अदालत
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 25 साल जेल में बिताने वाले दोषी 79 वर्षीय बुजुर्ग को समय से पूर्व रिहा न करने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को रूढ़िवादी करार देते हुए रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति सैयद कमर हसन रिजवी की पीठ ने सरकार को निर्देश दिया कि बुजुर्ग दोषी की समयपूर्व रिहाई पर छह सप्ताह के भीतर नया निर्णय लें। मुन्ना की याचिका पर कोर्ट ने यह आदेश दिया।
हाथरस के थाना सादाबाद में याचिकाकर्ता मुन्ना पर हत्या सहित विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था। ट्रायल कोर्ट ने अप्रैल 1980 में दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। फरवरी 1999 में उच्च न्यायालय ने सजा की पुष्टि की। इस दौरान याची ने 25 साल जेल में बिताने के बाद सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की। शीर्ष अदालत ने जनवरी 2018 में उन्हें जमानत दे दी।
जेल में याची के अच्छे आचरण के बावजूद राज्य सरकार ने मई 2017 में समयपूर्व रिहाई के आवेदन को खारिज कर दिया था। राज्य सरकार ने आदेश जारी कहा था कि याचिकाकर्ता को समयपूर्व रिहाई देने से समाज में न्यायिक प्रणाली के बारे में गलत संदेश जाएगा। याची की शारीरिक और मानसिक स्थिति ठीक है इसलिए वह यूपी परिवीक्षा पर कैदियों की रिहाई अधिनियम 1938 के लाभ का हकदार नहीं है। इस आदेश को याची ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के आदेश पर गौर करते हुए कहा कि सरकार का आदेश एक रूढ़िवादी आदेश है। राज्य सरकार की ओर से लगभग हर मामले में बिना सोचे-समझे यही आदेश पारित कर दिया जाता है। यह आदेश यूपी परिवीक्षा पर कैदियों की रिहाई अधिनियम 1938 की धारा 2 के खिलाफ है। कोर्ट ने राज्य सरकार के आदेश को रद्द कर दिया।