जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद जब परिसीमन हुआ तो लोकसभा व विधानसभा सीटों का नक्शा काफी कुछ बदल गया। कई सीटों के भूगोल बदल गए। कई सीटें खत्म हो गईं। कुछ नई सीटें अस्तित्व में भी आईं। अनुसूचित जाति की सीटों का रोस्टर बदला। अनुसूचित जनजाति के लिए नौ सीटें आरक्षित हो गईं। इन सारी परिस्थितियों में दिग्गजों का समीकरण भी बदला। पूर्व मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, मंत्रियों समेत विधायकों के लिए मुश्किल खड़ी हो गई और वह सुरक्षित सीट की तलाश में जुट गए।
2014 में पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला गांदरबल जिले की जिस बीरवाह सीट से चुने गए थे उसका अस्तित्व खत्म हो गया। उसका हिस्सा आसपास की सीटों से जोड़ दिया गया। अब गांदरबल में कंगन और गांदरबल दो विधानसभा हलके रह गए। कंगन पहली बार अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित कर दिया गया। ऐसे में उमर को नई सीट तलाशनी पड़ रही है। हालांकि, उन्होंने चुनाव न लड़ने का एलान किया है, लेकिन उन पर पार्टी का जबर्दस्त दबाव है। उन्हें मनाने के लिए पार्टी के जिलाध्यक्षों की ओर से पत्र भी लिखा गया है।
दो पूर्व उप मुख्यमंत्रियों डॉ. निर्मल सिंह व कवींद्र गुप्ता भी नई सीट तलाशने लगे हैं। चर्चा है कि निर्मल सिंह कठुआ की बिलावर सीट की बजाय बसोहली सीट से अपने को तैयार कर रहे हैं। कवींद्र पिछला चुनाव गांधीनगर से लड़े थे, लेकिन परिसीमन में यह सीट खत्म हो गई। अब नई सीट आरएस पुरा-जम्मू दक्षिण के नाम से बनी है जिसमें गांधीनगर विस हलके का हिस्सा है। डगर मुश्किल हुई तो वह जम्मू पश्चिम से संभावनाएं तलाशने लगे। तर्क है कि उनका घर जम्मू पश्चिम में आता है।
पूर्व मंत्री शाम लाल शर्मा, सुखनंदन चौधरी, अजय सडोत्रा, शाम चौधरी व राजीव जसरोटिया के क्षेत्र आरक्षित हो गए हैं। इसी प्रकार पूर्व विधायक राजीव शर्मा व आरएस पठानिया, पूर्व विधायक हर्षदेव सिंह के भी विधानसभा हलके आरक्षित हो गए हैं। अब यह सारे नेता नए ठिकाने तलाश रहे हैं। शाम लाल छंब व शहर उत्तरी, सुखनंदन चौधरी शहर उत्तरी, शाम चौधरी आरएस पुरा-जम्मू दक्षिण, राजीव जसरोटिया जसरोटा, राजीव शर्मा छंब, अजय सडोत्रा शहर उत्तरी में अपने ठौर तलाश रहे हैं।
इतना ही नहीं परिसीमन में कई सीटों का नक्शा बदलने से जातीय व सामाजिक समीकरण भी गड़बड़ा गए हैं। आरएस पुरा-जम्मू दक्षिण सीट में आरएस पुरा का शहरी इलाका व पुराने गांधीनगर विधानसभा के हिस्से को शामिल किया गया है। इससे गांधीनगर सीट से लड़ने वालों का समीकरण बिगड़ा है। कमोबेश सभी विधानसभा सीटों का भूगोल बदला है। इससे पार्टियों के परंपरागत वोट बैंक में फर्क पड़ा है। राजनीतिक विश्लेषक प्रो. हरि ओम का मानना है कि परिसीमन में नक्शा बदलने से पार्टियों की सेहत पर असर पड़ेगा। उनके वोट बैंक में भी बदलाव आया है। साथ ही नए क्षेत्र जुड़ने से भी नेताओं को आम लोगों तक पहुंच बनाने में खासी मशक्कत करनी होगी।
आरक्षित सीटों का रोस्टर बदलने से बढ़ीं मुश्किलें
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का रोस्टर बदलने से कई सीटों पर समीकरण गड़बड़ा गया है। परिसीमन के बाद जम्मू में मढ़, अखनूर, सुचेतगढ़ व बिश्नाह, कठुआ में कठुआ, सांबा में रामगढ़ व उधमपुर में रामनगर सीट आरक्षित कर दी गई। इसके चलते पूर्व विधायक मढ़ के पूर्व विधायक सुखनंदन चौधरी, अखनूर के पूर्व विधायक शाम लाल शर्मा व राजीव शर्मा, सुचेतगढ़ के पूर्व विधायक शाम चौधरी, बिश्नाह के पूर्व विधायक कमल अरोड़ा व , कठुआ से राजीव जसरोटिया, रामनगर के पूर्व विधायक आरएस पठानिया व हर्षदेव सिंह को नए क्षेत्र तलाशने की चुनौती है।
एसटी के लिए आरक्षित सीटों ने भी बढ़ाई चुनौती
अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए पहली बार राजनीतिक आरक्षण का प्रावधान किया गया है। इसके तहत गांदरबल की कंगन, अनंतनाग की कोकरनाग, बांदीपोरा की गुरेज, रियासी में गुलाबगढ़, राजोरी में बुद्धल, थन्नामंडी व राजोरी तथा पुंछ जिले में सुरनकोट व मेंढर को आरक्षित कर दिया गया। यह सभी सीटें पहले सामान्य संवर्ग से थीं। इन सभी सीटों पर चुने गए विधायकों को नए क्षेत्र तलाशने की चुनौती सामने आ गई। राजोरी व पुंछ जिले की आठ में पांच सीटें एसटी के लिए आरक्षित होने के बाद शेष तीन सीटों पर दावेदारों की संख्या खासी बढ़ गई है। ऐसे में सभी पार्टियों में अपनों से ही लड़ने का खतरा खड़ा हो गया है।