<p style="text-align: justify;">माता का स्थान सबसे सर्वश्रेष्ठ होता हैं. हमारे शास्त्रों में भी मां को भगवान का स्वरुप ही माना गया है, इसलिए ऐसा कहा गया है कि भगवान हर स्थान पर आपकी मदद करने नहीं पहुंच सकते इसलिए उन्होंने मां बनाया.</p>
<p style="text-align: justify;">माता के जीवित रहते कोई भी बुरी शक्ति उसकी संतान को छू भी नहीं सकती. इसलिए एकमात्र माता ही अपनी संतान की सबसे बड़ी रक्षक हैं. चालिए अब थोड़ी दृष्टि शास्त्रों की ओर डालते हैं और जानते है की शास्त्र माता के महत्व के बारे में क्या कहते हैं-</p>
<ul style="text-align: justify;">
<li>ऋग्वेद 10.17.10 अनुसार, मां हमें पापों से शुद्ध करती हैं.</li>
<li>अथर्ववेद 9.5.30 अनुसार, अपनी मां का सम्मान करें और उनके करीब रहें.</li>
<li>देवी पुराण 3.4.30 अनुसार, हे मां! यह संपूर्ण जगत आप में ही विद्यमान हैं.</li>
</ul>
<p style="text-align: justify;"><span style="color: #e03e2d;">स्कंद पुराण, महेश्वर खंड 6.108 अनुसार :–</span></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः। नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।<br /></strong><strong>अर्थ –</strong> माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है. माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय चीज नहीं है.</p>
<p style="text-align: justify;"><span style="color: #e03e2d;">महाभारत अनुशासन पर्व 23.93 अनुसार :–</span></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>मातरं पितरं चैव शुश्रूषन्ति जितेन्द्रियाः। भ्रातृणां चैव सस्नेहास्ते नराः स्वर्गगामिनः ।।93।।<br /></strong><strong>अर्थ –</strong> जो जितेन्द्रिय होकर माता-पिता की सेवा करते हैं, वे लोग स्वर्गलोक में जाते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;"><span style="color: #e03e2d;">महाभारत अनुशासन पर्व 31.12 अनुसार:–</span></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>ये भृत्यभरणे शक्ताः सततं चातिथिव्रताः । भुञ्जते देवशेषाणि तान् नमस्यामि यादव ।।12।।<br />अर्थ –</strong> जो माता-पिता का भरण-पोषण के पालन करते हैं देवता उन्हीं के सामने नतमस्तक होते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;"><span style="color: #e03e2d;">महाभारत अनुशासन पर्व 73.11 अनुसार :–</span></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>मातापित्रोरर्चिता सत्ययुक्तः।।<br /></strong>अर्थ– जो व्यक्ति अपने माता पिता की पूजा करता हैं उसे गोलोक (भगवान का परम धाम) में स्थान मिलता है.</p>
<p style="text-align: justify;"><span style="color: #e03e2d;">महाभारत अनुशासन पर्व 104.43 अनुसार:–</span></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>न चाभ्युदितशायी स्यात् प्रायश्चित्ती तथा भवेत् । मातापितरमुत्थाय पूर्वमेवाभिवादयेत् ।।आचार्यमथवाप्यन्यं तथायुर्विन्दते महत्।</strong><br />अर्थ – प्रतिदिन प्रातः काल सोकर उठने के बाद पहले माता-पिता को प्रणाम करें. इससे दीर्घायु प्राप्त होती है.</p>
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