सुप्रीम कोर्ट
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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की अल्पसंख्यक स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उलमा और संगठनों ने ऐतिहासिक बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1967 के अपने उस निर्णय को पलट दिया। इसमें कहा गया था कि एएमयू को एक अधिनियम के तहत बनाया गया था। इसलिए वह अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकता है। अब एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर एक नियमित बेंच के समक्ष विचार किया जाएगा कि क्या वास्तव में इसे अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित किया गया था।
इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि एएमयू की स्थापना मुस्लिमों द्वारा, मुस्लिम शिक्षा के लिए, मुस्लिम समुदाय के दान से की गई थी। ऐसे में एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जाएगा, तो किस संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान कहा जाएगा। फिर अनुच्छेद 30 का वास्तविक अर्थ क्या है?
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सुप्रीम का निर्णय अल्पसंख्यक अधिकारों की जीत : शोएब
एएमयू ओल्ड ब्यॉज एसोसिएशन लखनऊ के अध्यक्ष एसएम शोएब ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को समानता व अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण जीत बताया। कहा कि फैसला सभी अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए एक मिसाल साबित होगा, जो भारत के सामाजिक न्याय और समानता विमर्श में योगदान देगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि नवगठित तीन जजों की बेंच का फैसला एएमयू ही नहीं बल्कि देश के हित में होगा।
एएमयू दे रहा बेहतर तालीम : यासूब
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि कुछ लोगों दिलों में एएमयू और उसका अल्पसंख्यक दर्जा कांटे की तरह चुभता है। एएमयू बेहतर शिक्षा के लिए जाना जाता है और मुस्लिम समुदाय में विभिन्न क्षेत्रों के लिए काबिल लोग तैयार किए हैं। उम्मीद है कि तीन जजों की बेंच भी अपना यही फैसला देगी।
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अल्पसंख्यकों के शैक्षिक संस्थानों को मिलेगी मजबूती : तारिक
एएमयू ओल्ड ब्यॉज एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष तारिक सिद्दीकी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सिर्फ एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मामला नहीं है बल्कि फैसले ने संविधान के अनुच्छेद 30 को और मजबूत किया है।
इसके तहत सभी अल्पसंख्यकों मुसलमान, सिख, इसाई, पारसी व बौद्ध आदि को अपने समुदाय के विकास के लिए शैक्षिक संस्थान बनाने और उन्हें संचालित करने का अधिकार देता है। कोर्ट के फैसले ने उन लोगों को राहत दी है जिन्होंने शैक्षिक संस्थान बनाए हैं या बनाने वाले हैं।