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सुप्रीम कोर्ट – फोटो : सोशल मीडिया
विस्तार
उपासना स्थल कानून 1991 को लेकर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने ओवैसी की याचिका पर सुनवाई के लिए 17 फरवरी की तारीख तय की है। याचिका को लंबित मामलों के साथ शामिल किया गया है।
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उपासना स्थल कानून क्या है?
देश की संसद ने 18 सितंबर 1991 को उपासना स्थल अधिनियम, 1991 (अधिनियम) पारित किया था। उपासना स्थल कानून में सात धाराएं हैं। शुरुआती खंड में कानून का उद्देश्य किसी भी उपासना स्थल के बदलाव पर रोक लगाना और किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक चरित्र को 15 अगस्त, 1947 के अनुसार बनाए रखना बताया गया है।
अधिनियम की धारा 3 में यह घोषित किया गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय के उपासना स्थल को किसी अन्य धार्मिक संप्रदाय या समुदाय में नहीं बदला जाएगा। धारा 4(1) में प्रावधान है कि उपासना स्थल का धार्मिक चरित्र वैसा ही बना रहेगा जैसा 15 अगस्त, 1947 को था। धारा 4(2) में प्रावधान है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद उपासना स्थल के चरित्र के बदलाव से जुड़े सभी लंबित मुकदमे, अपील या अन्य कार्यवाही अधिनियम के लागू होने पर समाप्त हो जाएंगी और कोई नई कार्यवाही दायर नहीं की जा सकेगी। धारा 4(2) में अपवाद भी है कि यदि 15 अगस्त 1947 के बाद स्थिति में बदलाव हुआ है तो किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक चरित्र के बदलाव के संबंध में कानूनी कार्यवाही शुरू की जा सकती है।
धारा 4 (3) (ए) किसी भी उपासना स्थल को अधिनियम के प्रभाव से छूट देती है जो एक प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक या पुरातत्व स्थल है या प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अंतर्गत आता है। अधिनियम की धारा 5 विशेष रूप से राम जन्मभूमि को इसके आवेदन से छूट देती है।
उपासना स्थल को चुनौती क्यों मिली?
यह अधिनियम उस समय चुनौती के दायरे में आया जब सर्वोच्च न्यायालय अयोध्या स्थित विवादित ढांचे के मसले का फैसला कर रहा था। 9 नवंबर 2019 को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से विवादित संपत्ति का मालिकाना हक श्री रामलला विराजमान को दिया। इस फैसले ने 450 साल पुराने विवाद की फाइलें बंद कर दीं। उस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उपासना स्थल अधिनियम, 1991 की वैधता को बरकरार रखा।
इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें दावा किया गया है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29 का उल्लंघन करता है। इन मामलों में याचिकाकर्ताओं में भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय, पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, धर्मगुरु स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती और देवकीनंदन ठाकुर, काशी नरेश विभूति नारायण सिंह की बेटी कुमारी कृष्णा प्रिया और सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी अनिल कबोत्रा शामिल हैं।