Bachh Baras 2024: जन्माष्टमी (Janmashtami) के चार दिन बाद यानि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि का विशेष महत्व है, इस दिन बछ बारस का त्योहार मनाया जाता है. बछ बारस 30 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा. इस दिन गौमाता की बछड़े सहित पूजा की जाती है.
माताएं अपने पुत्रों को तिलक लगाकर तलाई फोड़ने के बाद लड्डू का प्रसाद देती है यानि पुत्रवान महिलाये अपने संतान की मंगल कामना के लिए व्रत रखती है और पूजा करती है.
कैसे की जाती बछ बारस की पूजा ? (Bachh Baras Puja)
इस दिन गेंहू से बने हुए पकवान और चाकू से कटी हुई सब्जी नही खाये जाते हैं. बाजरे या ज्वार का सोगरा और अंकुरित अनाज की कढ़ी व सूखी सब्जी बनाई जाती है. महिलाओं द्वारा सुबह गौमाता की विधिवत पूजा अर्चना करने के बाद घरों या सामूहिक रूप से बनी मिट्टी व गोबर से बनी तलैया को अच्छी तरह सजाकर उसमें कच्चा दूध और पानी भरकर उसकी कुमकुम, मौली, धूप दीप प्रज्वलित कर पूजा करते हैं और बछबारस की कहानी सुनी जाती है.
क्यों मनाई जाती है बछ बारस ? (Why we Celebrate Bachh Baras)
बछ बारस हर साल जन्माष्टमी के चार दिन पश्चात भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी के दिन 30 अगस्त को मनाया जाता है इसलिए इस गोवत्स द्वादशी भी कहते है. भगवान कृष्ण के गाय और बछड़ो से बड़ा प्रेम था इसलिए इस त्यौहार को मनाया जाता है.
ऐसा माना जाता है की बछ बारस के दिन गाय और बछड़ो की पूजा करने से भगवान कृष्ण सहित गाय में निवास करने वाले सैकड़ो देवताओ का आशीर्वाद मिलता है जिससे घर में खुशहाली और सम्पन्नता आती है. बछबारस का पर्व राजस्थानी महिलाओं में ज्यादा लोकप्रिय है.
बछ बारस पूजन की सामग्री और पूजा विधि
पूजा के लिए भैंस का दूध और दही , भीगा हुआ चना और मोठ ले। मोठ-बाजरे में घी और चीनी मिलाये. गाय के रोली का टीका लगाकर चावल के स्थान पर बाजरा लगाये. बायने के लिए एक कटोरी में भीगा हुआ चना , मोठ ,बाजरा और रुपया रखे. इस दिन बछड़े वाले गाय की पूजा की जाती है यदि गाय की पूजा नहीं कर सकते तो एक पाटे पर मिटटी से बछबारस बनाते है और उसके बीच में एक गोल मिटटी की बावडी बनाते है.
फिर उसको थोड़ा दूध दही से भर देते है. फिर सब चीजे चढ़ाकर पूजा करते है. इसके बाद रोली, दक्षिण चढ़ाते है. स्वंय को तिलक निकालते है. हाथ में मोठ और बाजरे के दाने को लेकर कहानी सुनाते है. बछ बारस के चित्र की पूजा भी की जा सकती है. बायना सांस को पाँव छुकर देवें.
बछ बारस की कहानी (Bachh Baras Katha)
बहुत समय पहले की बात है एक गाँव में एक साहूकार अपने सात बेटो और पोतो के साथ रहता था. उस साहूकार ने गाँव में एक तालाब बनवाया था लेकिन बारह सालो तक वो तालाब नही भरा था. तालाब नही भरने का कारण पूछने के लिए उसने पंडितो को बुलाया. पंडितो ने कहा कि इसमें पानी तभी भरेगा जब तुम या तो अपने बड़े बेटे या अपने बड़े पोते की बलि दोगे. तब साहूकार ने अपने बड़ी बहु को तो पीहर भेज दिया और पीछे से अपने बड़े पोते की बलि दे दी. इतने में गरजते बरसते बादल आये और तालाब पूरा भर गया.
