लखनऊ। सिटी मोन्टेसरी स्कूल द्वारा आयोजित ‘विश्व के मुख्य न्यायाधीशों के 25वें अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन’ में पधारे 55 देशों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश व अन्य प्रख्यात हस्तियों ने आज मुख्य अतिथि श्री स्वतंत्र देव सिंह, जल शक्ति मंत्री, उ.प्र., की अगुवाई में सर्वसम्मति से ‘लखनऊ घोषणा पत्र’ जारी किया। इस घोषणा पत्र में विश्व भर से पधारे न्यायविदों व कानूनविदों ने संयुक्त राष्ट्र संघ में तत्काल सुधार का आह्वान किया है। विदित हो कि 22 से 24 नवम्बर तक सी.एम.एस. कानपुर रोड ऑडिटोरियम में आयोजित ‘विश्व के मुख्य न्यायाधीशों का 25वां अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन’ आज सम्पन्न हो गया। ‘भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51’ पर आधारित यह सम्मेलन विश्व एकता, विश्व शान्ति एवं विश्व के ढाई अरब से अधिक बच्चों के सुन्दर एवं सुरक्षित भविष्य को समर्पित है।
लखनऊ घोषणा पत्र जारी करने के अवसर पर आज सी.एम.एस. कानपुर रोड ऑडिटोरियम में आयोजित प्रेस कान्फ्रेन्स में मुख्य अतिथि श्री स्वतंत्र देव सिंह ने इस अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के अत्यन्त सफल आयोजन हेतु सी.एम.एस. को बधाई देते हुए कहा कि विभिन्न देशों से पधारे मुख्य न्यायाधीशों व अन्य गणमान्य अतिथियों ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 की भावना के अनुरूप सारे विश्व मे एकता एवं शांति स्थापना हेतु आज सर्वसम्मति से जो लखनऊ घोषणा पत्र जारी किया है, उसके माध्यम से भावी पीढ़ी को सुरक्षित भविष्य का अधिकार अवश्य ही मिलेगा और एकता, शान्ति व समता की भावना आधारित नवीन विश्व व्यवस्था का निर्माण होगा।
इस अवसर पर न्यायविदों व कानूनविदों ने अपने विचार रखते हुए एक स्वर से कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य संयुक्त राष्ट्र में अविलम्ब सुधार की भारी आवश्यकता है। भावी पीढ़ी के सुरक्षित भविष्य हेतु एक ‘नवीन विश्व व्यवस्था’ के गठन तक हमारा प्रयास निरन्तर जारी रहेगा। इस घोषणा पत्र में न्यायविदों व कानूनविदों ने विश्व एकता व विश्व शान्ति हेतु ठोस कदम उठाने की आवश्यकता जोर दिया है, साथ ही मूलभूत अधिकारों, सभी धर्माे का आदर करने एवं विद्यालयों में शान्ति व एकता की शिक्षा देने के लिए भी कहा गया है। पत्रकारों से बातचीत करते हुए न्यायविदों ने संकल्प व्यक्त किया कि वे अपने-अपने देश जाकर अपनी सरकार के सहयोग से इस मुहिम को आगे बढायेंगे जिससे विश्व के सभी नागरिकों को नवीन विश्व व्यवस्था की सौगात मिल सके।
लखनऊ घोषणा पत्र का विस्तृत विवरण इस प्रकार है:-
यह विश्वास करते हुए कि विश्व शांति सतत विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि वैश्वीकरण के इस युग में, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और विकास के लाभ उन लोगों तक पहुँच सकें, जो सबसे गरीब, वंचित और मौलिक मानवाधिकारों व मौलिक स्वतंत्रताओं से वंचित हैं।
यह जानते हुए कि वर्तमान एवं संभावित युद्ध और दुनिया भर में संघर्ष बच्चों और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को चिंतित और असुरक्षित बना रहे हैं, जो शांति और सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा हैं। साथ ही यह परमाणु युद्ध की आशंका को भी बढ़ा रहा है, जो अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव वाले कई मुद्दे उत्पन्न कर सकता है। मानव पीड़ा के अलावा, युद्ध वैश्विक खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, आपूर्ति श्रृंखलाओं, मैक्रो-आर्थिक स्थिरता, मुद्रास्फीति और विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
इस बात से सहमत होते हुए कि वैश्वीकरण और आपसी निर्भरता के इस युग में युद्ध कोई विकल्प नहीं है और विवादों को संवाद और वार्ता के माध्यम से हल करना अनिवार्य है। ‘एक विश्व, एक परिवार, एक भविष्य’ के नए नारे और भारतीय प्राचीन आदर्श ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (पूरा विश्व एक परिवार है) में विश्वास रखते हैं।
