Pravachan: आजकल के दौर में शिष्टाचार (Etiquette) को लेकर अक्सर बातें होती रहती हैं. घरों में माता-पिता बच्चों को अक्सर इसका पाठ पढ़ाते रहते हैं. शिष्टाचार पर इतना अधिक जोर देने के बाद भी घर का आंगन हो, स्कूल का मैदान या फिर ऑफिस का कैफेटेरिया. लोगों की सबसे अधिक शिकायतें शिष्टाचार यानि लोगों के बर्ताव को लेकर ही रहती हैं. शिष्टाचार क्या है? ये क्यों आवश्यक है और इसका दैनिक जीवन में क्या महत्व है, जानते हैं-
शिष्टाचार संस्कृत का शब्द है. जिसका अर्थ है श्रेष्ठ आचरण.
तथा चरेत्सदान्येभ्यो वाच्छत्यन्येर्यथा नर:।
नम्र: शिष्ट: कृतज्ञश्च साहाय्यवान भवन:॥
यानि ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसा हम सामने वाले से चाहते हैं. सदैव हमें नम्र, शिष्ट, कृतज्ञ और सहयोगी होना चाहिए.
सभी धर्मों में आचार-विचार को लेकर विशेष जोर दिया गया है. आज के बदलती-दौड़ती जिंदगी में शिष्टाचार का महत्व सीमित होता जा रहा है. जिस तरह से लोगों को खास तौर पर युवा पीढ़ी की भाषा-बोली जिस तरह से बदली है, वो चिंता का विषय है. जेन जी जनरेशन का हाल तो और भी चिंता जनक है. इनका अपना अलग ही शब्द कोष है, जिसमें शब्दों को भाव के आधार पर नहीं बल्कि बाइनरी कोड की तरह प्रयोग किया जा रहा है. शब्दों का प्रभाव मन-मस्तिष्क पर पड़ता है, जो आपके आचार और विचार में परिलक्षित होता है. यही आपकी छवि के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
सनातन धर्म में शब्दों की विशेष अहमियत बताई है. शब्द विचारों को व्यक्त करने का माध्यम है. ये ध्वनि पर आधारित होते हैं जो हमारे मन मस्तिष्क को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं. ये भावनाओं को व्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम भी है. हिंदू धर्म में शब्द को ‘ब्रह्म’कहा है.
शिष्टचार में शब्दों का विशेष महत्व है. कबीर कहते हैं कि-‘ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए’ यहां वाणी का एक अर्थ शिष्टाचार भी है. यानि हमारा व्यवहार सदैव दूसरों के लिए अनुकरणीय होना चाहिए. आज की आधुनिक जिंदगी में लोग यही भूलते जा रहे हैं.
अच्छे कपड़े, अच्छा भोजन और बड़ी सैलरी पाने वाले का आचरण भी शिष्ट हो ऐसा दवा कोई नहीं कर सकता है. सही मायने में शिष्टाचार का इनसे कोई लेनादेना नहीं. हां यदि ये सब होते हुए भी आपका आचरण शिष्टचार से पूर्ण है तो ये सोने पे सुहागा जैसा है. ऐसे लोग समाज में सम्मान पाते हैं. ये अनुकरणीय बन जाते हैं. रतन टाटा इसकी एक उदाहरण हो सकते हैं.
आप अपने आसपास सफल लोगों को देखें तो पाएंगे कि वे बड़े पद और धनवान होने के साथ विनम्र हैं. उनकी वाणी मीठी और व्यवहार नम्र होता है. शबीना अदीब का ये शेर इस बात की तस्दीक करता है-
जो खानदानी रईस हैं वो मिज़ाज रखते हैं नर्म अपना,
तुम्हारा लहजा बता रहा है, तुम्हारी दौलत नई-नई है
ज़रा सा क़ुदरत ने क्या नवाज़ा के आके बैठे हो पहली सफ़ में
अभी क्यों उड़ने लगे हवा में, अभी तो शोहरत नई नई है
ध्यान रखें शिष्टाचार ही आदमी को इंसान बनाता है. जिस व्यक्ति में शिष्टाचार नहीं होता है, वो आदर सम्मान के लिए तरसता रहता है. रावण के पास सब कुछ था… ज्ञान था, आपार शक्ति थी. कुल भी उसका श्रेष्ठ था, लेकिन शिष्टाचार नहीं थी. जिस कारण उसे बार बार लज्जित होना पड़ा. उसका अंत कैसे हुए ये सभी जानते हैं.
शिष्टाचार जीवन जीने की एक शैली नहीं है ये व्यक्तित्व में छिपा ऐसा रत्न है, जो व्यक्ति को प्रत्येक स्थान पर आदर और सम्मान दिलाता है. अशिष्ट व्यक्ति को समाज में क्या कहते हैं, सभी जानते हैं.
नारुंतुदः स्यादार्तोSपि न परद्रोहकर्मधीः।
ययास्योद्विजते वाचा नालोक्यां तामुदीरयेत्॥
इसका अर्थ है कि- मनुष्य का कर्तव्य है कि वो किसी को पीडा दे कर उसका हृदय न दुखाये, भले ही स्वयं दुःख उठा ले. किसी के प्रति अकारण द्वेष-भाव न रखे और कोई कटु बात कह कर किसी का मन उद्विग्न न करे.
भगवान बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग जिसे मध्यमा प्रतिपद और मध्यम मार्ग भी कहा जाता है. इस मार्ग के 8 अंग बताए गए हैं-
आष्टांगिक मार्ग (Ashtangik Marg Kya Hai) |
1 | सम्यक दृष्टि |
2 | सम्यक संकल्प |
3 | सम्यक वाक |
4 | सम्यक कर्मांत |
5 | सम्यक आजीव |
6 | सम्यक व्यायाम |
7 | सम्यक स्मृति |
8 | सम्यक समाधि |
ये आठ धारणाएं तीन श्रेणियों में विभाजित हैं-
- प्रज्ञा (बुद्धि)
- शील (आचरण)
- समाधि (एकाग्रता)
भगवान बुद्ध कहते हैं कि शील शुद्ध होने पर ही आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश किया जा सकता है.
शिष्टाचार यही है. नहीं तो कुछ भी कर लीजिए, क्योंकि ये मसरूफ जमाना कभी किसी के लिए भी वक्त अपना बरबाद नहीं करता है. इसीलिए अगर आचरण अच्छा नहीं है तो…आदमी चंद मुलाकातों में मर जाता है.
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