इसके बाद बछबारस आयी और सभी ने कहा की “अपना तालाब पूरा भर गया है इसकी पूजा करने चलो”।साहूकार अपने परिवार के साथ तालाब की पूजा करने गया. वह दासी से बोल गया था की गेहुला को पका लेना।गेहुला से तात्पर्य गेहू के धान से है. दासी समझ नही पाई. दरअसल गेहुला गाय के बछड़े का नाम था. उसने गेहुला को ही पका लिया. बड़े बेटे की पत्नी भी पीहर से तालाब पूजने आ गयी थी. तालाब पूजने के बाद वह अपने बच्चो से प्यार करने लगी तभी उसने बड़े बेटे के बारे में पुछा.
तभी तालाब में से मिटटी में लिपटा हुआ उसका बड़ा बेटा निकला और बोला की माँ मुझे भी तो प्यार करो. तब सास बहु एक दुसरे को देखने लगी. सास ने बहु को बलि देने वाली सारी बात बता दी। फिर सास ने कहा की बछबारस माता ने हमारी लाज रख ली और हमारा बच्चा वापस दे दिया. तालाब की पूजा करने के बाद जब वह वापस घर लौटे तो उन्होंने देखा बछड़ा नही था. साहूकार ने दासी से पूछा की बछड़ा कहा है तो दासी ने कहा कि “आपने ही तो उसे पकाने को कहा था”.
साहूकार ने कहा की “एक पाप तो अभी उतरा ही है तुमने दूसरा पाप कर दिया “ साहूकार ने पका हुआ बछड़ा मिटटी में दबा दिया. शाम को गाय वापस लौटी तो वह अपने बछड़े को ढूंढने लगी और फिर मिटटी खोदने लगी. तभी मिटटी में से बछड़ा निकल गया। साहूकार को पता चला तो वह भी बछड़े को देखने गया.
उसने देखा कि बछडा गाय का दूध पीने में व्यस्त था. तब साहूकार ने पुरे गाँव में यह बात फैलाई कि हर बेटे की माँ को बछबारस का व्रत करना चाहिए और तालाब पूजना चाहिए. हे बछबारस माता ! जैसा साहूकार की बहु को दिया वैसा हमे भी देना. कहानी कहते सुनते ही सभी की मनोकामना पूर्ण करना. इसके बाद गणेश जी की कहानी कहे.
उद्यापन (Bachh Baras Udhyapan)
जिस साल लड़का हो या जिस साल लड़के की शादी हो उस साल बछबारस का उद्यापन किया जाता है. सारी पूजा हर वर्ष की तरह करें. सिर्फ थाली में सवा सेर भीगे मोठ बाजरा की तरह कुद्दी करें. दो दो मुट्ठी मोई का (बाजरे की आटे में घी ,चीनी मिलाकर पानी में गूँथ ले ) और दो दो टुकड़े खीरे के तेरह कुडी पर रखे. इसके उपर एक तीयल (दो साडीया और ब्लाउज पीस ) और रुपया रखकर हाथ फेरकर सास को छुकर दे. इस तरह बछबारस का उद्यापन पूरा होता है.
गौमाता की पूजा का महत्व (Bachh Baras Cow Puja benefit)
भारतीय धार्मिक पुराणों में गौमाता में समस्त तीर्थ होने की बात कहीं गई है. पूज्यनीय गौमाता हमारी ऐसी मां है, जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ. गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है, जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता.
ऐसी मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ खुश करना है तो गौभक्ति-गौसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है. गौ माता को बस एक ग्रास खिला दो, तो वह सभी देवी-देवताओं तक अपने आप ही पहुंच जाता है.
भविष्य पुराण के अनुसार गौमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं इसीलिए बछ बारस या गोवत्स द्वादशी के दिन महिलाएं अपनी संतान की सलामती, लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए यह पर्व मनाती है.
इस दिन घरों में विशेष कर बाजरे की रोटी जिसे सोगरा भी कहा जाता है और अंकुरित अनाज की सब्जी बनाई जाती है. इस दिन गाय की दूध की जगह भैंस या बकरी के दूध का उपयोग किया जाता है.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.