यह महसूस करते हुए कि वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन इस ग्रह को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं, जिस पर शीर्ष प्राथमिकता के साथ ध्यान देने की आवश्यकता है। यह भी कि पेरिस समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलनों में हुई सहमतियों पर जमीनी स्तर पर बहुत कम प्रगति हुई है और विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्त पोषण के वादे को पूरा नहीं किया गया है।
यह स्वीकार करते हुए कि संयुक्त राष्ट्र संघ शांति, मानवाधिकार, सामाजिक उत्थान, विकास और अन्य क्षेत्रों में कार्यरत सबसे बड़ी संस्था है, लेकिन इसमें महासभा के निर्णयों को लागू करने के लिए आवश्यक अधिकार और तंत्र का अभाव है। यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर में संशोधन की आवश्यकता को दर्शाता है ताकि इसकी प्राधिकरण, प्रतिष्ठा और शक्ति को मानवता और हमारे ग्रह के सामने आने वाली समस्याओं को संबोधित करने में सक्षम बनाया जा सके, जबकि भविष्य की पीढ़ियों के हितों को ध्यान में रखते हुए किसी को भी पीछे न छोड़ा जाए।
अतः, हम, मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश और विधिक विशेषज्ञ, इस 25वें अंतर्राष्ट्रीय मुख्य न्यायाधीश सम्मेलन में, जो सिटी मॉन्टेसरी स्कूल, लखनऊ, भारत द्वारा 20 से 24 नवंबर, 2024 तक आयोजित किया गया है, पहले आयोजित मुख्य न्यायाधीश सम्मेलनों में पारित प्रस्तावों की पुनः पुष्टि करते हैं और कानून के शासन तथा न्यायपालिका की स्वतंत्रता की केंद्रीयता को पुनः पुष्टि करते हुए आगे यह निर्णय लेते हैं:-
सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों से आग्रह करते हैं कि:-
(क)जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आवश्यक कदम उठाएं और पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों की दिशा में कार्रवाई को तेज करें तथा विकसित राष्ट्रों से समयबद्ध तरीके से जलवायु वित्त पोषण के अपने वादे को पूरा करने का आग्रह करें।
(ख)देशों के बीच न्यायपूर्ण और सम्मानजनक संबंध बनाए रखें, विवादों को संवाद और कूटनीति के माध्यम से हल करें तथा हिंसा और युद्धों से बचें।
(ग)मानवता और हमारे ग्रह के हित में सामूहिक विनाश के हथियारों (डब्ल्यूएमडी) का उपयोग न करने का संकल्प लें और इन हथियारों के निर्माण व रखरखाव में प्रयुक्त संसाधनों को विकास और मानव कल्याण के लिए समर्पित करें।
(घ)अपने-अपने देशों के सभी विद्यालयों में नागरिकता शिक्षा, शांति शिक्षा और अर्न्तसाँस्कृतिक समझ को शामिल करने के लिए कदम उठाएं।
(ङ)संयुक्त राष्ट्र चार्टर की समीक्षा के लिए कदम उठाएं ताकि इसे अधिक प्रभावी, लोकतांत्रिक और प्रतिनिधिक संगठन बनाया जा सके।
(च)22-23 सितंबर, 2024 को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित ‘भविष्य के शिखर सम्मेलन’ में राष्ट्राध्यक्षों व शासनाध्यक्षों द्वारा सहमत दिशानिर्देशों के अनुसार कार्य करें।
2.संयुक्त राष्ट्र से आग्रह करते हैं कि:-
(क)अनुच्छेद 109 के तहत संयुक्त राष्ट्र चार्टर की समीक्षा को तेज करें ताकि इसे वर्तमान समय की अपेक्षाओं और लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप बनाया जा सके।
(ख)आतंकवाद, उग्रवाद और युद्धों की रोकथाम के प्रयास करें और सामूहिक विनाश के हथियारों का उन्मूलन करें।
(ग)बहुपक्षीय संस्थानों को सुचारु बनाएं ताकि वे विशेष रूप से अविकसित देशों में विकास, भूख और गरीबी उन्मूलन के लिए प्रभावी भूमिका निभा सकें।
3.न्यायपालिका के सदस्यों से आग्रह करते हैं कि:-
(क)एक प्रभावी वैश्विक शासन संरचना के पक्ष में जनमत बनाने के लिए हर संभव साधन का उपयोग करें।
(ख)अपने-अपने राष्ट्रीय सरकारों को सभी स्कूलों में अर्न्तसाँस्कृतिक और वैश्विक नागरिकता शिक्षा को लागू करने के लिए प्रेरित करें।
(ग)कानून के शासन को बनाए रखें और सभी व्यक्तियों की गरिमा के प्रति सम्मान को बढ़ावा दें, जो सभी मौलिक मानवाधिकारों और स्वतंत्रताओं का आधार है।
यह भी प्रस्तावित है कि यह प्रस्ताव सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों/ शासनाध्यक्षों, मुख्य न्यायाधीशों और संयुक्त राष्ट्र महासचिव को विचार और उचित कार्रवाई के लिए भेजा जाए।