सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार की नीति पर सवाल खड़े किए हैं। देश की शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार का ‘रैटियर साथी’ कार्यक्रम आपत्तिजनक है। इस नीति के तहत महिलाओं के काम के घंटे एक बार में 12 घंटे से अधिक नहीं होने और रात की ड्यूटी से बचने का निर्देश दिया गया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, न्यायूमूर्ति मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने हैरानी जताते हुए सवाल किया कि राज्य सरकार ऐसी अधिसूचना कैसे जारी कर सकती है। पीठ ने कहा कि अगर पुरुष 12 घंटे से अधिक समय की शिफ्ट में काम कर रहे हैं, तो महिला डॉक्टर भी ऐसा करने की हकदार हैं।
महिलाओं को रियायत नहीं समान अवसर चाहिए
तीन जजों की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार को अधिसूचना में तत्काल सुधार करने को कहा। शीर्ष अदालत ने पूछा, आप कैसे कह सकते हैं कि महिलाएं रात की शिफ्ट में काम नहीं करेंगी? अगर आप उन्हें रात में काम करने से रोकेंगे तो महिलाओं को आपत्ति होगी। महिलाओं को रियायत नहीं समान अवसर चाहिए। हमें एक महिला डॉक्टर को रात में काम करने से क्यों रोकना चाहिए? का कर्तव्य सुरक्षा प्रदान करना है, आप यह नहीं कह सकते कि महिलाएं (डॉक्टर) रात में काम नहीं कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने विमानों में पायलट बन रहीं महिलाओं और सेना के पदों पर महिलाओं का जिक्र करते हुए इस बात को रेखांकित किया कि इन भूमिकाओं में भी महिला-पुरुष रात में काम करते हैं।
सरकारी योजनाओं से महिला डॉक्टरों के करियर को नुकसान…
‘रैटियर साथी’ कार्यक्रम को आपत्तिजनक बताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि यह महिला डॉक्टरों के करियर को नुकसान पहुंचाएगा। पीठ ने कहा, सभी डॉक्टरों के लिए ड्यूटी के घंटे उचित होने चाहिए। मुकदमे की सुनवाई के दौरान सीबीआई की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पैरवी की। उन्होंने कहा कि अगर राज्य सरकार महिला डॉक्टरों को सुरक्षा प्रदान करने को तैयार नहीं है तो केंद्र सरकार महिला डॉक्टरों को सुरक्षा प्रदान कर सकती है।
क्या है बंगाल सरकार की योजना का मकसद
पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार इसे ठीक करने के लिए जल्द एक अधिसूचना जारी करेगी। गौरतलब है कि सरकारी और निजी क्षेत्रों में रात की पाली में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा का हवाला देते हुए पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य विभाग ने ‘रैटियर साथी – हेल्पर्स ऑफ द नाइट’ जैसे कार्यक्रम शुरू कि थे। सरकारी आदेश के मुताबिक नए दिशा-निर्देश उन मेडिकल कॉलेजों, अस्पतालों और छात्रावासों में लागू किए जाएंगे जहां पहले से ही ऐसे प्रावधान नहीं हैं।