गणपति बप्पा मोरिया की गूंज जल्द सुनाई देने वाली है। गणेश महोत्सव पर जानकारी देते हुए आचार्य डॉ. सुशांत राज ने बताया कि हिंदू धर्म में गणेश चतुर्थी के त्योहार का खास महत्व है। ये पर्व पूरे 10 दिनों तक बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का त्योहार हर साल भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की चतुर्थी से शुरू होता है।इस दौरान विघ्नहर्ता भगवान गणेश की विधिवत पूजा की जाती है। ये पर्व विनायक चतुर्थी पर शुरू होता है और अनंत चतुर्थी पर समाप्त होता है।
इस समय लोग अपने घर में बप्पा की मूर्ति स्थापित करते हैं और उनकी सच्चे मन से पूजा और भक्ति करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की चतुर्थी की शुरुआत छह सितंबर को दोपहर तीन बजकर एक मिनट पर शुरू हो गई है। वहीं इस तिथि का समापन सात सितंबर को शाम 5 बजकर 37 मिनट पर होगा। ऐसे में उदय तिथि के अनुसार गणेश चतुर्थी का पर्व सात सितंबर को मनाया जाएगा।
इस साल गणेश जी की स्थापना के लिए सुबह 11 बजकर 3 मिनट से लेकर दोपहर के 1 बजकर 34 मिनट तक शुभ मुहूर्त रहेगा। इस दिन पूजा के लिए आपको पूरे 2 घंटे 31 मिनट का समय मिलेगा। इस साल अनंत चतुर्दशी का त्योहार 16 सितंबर 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन बप्पा की विदाई की जाती है।
इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। गणेश चतुर्थी का व्रत रखने से और गणेश जी की 10 दिन पूजा करने से सारे विघ्नों का नाश होता है। इसके साथ ही साधक की सारी मनोकामना पूरी होती है।
नारायण ज्योतिष संस्थान के आचार्य विकास जोशी ने बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार, उन्हें देवी पार्वती ने अपने शरीर के मेल से बनाया था, जिन्होंने उनमें प्राण फूंक दिए थे। विघ्नहर्ता या बाधाओं को दूर करने वाले के रूप में नियुक्त भगवान गणेश को ज्ञान, बुद्धि और शिक्षा के देवता के रूप में पूजा जाता है। भक्त अपने प्रयासों, शिक्षा और नई शुरुआत में सफलता के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं।
घर में बप्पा के सामने फलाहार व्रत का संकल्प लें। शुभ मुहूर्त में पूजा की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर गणपति को स्थापित करें। भगवान को गंगाजल से स्नान करवाएं, सिंदूर, चंदन का तिलक लगाएं, पीले फूलों की माला अर्पित करें। मोदक का भोग लगाएं, देसी घी का दीपक जलाएं. गणेशजी के मंत्रों का जाप करें, आरती के बाद प्रसाद बांट दें। शाम को फिर से गणेशजी की आरती करें और फिर भोग लगाएं। इसके बाद ही व्रत का पारण करें।