहसील क्षेत्र के बहादुरनगर गांव में मौजूद है। यह उनका पैतृक गांव भी है। भोलेबाबा का बहादुर नगर में बड़ा आश्रम बना है। इस आश्रम में पहले सप्ताह के प्रत्येक मंगलवार को सत्संग होता था, लेकिन कुछ वर्ष पहले से यह परंपरा टूटी है। लोगों का कहना है कि बाबा पिछले कई वर्षों से आश्रम नहीं आए हैं। लोग यह भी बताते हैं कि बाबा आश्रम में रहें या न रहें, लेकिन उनके भक्तों के आने का सिलसिला अनवरत रूप से जारी रहता है।
बाबा के भक्त श्रद्धालु मंगलवार को विशेष रूप से यहां पहुंचते हैं, लेकिन मंगलवार के अलावा भी आम दिनों में उनके आने सिलसिला जारी रहता है। भक्तों के बीच यह भी मान्यता है, कि आश्रम में लगे नल के पानी से लोग स्नान भी करते हैं, और नल का पानी प्रसाद के रूप में बोतलों में भरकर साथ ले जाते हैं।